हिन्द-युग्म के पाठक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' से परिचित हो चुके हैं। पिछले महीने इनकी एक कविता प्रकाशित हुई थी। जुलाई माह की प्रतियोगिता में इनकी एक कविता ने तीसरा स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
बताता है हुनर हर शख़्स को वह दस्तकारी का
ज़रूरतमंद की इस शक्ल में इमदाद करता है
कमाता है हमेशा नेकियाँ कुछ इस तरह से वो
परिन्दों को कफ़स की क़ैद से आज़ाद करता है
कहा उसने कभी वो मतलबी हो ही नहीं सकता
मगर तकलीफ़ में ही क्यों ख़ुदा को याद करता है
कभी-भी कामयाबी ‘व्योम’ उसको मिल नहीं सकती
हक़ीकत जानकर भी वक़्त जो बरबाद करता है
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
gazal bahut he acchi lagi
गज़ल छोटी है मगर अच्छी लगी। व्योम जी को बधाई।
kamaal kiyaa hia aa;ne...
bahut kamaaal..
Kaafi achchhi gazal hai!
गर तकलीफ़ में ही क्यों ख़ुदा को याद करता है
बहुत खूबसूरत
कमाता है हमेशा नेकियाँ कुछ इस तरह से वो
परिन्दों को कफ़स की क़ैद से आज़ाद करता है ।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
कमाता है हमेशा नेकियाँ कुछ इस तरह से वो
परिन्दों को कफ़स की क़ैद से आज़ाद करता है
baat kya khoob hai ye
sher bahut sunder hai
saader
rachana
lines choti zaroor hai lekin bahut damdaar..:)
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