मई महीने की प्रतियोगिता की तीसरी कविता के रचयिता हरदीप सिंह राणा पहली बार हिन्द-युग्म पधारे हैं। गाँव अराइंपुरा, जिला करनाल, हरियाणा निवासी हरदीप उर्फ कुँवर जी ने कक्षा दस तक की पढ़ाई अपने गाँव से ही की है। अनजाने में ही इंजिनयरिंग का डिप्लोमा कर लिया और उसके बाद से ही निजी क्षेत्र में नौकरी का आनंद उठा रहे हैं। पढ़ने की थोड़ी ओर इच्छा थी, सो नौकरी के साथ-साथ विश्वविद्यालय की पत्राचार वाली सुविधा का लाभ उठाते हुए स्नातक भी पूरा कर लिया। दर्शनशास्त्र विषय के साथ स्नात्कोत्तर के लिए आवेदन किया था पर नौकरी के साथ सामंजस्य बैठाने के चक्कर में परिक्षाए नहीं दे पाये। इन्हें अपने लिखने का तो ज्यादा नहीं पता लेकिन कई बार अपने लिखे को जब पढते हैं तो विश्वास नहीं होता कि ये सब इन्होंने लिख दिया। पर कुछ भी देख, सुन, पढ़ कर ये उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते।
पुरस्कृत कविता: लेकिन क्या मै सोचता रह जाऊँगा
रात में सूरज को तरसता हूँ,
दिन में धूप से तड़पता हूँ
आखिर क्या होगा मेरा.....?
मै हूँ कहाँ इस यात्रा में....?
सोचता हूँ तो पाया
मुझे
ना मंजिल का पता है
ना पहचान है,
ना रास्ते में हूँ
ना सराय में,
मंजिल भी सोचती होगी
ये भी
अजीब नादान है!
खजूर की छाँव देख भी
ललचा जाता हूँ,
जबकि जानता हूँ मै
थोड़ा आगे ही तो
पीपल की घनी छाँव भी है!
राह छोड़
पगडंडियों
पर भटक जाता हूँ,
जबकि मै
देख चुका पहले भी
कि
इनका भी तो
ये राह ही
पड़ाव है!
ऐसा लगता है
जैसे नींद में हूँ,
अभी मै
सो रहा हूँ,
आँख भी खुलती है कई बार
खुली भी है,
अँधेरा देख
पता ही नहीं लगता कि
भोर है या रात
और मै फिर सो जाता हूँ!
मै सोचता हूँ
इस बार
वो मुझे बतायेगा नहीं
जगायेगा!
सही राह पर नहीं चलाएगा
बल्कि
अपनी गोदी में उठाएगा,
झूठी हँसी नहीं
सच्चे आँसू रुलाएगा.....
लेकिन क्या मै सोचता रह जाऊँगा....?
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
kunwar ji
zara aur dimaag lagaiye aur kavita mein bhaav bhariye.
Be asar rahi aapki yeh kavita ... Judges bhi dhyaan dein zara.
खजूर की छाँव देख भी
ललचा जाता हूँ,
जबकि जानता हूँ मै
थोड़ा आगे ही तो
पीपल की घनी छाँव भी है!
यही सच है .. जीवन का कड़ुवा सच यही है
mai aabhaari hu is manch ka jisne mujhe kuchh achchha ehsaas diya....mere pryaas ab or prakhar honge aisa mai sochta hu....
@deepaali ji-maargdarshan ke liye shukriya...aapki baat par gaur karunga....
@verma ji-kuchh-kuchh aisa hi hai ji...
kunwar ji,
खजूर की छाँव देख भी
ललचा जाता हूँ,
जबकि जानता हूँ मै
थोड़ा आगे ही तो
पीपल की घनी छाँव भी है!
ye is nazm ka sabse achha hisaa laga mujhe... nazm me se kuch bat5en kam ki ja sakti hain..kasawat badh jayegi nazm ki ..
मै सोचता हूँ
इस बार
वो मुझे बतायेगा नहीं
जगायेगा!
सही राह पर नहीं चलाएगा
बल्कि
अपनी गोदी में उठाएगा,
झूठी हँसी नहीं
सच्चे आँसू रुलाएगा.....
लेकिन कोई नहीं आयेगा
मुझे इन्तजार ही सतायेगा
सोचना छोड़कर जब में
स्वंय चलना शुरू करूंगा
दूसरों का भी हमसफ़र बनूंगा
आसुओं पोछना सीखूगा
खिलखिलाहट बिखेरूंगा
जब में सोचना छोड़कर
अपनी राह खुद चलूंगा
देश, समाज के प्रति
कर्तव्यों का निर्वहन करूंगा.
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