प्रतियोगिता की 6वीं कविता एक ग़ज़ल है। यह ग़ज़ एक वरिष्ठ शायर खन्ना मुजफ्फरपुरी की है। इनके बारे में बहुत अधिक जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है।
पुरस्कृत कविताः ग़ज़ल
शहर में दिन न घर में रात मिली
तन्हा-तन्हा मुझे हयात मिली
घर में सूरज भी चाँद भी हैं मगर
तीरगी से कहाँ निजात मिली
बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली
लोग कहते थे मेरे जैसा उसे
कोई लहजा मिला न बात मिली
अपना-अपना नसीब है 'खन्ना'
किसको कितनी ये कायनात मिली
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।