मार्च माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की ग्यारहवीं कविता सित्मबर 2009 के यूनिकवि रह चुके दीपक चौरसिया 'मशाल' की है।
पुरस्कृत कविताः अधूरी जीत
तुम्हारे सच के लेबल लगी फाइलों में रखी
झूठी अर्जियों में से एक को
एक कस्बाई नेता की दलाली के जरिये
मेरे कुछ अपने लोग
हकीकत के थोड़ा करीब ले आये
आज बोलने पड़े कई झूठ मुझे
एक सच को सच साबित करने के वास्ते
वो झूठ जो तुम्हारे ही एक
कानून के घर में सेंध लगाने वाले विशेषज्ञ ने
लिख कर दिए थे मुझे
कतई नामुमकिन नहीं
कि कुछ भी अजीब सा ना लगे इसमें तुम्हें
क्योंकि तुम्हारे लिए हो चुका है ये
दाँत मांजने जैसा
पर मेरे लिए अभी भी अजीब
या शायद बहुत अजीब ही है ये
कि मेरे सच की कमाई
एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई
किसी ने कहा भी तो था पीछे से
कि 'कुछ खर्च हुआ तो हुआ
पर सच जीत ही गया आखिरकार'
और आज मैं एक बिन किये अपराध का
छोटा सा अपराधी बन
मुचलके पर रिहा हो रहा हूँ
अब बस इंतज़ार है
कल के अदालती चक्करों का..
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
कि मेरे सच की कमाई
एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई
bahut sunder kavita hai............
badhai
..कुछ भी अजीब सा ना लगे इसमें तुम्हें
क्योंकि तुम्हारे लिए हो चुका है ये
दाँत मांजने जैसा
पर मेरे लिए अभी भी अजीब
या शायद बहुत अजीब ही है ये
कि मेरे सच की कमाई
एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई
behatareen....badhai.
इस सम्मानित वेब साईट पर स्थान देने के लिए आपका आभार..
is sammaanit web site par aapkaa swaagat hai deepak .....
अरे! शीर्षक ने मुश्किल में डाल दिया.... था.... मेरे छोटे भाई की कविता बहुत अच्छी है... और अपने सम्मानित वेबसाईट पर जगह देनें के लिए आपका आभारी हूँ.....
Realy A Mashaal. Badhaai Ho Deepakji ko.
बहुत सुंदर कल फ़ुरसत से फ़िर देखूंगा
दीपक,
इसे यहाँ भेजने से पहले तुमने मुझे सुनाई थी इसे और मुझे बहुत बहुत बहुत पसंद आई थी...उस दिन तुम्हारी आवाज़ में सुना था मैंने आज पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई...बहुत बहुत बधाई तुम्हें....
आज बोलने पड़े कई झूठ मुझे
एक सच को सच साबित करने के वास्ते
औ फिर यही तो सच है
बधाई
दीपक जी ये भी बेहतरीन ..बधाई .
आज के इस युग में सच को सच साबित करने में बहुत मुश्किल आती है
दीपक जी को सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
कि मेरे सच की कमाई
एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई
deepak ji bahut-bahut badhai aapako is prabhavshali rachana ke liye.
अपनी कविता मे हमारे न्यायतंत्र की विकलांगता बहुत सधे शब्दों मे अभिव्यक्त की है दीपक जी ने..अपने सच के लिये एक अंतहीन लड़ाई लड़ते इस आम इंसान की छवि हमें अपने आस-पास ही कई चेहरों मे दिखती है..और उस लड़ाई का भवितव्य भी हमसे अंजाना नही है..मगर तंत्र के खिलाफ़ न्याय के लिये लड़ता इंसान अकेला हो कर भी अकेला नही होता यही कहूँगा..और इन पंक्तियों का अंडरकरेंट ...
कि मेरे सच की कमाई
एक झूठ को झूठ साबित करने में लग गई
निःसंदेह आपकी सबसे बेहतरीन कविताओं मे से एक..
deepak ji
accha likha hai, aapki uni kavi wali kavita : wo roj aatnakvad ...: sambhavna.com mein meri baar baar padi jane wali rachna hai.
kaash book release function mein aapse mulakaat ho pati..
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