एम वर्मा हिन्द-युग्म के अत्यधिक सक्रिय पाठक-कवियों में से हैं। एकबार हिन्द-युग्म के यूनिकवि भी रह चुके हैं। मई 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता ने दसवाँ स्थान बनाया।
पुरस्कृत कविता: एक चिड़िया मरी पड़ी थी
बलखाती थी
वह हर सुबह
धूप से बतियाती थी
फिर कुमुदिनी-सी
खिल जाती थी
गुनगुनाती थी
वह षोडसी
अपनी उम्र से बेखबर थी
वह तो अनुनादित स्वर थी
सहेलियों संग प्रगाढ़ मेल था
लुका-छिपी उसका प्रिय खेल था
खेल-खेल में एक दिन
छुपी थी इसी खंडहर में
वह घंटों तक
वापस नहीं आई थी
हर ओर उदासी छाई थी
मसली हुई
अधखिली वह कली
घंटों बाद
शान से खड़े
एक बुर्ज के पास मिली
अपनी उघड़ी हुई देह से भी
वह तो बेखबर थी
अब कहाँ वह भला
अनुनादित स्वर थी
रंग बिखेरने को आतुर
अब वह मेहन्दी नहीं थी
अब वह कल-कल करती
पहाड़ी नदी नहीं थी
टूटी हुई चूड़ियाँ
सारी दास्तान कह रही थीं
ढहते हुए उस खंडहर-सा
वह खुद ढह रही थी
चश्मदीदों ने बताया
जहाँ वह खड़ी थी
कुछ ही दूरी पर
एक चिड़िया मरी पड़ी थी
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
मैं अपनी प्रतिक्रिया अभी सहेज रही हूँ, देखते हैं बाकी दोस्त क्या कहते हैं, उनके बाद मैं कुछ कहूँगी :)
behad marmik chitran.
बहुत मार्मिक है कविता. मासूमों की मासूमियत का नाज़ायज रूप से हनन आये दिन की बात है. कविता सम्वेदना के उस स्तर तक प्रभावी है.
मार्मिक.
अब वह कल-कल करती
पहाड़ी नदी नहीं थी
टूटी हुई चूड़ियाँ
सारी दास्तान कह रही थीं
ढहते हुए उस खंडहर-सा
वह खुद ढह रही थी
लोग कैसे किसी मासूम को अपनी वासना का शिकार बना कर उसका जीवन बर्बाद कर देते हैं उसके पर काट लेते हैं शायद वर्मा जी ने यही कहने की कोशिश की है मार्मिक अभिव्यक्ति है धन्यवाद।
अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना... खास तौर पर जिस हालत से अपनी दिल्ली या कहिये पूरे देश का है.. अपनी बेटियां अपनों के बीच ही सुरक्षित नहीं हैं .. कविता ना केवल सार्थक है बल्कि दिशा देने वाली भी है... कविता में मरी हुई चिड़िया का बिम्ब बहुत नया है... कई और बिम्ब हैं रेखांकित करने योग्य ... हिन्दयुग्म में स्थान बनाने के लिए बहुत बहुत बधाई....
atyant maarmik...havas ki ye nadi jaane kitni massom chidiyon ko apni dhaar me yunhi baha le jaati hai....hriday vyathit ho gaya...
बेहद सम्वेदनशील रचना
यह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।
आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झांकता दिखाई देता है।
रचना मर्मस्पर्शी है।
छुपी थी इसी खंडहर में
वह घंटों तक
वापस नहीं आई थी
हर ओर उदासी छाई थी
मसली हुई
अधखिली वह कली
घंटों बाद
शान से खड़े
एक बुर्ज के पास मिली
एकदम सही बात कही है, मसली हुई कलियां, शान से जी रहे बुर्जो के पास ही नहीं मिलती मसलने या मसलवाने में ऐसे बुर्जों का ही हाथ होता है, फ़िर भी बुर्जो की शान कम नहीं होती, यही बिडम्बना है.
मार्मिक
Yeh issue itna sensitive hai ki is issue par kuch kehna apne aap mein badi baat hai..
Kafi kuch kaha ja sakta hai..
Aapne jazbaaton ko jis khoobsurati se alfaaz diye hain, main bayaaN nahi kar sakti..kuch metaphors to bahut hi acche lage..
Betiyon ko aangan ki chidiya kaha jata hai, aapne usi chidiya ki ek dard bhari daastaan kahi hai.. bahut hi bareeki se aapne saare drisya dikhaye hain..
Kavita shaandaar kahi hai
Ek zara sa asmanjas hai
ढहते हुए उस खंडहर -सा
वह खुद ढह रही थी
चश्मदीदों ने बताया
जहाँ वह खड़ी थी
कुछ ही दूरी पर
एक चिड़िया मरी पड़ी थी
Jahan wo khadi thi
Wahan chidiya mari padi thi..
shayd kisi ne dhyaan na diya ho
Yaha kisi aur chidiya ki baat ho rahi hai
Aur jis chidiya ki baat aapne kahi hai shayad ya to wo koi aur hai, ya mujhe hi koi aur lag rahi hai..
fir aapne pehle kaha ki wo burj ke paas padi thi
Fir last mein wo khadi thi
Yeh lines confusion to create karti hi hain
Kavita ko kamjor karti hain.
Sadhuvaad
Shah Nawaz said...
वर्मा जी, कविया बहुत ही ज़बरदस्त है! बहूत ही खूब
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
बहुत मार्मिक चित्रण किया है आपने इस कविता में...
अजय कुमार झा said...
कविता भी पढ आया हूं ..हमेशा की तरह एक संवेदनशील कवि के ह्रदय से निकली एक उत्कृष्ट रचना ।
अत्यन्त संवेदनशील और मार्मिक रचना
टूटी हुई चूड़ियाँ
सारी दास्तान कह रही थीं
ढहते हुए उस खंडहर-सा
वह खुद ढह रही थी
मार्मिक...........
वह तो अनुनादित स्वर थी
bahut bahut bahut jyada sundar bat kahi aapne....
ढहते हुए उस खंडहर-सा
वह खुद ढह रही थी
चश्मदीदों ने बताया
जहाँ वह खड़ी थी
कुछ ही दूरी पर
एक चिड़िया मरी पड़ी थी
behad zabardast ant kiya hai aapne nazm ka... par abhi bahut scope tha kehne ka...
एम वर्मा कृत कविता "एक चिड़िया मरी पड़ी थी" पढ़ कर लगा कि निर्जीव शब्द भी अंतर्मन को छू कर पीड़ा पहुंचाते हैं , गंभीर घाव करने की और उद्वेलित करने की क्षमता रखते हैं. कवि की इस मर्मस्पर्शी कृति के लिए साधुवाद .
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