ज़िंदगी बोनसाई हुई क्यूँकर,
मौत की चारपाई हुई क्यूँकर..
शाम से सहर की उसने घुटके,
रात से(में) बेवफ़ाई हुई क्यूँकर..
आप तो आखिरी रहनुमा न थे,
आप से आशनाई हुई क्यूँकर..
जातियाँ आपकी तो बपौती नहीं,
प्यार पे कारवाई हुई क्यूँकर..
घाव दो जब भी तो नयापन रखो,
साजिशें आजमाई हुई क्यूँकर..
-विश्व दीपक
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
दमदार गज़ल
too good - so good - perfect
घाव माँगने का अंदाज बहुत खूब..और सही भी है अब एक तरीके के घाव को झेलना तो सीख गये है अब कुछ नया होना चाहिए..बढ़िया ग़ज़ल..बधाई
विश्व दीपक जी
एक एक शेर काबिले तारीफ है सोच किसी एक के बारे में लिखूं पर लिख न सकी क्यों की सारे ही बहुत सुंदर है
जातियाँ आपकी तो बपौती नहीं,
प्यार पे कारवाई हुई क्यूँकर..
बधाई
सादर
रचना
जातियाँ आपकी तो बपौती नहीं,
प्यार पे कारवाई हुई क्यूँकर..
ग़ज़ल के कई शे’र दिल में घर कर गए।
जातियाँ आपकी तो बपौती नहीं,
प्यार पे कारवाई हुई क्यूँकर.
बहुत खूब सुन्दर गज़ल विश्व दीप जी को बधाई
क्या बात है बंधु!
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