मई माह की यूनिप्रतियोगिता मे दूसरा स्थान स्वप्निल कुमार ’आतिश’ की ग़ज़ल ने पाया है। आतिश पिछले कुछ समय से ही हिंद-युग्म से जुड़े हैं, मगर कवि और पाठक के तौर पर उनकी सक्रियता उदाहरण के योग्य रही है। इनकी पिछली गज़लें भी यूनिप्रतियोगिता मे ऊपर के पायदानों पर रही हैं और उन्हे पाठकों की भी काफ़ी सराहना मिली है। पिछले माह की प्रतियोगिता मे इनकी एक ग़ज़ल दसवें स्थान पर रही थी। आतिश की ग़ज़लों की सबसे खास बात उनका सरल और सहजग्राह्य होना है। विषय और भाषा की बोधगम्यता के कारण उनकी गज़लों को सामान्य पाठकों मे भी आसानी से पैठ बना पाती हैं। वहीं ग़ज़लों के प्रचिलित उपमानों का सर्वथा नवीन संदर्भों मे प्रयोग उनकी गज़लों को नया और सामयिक कलेवर भी देता है।
पुरस्कृत ग़ज़ल
तन्हाई को टा टा कर
कुछ तो सैर सपाटा कर
फटे पुराने चाँद को सी
अपनी रातें काटा कर
आवाज़ों में से चेहरे
अच्छे सुर के छाँटा कर
बेचैनी को चैन बना
दिल के ज्वार को भाटा कर
दिल की बातें सुननी हैं?
दिल में ही सन्नाटा कर
आवारा बन जा, नज़रें
खिड़की-खिड़की बाँटा कर
माना कर सारी बातें या
सारी बातें काटा कर
आँच चिढ़ाती है "आतिश "
तू लौ बन कर डाँटा कर
__________________________________________________
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
19 कविताप्रेमियों का कहना है :
कुछ शेर तो लाजवाब हैं....
तन्हाई को टा टा कर
कुछ तो सैर सपाटा कर
दिल की बातें सुननी हैं?
दिल में ही सन्नाटा कर
आंच चिढाती है "आतिश "
तू लौ बन कर डांटा कर
दूसरे, तीसरे में अभी और मेहनत करने की आवश्यकता लग रही है.
...बधाई.
माना कर सारी बातें या
सारी बातें काटा कर
सारे शेर अलग से हैं और सुन्दर हैं
गज़ल कम और तुकबन्दी अधिक लगी।
नए बिम्बों का प्रयोग...अच्छी ग़ज़ल
इस गज़ल ने मुझे निराश किया... कई सारे शेर जबरदस्ती कहे हुए लगते हैं... नयापन का अभाव है.. सच कहू तो गज़ल दुसरे पायदान पर आने लायक नहीं है..
"आतिश" जी, माफ कीजियेगा, लेकिन मुझे आपसे ढेर सारी उम्मीदें हैं.
धन्यवाद,
विश्व दीपक
कम शब्दों में
हकीकत के किस्से यूं ही हमसे साझा कर
वक्त मिल न सके कहानी कोई पढ़ने का शायद
मगर गजल के सिरों को आतिश यूं ही तू
बांधा कर.......hamne bhi kuch tukbandi kar li
66 कविताओं में अगर इसका नंबर दूसरा है, तो थोड़ी निराशा हुई मुझे भी....इस तुकबंदी में हम भी दो-चार शेर जोड़ने की कोशिश करते देंगे...आतिश भाई चाहें तो ग़ज़ल को बड़ा कर सकते हैं...
आगे बढ़ना है जग में,
सबके तलवे चाटा कर...
शकल नहीं रे, अकल दिखा
पीछे बायोडाटा कर...
यही चाहती सोनिया जी,
सबका गीला आटा कर.....
वाह-वाह...
सच कहूँ तो इस ग़ज़ल ने निराश कर दिया स्वप्निल,
तुम्हारी गजलों की भावनाएं सबसे ख़ास होती है
पर इस ग़ज़ल में बस तुकबंदी ही लगी,
केवल metaphors भी नए नहीं हैं..
