हिन्द-युग्म के पाठक अवनीश सिंह चौहान की कविताओं से परिचित हो चुके हैं। मई 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता में प्रस्तुत कविता ने नवाँ स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविता: किसको कौन उबारे
बिना नाव के माझी मिलते
मुझको नदी किनारे
कितनी राह कटेगी चलकर
उनके संग सहारे
इनके-उनके ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
साठ रुपैया मजदूरी के
नौ की आग बुझाना
अपनी अपनी ढपली सबकी
सबके अलग शिकारे
बढ़ती जाती रोज उधारी
ले-दे काम चलाना
रोज-रोज झोपड़ पर अपने
नए तगादे आना
अपनी-अपनी घातों में सब
किसको कौन उबारे!
पानी-पानी भरा पड़ा है
प्यासा मन क्या बोले
किसकी प्यास मिटी है कितनी
केवल बातें घोले
अपनी आँखों में सपने हैं
उनकी में सुख सारे
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
इनके-उनके ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
साठ रुपैया मजदूरी के
नौ की आग बुझाना
बहुत मार्मिक कर दिया, पर गरीबो का सच तो यही है.
सुन्दर कविता
इनके-उनके ताने सुनना
दिन-भर देह गलाना
साठ रुपैया मजदूरी के
नौ की आग बुझाना
गरीब की व्यथा झलक रही है बहुत अच्छी लगी कविता बधाई
achhi kavitaa..badhayee!
waah badhiya
बढ़ती जाती रोज उधारी
ले-दे काम चलाना
रोज-रोज झोपड़ पर अपने
नए तगादे आना
अपनी-अपनी घातों में सब
किसको कौन उबारे!
पानी-पानी भरा पड़ा है
प्यासा मन क्या बोले
किसकी प्यास मिटी है कितनी
केवल बातें घोले
अपनी आँखों में सपने हैं
उनकी में सुख सारे
यथार्थ चित्रण है भाई!
वही बुझाये जिसने आग लगाई!
पानी में रहकर भी प्यासे रहते हैं,
सम्बन्धों में जकड़े, दुश्मन हैं लोग-लुगाई!
बहुत अच्छी कविता!
अपनी आंखों में सपने हैं,
उनकी में सुख सारे!
अपने आप को भुलाकर,
जीते लोग-उधारे!
दूसरे की थाली में घी ज्यादा, ऐसा लोग पुकारें!
bahut hi shashakt rachna...bhava bhi sahaj grahya hain ..aur lay bhi chamtkrit karti hai ... :)
Shri Abnish singh chauhan ka yah geet shoshad ka shikar aur dishaheenta ke andhere main bhatakte nirdhan varg kee vastvik dastan hai.Is sundar geet ke liye unhen badhai.
Krishna Kumar 'Naaz'
Moradabad, U.P.
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