चाँद का पानी पीकर,
लोग कर रहे होंगे गरारे...
और झूम रही होगी
जब सारी दुनिया...
मशीन होते शहर में,
कुछ रोबोट-से लोग
ढूँढते होंगे,
ज़िंदा होने की गुंजाइश।
किसी बंद कमरे में,
बिना खाद-पानी के
लहलहा रहा होगा दुःख...
माँ के प्यार जितनी अथाह दुनिया के
बित्ते भर हिस्से में,
सिर्फ नाच-गाकर
बन सकता है कोई,
सदी का महानायक
फिर भी ताज्जुब नहीं होता।
प्यार ज़रूरी तो है
मगर,
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....
सिगरेट के धुँए से
उड़ते हैं दुःख के छल्ले
इस धुँध के पार है सच
देह का, मन का...
समय केले का छिलका है,
फिसल रहे हैं हम सब...
दुनिया प्रेमिका की तरह है,
एक दिन आपको भुला देगी...
निखिल आनंद गिरि
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut sundar, rachna
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
वाह भाई निखिल! आनंद आ गया पढ़कर.
समय मार्ग में पड़ा केले का छिलका है जिसमें फिसल रहे हैं हम सब..! वाह ! पैर रखन भी मजबूरी है.
ये पंक्तियाँ भी जोरदार हैं..
प्यार ज़रूरी तो है
मगर,
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....
....सारल शब्दों में सुंदर व्यंग्य.
....बधाई हो.
प्यार ज़रूरी तो है
मगर,
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....
बहुत अच्छी रचना जिसकी विशेषता नये बिम्ब और प्रतीक हैं
माँ के प्यार जितनी अथाह दुनिया के
बित्ते भर हिस्से में,
सिर्फ नाच-गाकर
बन सकता है कोई,
सदी का महानायक
फिर भी ताज्जुब नहीं होता।
बहुत गहरे भाव हैं इन शब्दों के बधाई सुन्दर कविता के लिएय्
बेहतरीन से काम कोई शब्द नहीं है मेरे पास इस कविता के लिए,
हर मिसरा इतना खूबसूरत है.. और इतना सटीक है कि क्या कहूँ ..बहुत ही शानदार कविता कही है निखिल जी, बहुत दिन के बाद कोई जानदार कविता पढ़ी, बहुत अच्छा लगा .बधाई
प्रेम से जरुरी है पॉलिसी ...
दुनिया प्रेमिका की तरह भुला देगी ...
अलग तरह की उपमाएं ...प्राथमिकतायें ...!!
बेहतरीन बिम्ब प्रयोग...
सशक्त,सार्थक, सुन्दर रचना...
प्यार ज़रूरी तो है
मगर,
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....
समय केले का छिलका है,
फिसल रहे हैं हम सब...
दुनिया प्रेमिका की तरह है,
एक दिन आपको भुला देगी...
वाह! भाई वाह! बहुत सुन्दर
अब क्या कहूं....
इतना सबकुछ तो कह दिया...खुद ही...
उसी केले के छिलके ने बेवजह की फिसलन पैदा कर दी है...और जिंदगी चलने के बजाय सरकने लगी है...बस समस्या एक ही है...हर वक्त गिर (ढ़िमला)जाने का डर लगा रहता है...
प्यार ज़रूरी तो है
मगर,
एक पॉलिसी, लोन या स्कीम
कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं....
bahut sunder kavita....badhayee nikhil jee.
tukde tukde me nazm achhi lagi ....
किसी बंद कमरे में,
बिना खाद-पानी के
लहलहा रहा होगा दुःख...
ye bara badi pasand aayi ..iske sath sath loan wali baat bhi shandar thi .... samay kele ka chilka hai ..bahut umda misra tha..par ant me aur gunjaish bachti hai ...ant behtar ho sakta tha nazm ka...
आने वाला समय आम का छिलका है मेरे दोस्त....तुम देखऩा..
“माँ के प्यार जितनी अथाह दुनिया के
बित्ते भर हिस्से में,
सिर्फ नाच-गाकर
बन सकता है कोई,
सदी का महानायक
फिर भी ताज्जुब नहीं होता।“ यही सब कुछ तो हो रहा है इस दुनिया में मगर फिर भी ताज्जुब नहीं होता. आपने अपनी संवेदना को खूबसूरत लफ़्ज़ों में पिरोया है जो काबिलेतारीफ है. इस शानदार कृति के लिए आपको साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय
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