अवनीश सिंह चौहान हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में पहली बार भाग ले रहे है और इनकी कविता ने आठवाँ स्थान बनाया है। 4 जून 1979 को जन्मे अवनीश की कविताएँ, कहानियाँ, आलेख, समीक्षाएँ इत्यादि अमर-उजाला, हिंदुस्तान, देश-धर्म, डी एल ए, उत्तर-केसरी, प्रेस-मेन, नए-पुराने, अभिनव-प्रसंगवश, संकल्प-रथ, यदि, गोलकोंडा-दर्पण, आश्वस्त, युग-हलचल, साहित्यायन, आदि मैं हिंदी गीत, कहानियां, समीक्षाएं प्रकाशित होती रही हैं। साथ ही इनकी आधा दर्जन अंग्रेजी किताबें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पढ़ी-पढायीं
जा रहीं है। नए-पुराने (अनियतकालिक) पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं। वर्तमान में इटावा (उ॰प्र॰) के एक महाविद्यालय में अंग्रेजी के व्याख्याता हैं।
पुरस्कृत कविताः जलती समिधाएँ
अटीं-पटीं दीवारें रहतीं
विज्ञापन के पर्चों से
गयी कमाई दाल-भात में
ले डूबी कभी दवाई
सुरसा-सा मुँह बाये बैठी
आँगन-द्वारे महँगाई
प्याज झरप भर रहा आँख में
तीखा ज्यादा मिर्चों से
किया जतन पर जोड़ न पाये
मिल-जुलकर दाना-पानी
एक तिहाई तेल निकलता
पिर करके पूरी घानी
कद्दा लागत जोड़-घटा कर
उबर न पाये खर्चों से
छुप गयी हकीकत नारों में
करतूतें सब मंचों की
चिड़िया भूखी थी भूखी है
पौ-बारह सरपंचों की
धूँ-धूँ-कर जलतीं समिधाएँ
देवालय तक चर्चों से
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्याज झरप भर रहा आँख में
तीखा ज्यादा मिर्चों से
अच्छी रचना... बधाई !
kya baat hai , acchi rachna. badhai
गयी कमाई दाल.भात में
ले डूबी कभी दवाई
सुरसा.सा मुँह बाये बैठी
आँगन.द्वारे महँगाई
छुप गयी हकीकत नारों में
करतूतें सब मंचों की
चिड़िया भूखी थी भूखी है
पौ.बारह सरपंचों की
धूँ.धूँ.कर जलतीं समिधाएँ
देवालय तक चर्चों से
हकीकत को बयां करती ये रचना पसंद आई, अविनाशजी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़
इस गीत को पढ़कर महसूस होता है कि आज जिस परिश्थिति में आदमी अपनी रोजी-रोटी चलाने को मजबूर है और जिन समस्याओं से उसे जूझना पड़ रहा है , वह निश्चय ही विचारणीय है. गीत के माध्यम से वर्तमान समस्याओं को उजागर करने का कवि के इस प्रयास कोमें नमन करता हूँ .
Achhi rachnaAbnish Singh Chauhan ko Badhai.
behad achhi rachana...
मन भर आया आपकी इस कविता को पढ़....
वर्तमान त्रासद अवस्था का जीवंत और प्रभावशाली वर्णन किया है आपने अपनी इस अप्रतिम रचना में...
छुप गयी हकीकत नारों में
करतूतें सब मंचों की
चिड़िया भूखी थी भूखी है
पौ-बारह सरपंचों की
बहुत सुन्दर रचना
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)