येः अगर किसी और की ग़ज़ल होती तो मैं शायद कह देती की काफी अच्छी है पर तुमसे कई लोगो को बहुत उम्मीदें हैं.
आशा है तुम अन्यथा न लेकर बात को समझोगे
..
Deep
तन्हाई को टा टा कर
कुछ तो सैर सपाटा कर
फटे पुराने चाँद को सी
अपनी रातें काटा कर
आवाज़ों में से चेहरे
अच्छे सुर के छाँटा कर
बेचैनी को चैन बना
दिल के ज्वार को भाटा कर
दिल की बातें सुननी हैं?
दिल में ही सन्नाटा कर
आवारा बन जा, नज़रें
खिड़की-खिड़की बाँटा कर..
bahut khoob aatish ...agli baar no-one par aani chahiye :) best wishes
दिल की बातें सुननी हैं?
दिल में ही सन्नाटा कर
उम्दा !
sabhi doston ka bahut bahut shuqriya..jinhone ne bhi padha ya padhenge.. :) hmm koshish to yahi rahti hai meri ki nayapan lane ki koshish karun ...han baaton me nayapan nahi la sakta to kahne ke tareeke me laaun..tanhai ko tata kar jaisa misra isi koshish ka nateeza...khair agar kuch doston ko ghazal pasand nahi aayi to ..maafi chahunga.. aur agli baar kuch behtar lane ka vada hai...baki aap sab hi margdarshak hain ..dikhate rahiye raah ... :) thanku all
आतिश भाई,
आपको तो पहले भी कई दफा पढ़ चुके हैं....उस लिहाज से ये गज़ल कमज़ोर लगी...वरना, आपके कुछ शेर तो बिल्कुल ही अलग हैं...अभी आपके ब्लॉग से होकर आ रहा हूं...चांद की तीन त्रिवेणियां तो गज़ब की हैं....बिल्कुल गुलज़ार की कॉपी...
nikhil ji ..bahut bahut shuqriya aap ka...ji bilkul koshish rahegi ki aage se ghazal ke sher alag hone ke saath sath pasand bhi aayen .. :) thanx again..
आतिश जी से निश्चय ही बेहतरी की अपेक्षा तो थी मगर मुझे लगा कि कुछ ज्यादा ही तल्ख टिप्पणी कुछ विशद् पाठकों की रही..कुछ शे’र निहायत ही अच्छे लगे मुझे..जैसे कि
फटे पुराने चाँद को सी
अपनी रातें काटा कर
का स्मृतियों के नॉस्टाल्जिया से समझौता और..
आवाज़ों में से चेहरे
अच्छे सुर के छाँटा कर
मे दुनियावी ’शोर’ से ’संगीत’ को चुन लेने का जिंदगी भरी मधुर मनुहार यकीनन इस ग़ज़ल की उपलब्धि है..
आतिश जी को उनके ब्लॉग पर भी पढ़ता रहा हूँ..मै मानता हूँ कि उनकी आलोचना से यहाँ पाठकों का आशय यही है कि आतिश जी से हमें काफ़ी ज्यादा उम्मीदें हैं..उनकी आगामी रचनाओं के लिये शुभकामनाएं..!!
बेचैनी को चैन बना
दिल के ज्वार को भाटा कर
दिल की बातें सुननी हैं?
दिल में ही सन्नाटा कर
आवारा बन जा, नज़रें
खिड़की-खिड़की बाँटा कर
माना कर सारी बातें या
सारी बातें काटा कर
गजल हमारी समझ नहीं आती, किन्तु यह तो हम भी समझ गये. वाह! भाई! वाह
apoorva ji ..aur rashtrapremi ji ..aap dono ke shabdon ne hausla badhay hai ..bahut bahut shuqriya aap dono ka
aatish yugm ke liye uplabdhi ki tarah se hai.
abhi wo timtima rahe hai todo samay gujrane dijiye wo chamkenge jaroor.
akhilesh ji aap ki sahridayta aur mujhpe dikhaye gaye bharoe ke liye bahut bahut shuqriya aap ka.. :)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)