ऋषभ कुमार मिश्र 'निशीथ' पिछले महीने से हिन्द-युग्म पर सक्रिय हैं। इनकी एक कविता पिछले महीने प्रकाशित हुई थी। अप्रैल माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता ने 12वाँ स्थान बनाया है।
कविताः तुम्हें क्या
तुम्हें क्या!
कुटिल मुस्कान और कुछ नशीली बातें,
ये तुम्हारे लिए बस एक मज़ाक है|
लेकिन मैं,
इन मुस्कान और इन बातों से,
सपनों का संसार बुनता हूँ,
जीता हूँ,
लेकिन भूल जाता हूँ,
सपने तो टूटते हैं...........
तुम्हारी आहट मुझे जगाती है,
याद दिलाती है, कि
यह प्रीत तो,
अवयस्क किशोरी की नाजायज़ संतान है,
जिसे तुमने वैधता नहीं दी है,
वैधता और मान्यता तो वस्तुनिष्ठता के शब्द जाल हैं|
मुझे तुम्हारी वैधता नहीं चाहिए,
और न,
तुम्हारे समाज की मान्यता,
वैधता और मान्यता क्या कभी मुक्ति दिलाते हैं?
ये तो वस्तुनिष्ठता के भंवर में फँसाते हैं|
मैं हूँ,
हाँ मैं हूँ,
और मेरी प्रीत है|
तुम हो,
या नहीं हो,
यह निर्णय तुम्हारा है|
मैं स्वतंत्र हूँ,
तुम्हारे निर्णय से परे हूँ,
प्रीत के उन्मुक्त गगन में,
उड़ चला
मुक्त लघु कण हूँ|
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम हो,
या नहीं हो,
यह निर्णय तुम्हारा है|
मैं स्वतंत्र हूँ,
तुम्हारे निर्णय से परे हूँ,
जायज और नाजायज सापेक्ष हैं. शब्दजाल इन्हें उलझाते हैं.
सुन्दर रचना
Kai tippaniyan likh kar mita deen..ab bas yahi kehna hai...kavita bahut achhi hai dost..
सुन्दर शब्द रचना ।
यह प्रीत तो,
अवयस्क किशोरी की नाजायज़ संतान है,
जिसे तुमने वैधता नहीं दी है,
वैधता और मान्यता तो वस्तुनिष्ठता के शब्द जाल हैं|
मुझे तुम्हारी वैधता नहीं चाहिए,
और न,
तुम्हारे समाज की मान्यता,
वैधता और मान्यता क्या कभी मुक्ति दिलाते हैं?
ये तो वस्तुनिष्ठता के भंवर में फँसाते हैं|
" सुन्दर रचना "
regards
यह प्रीत तो,
अवयस्क किशोरी की नाजायज़ संतान है,
जिसे तुमने वैधता नहीं दी है,
वैधता और मान्यता तो वस्तुनिष्ठता के शब्द जाल हैं|
मुझे तुम्हारी वैधता नहीं चाहिए,
और न,
तुम्हारे समाज की मान्यता,
वैधता और मान्यता क्या कभी मुक्ति दिलाते हैं?
संतान नाजायज़ नही होती केवल वैधता की चाह ही उसे नाजायज बनाती है. इससे मुक्त हो जाने पर ही प्रीत है, किन्तु प्रीत के लिये सन्तान का फ़ल आवश्यक तो नही.
यह प्रीत तो,
अवयस्क किशोरी की नाजायज़ संतान है,
जिसे तुमने वैधता नहीं दी है,
वैधता और मान्यता तो वस्तुनिष्ठता के शब्द जाल हैं|
मुझे तुम्हारी वैधता नहीं चाहिए,
कविता का येः भाग ख़ास पसंद आया, सुन्दर रचना
Deep
मैं स्वतंत्र हूँ,
तुम्हारे निर्णय से परे हूँ,
प्रीत के उन्मुक्त गगन में,
उड़ चला
मुक्त लघु कण हूँ|
bhaavbheeni khoobsurat rachna :)
prem ka asli paath padhaati rachna ,,
kya frq padta h , jo aaj tu bhi nhi h to ..
maine to "swayam" me hi tumhe paa lia hai ..
hamesha yunh likhte rhein , dost.
apki agli rachna ka intezar rahega :)
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