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Tuesday, November 03, 2009

ओ कैटरपिलर! जैसे नींव में पत्थर!


मनोज कुमार जिन्हें कल ही हमने यूनिपाठक घोषित किया था, वे एक प्रखर कवि भी हैं। उनकी कविता दूसरे स्थान पर क़ाबिज़ है।

पुरस्कृत कविता- ओ कैटरपिलर!

ओ कैटरपिलर!
तितलियों पर लिखते हैं सब,
मैं लिखूंगा तुझ पर,
ओ कैटरपिलर!

गीत, छंद, नई कविता,
लिखना तितलियों पर,
करना शब्द रचना
नहीं है कोई बड़ी बात।
पर कठिन है,
लेखनी उठाना तुझ जैसों पर,
नहीं जिसकी
अपनी कोई औकात।

तेरे शरीर का खुरदरापन
बारह खंडों में विभाजित तन,
और
सौंदर्य रहित तेरी काया पर,
यदि दो-चार शब्द-चित्र गढूं,
तो शायद
मैं ही पढूं।
फिर भी लिखूंगा तुझ पर,
हे आदिम बुनकर!
ओ कैटरपिलर!

तेरी ठहरी हुई सी
गति में जो माधुर्य है,
तिल-तिल सरकने में
जो संघर्ष है, चातुर्य है,
वह तितलियों की उड़ान में कहां?
यह लाघव जहान में कहां?

नन्हें पांवों
लूप बनाकर
अपनी काया ढोना।
कभी सरल हो-होकर खिंचना,
कभी वक्र हो-होकर झुकना,
गुल-गुलेल होना।
लगता है कैसा?
बौने का हिमालय लांघने के संकल्प जैसा।

तेरी परिभाषा को न सही अभिजात्य शब्द
फिर भी,
अपनी लोच से,
मृदुलता से,
जीतना समर।
ओ कैटरपिलर!


मेंडिबुलर मुखभागों से,
हरी पत्तियां कुतर-कुतर।
किसी तरह भर पाना,
दस भागों का रेल उदर।

इसी लिए,
लोग कहते हैं कि तुम,
पौधों के लिए दुश्‍मन जैसे।
और फिर उड़ेलते तुम पर,
विषैले रसायन कैसे-कैसे।

तुम्हारे कायान्तरण से,
निकली तितलियां
जिनके नयनों को भाती,
उन्हें तुम्हारी ज़िन्दगी रास नहीं आती।

पर, सभ्यता निखरती है,
तुम्हारे देय संवर कर।
ओ कैटरपिलर!
कैटरपिलर!
तुम प्रतीक हो,
बेबस बेचारों के,
मोहताज़ मज़दूरों,
लाचारों के।
हे श्रमजीवी!
करके तैयार,
रंग-विरंगे वस्त्रों का,
रेशमी संसार।
तुम मिटते हो,
पटते हो,
जैसे नींव में पत्थर।
ओ कैटरपिलर!


पुरस्कार- रामदास अकेला की ओर से इनके ही कविता-संग्रह 'आईने बोलते हैं' की एक प्रति।

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

तेरी ठहरी हुई सी
गति में जो माधुर्य है,
तिल-तिल सरकने में
जो संघर्ष है, चातुर्य है,
वह तितलियों की उड़ान में कहां?
यह लाघव जहान में कहां?

Manoj ji, aapne likha hi nahi behtareen likha hai..nya creation and ultimate...bahut bahut badhayi..

विश्व दीपक का कहना है कि -

मनोज जी,
आपने बहुत हीं खुबसूरत लिखा है। इस कविता की प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।

बधाई स्वीकारें,
विश्व दीपक

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

कैटरपीलर पर इससे अच्छी कविता क्या हो सकती है भला!

अपूर्व का कहना है कि -

आदरणीय मनोज जी, आपकी यह बेमिसाल कविता कैटरपिलर के बहाने साहित्य और कला के प्रचिलित सौन्दर्य के बिम्बों को तोड़ती है..और श्रम के सौन्दर्य, पसीने की सुगन्ध को समाज मे उसका उचित स्थान देने के लिये प्रतिबद्ध लगती है..और साथ ही हमारे समाज के सबसे अहम्‌ मगर सबसे उपेक्षित प्रतीकों को हाइलाइट भी करती है..पढ़ कर सहसा निराला जी की गेहूँ और गुलाब की याद आती है..
एक बेहतरीन कविता के लिये आभार व युनिपाठक चुने जाने के लिये बधाई..काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा आपसे...उम्मीद है!!!

हर्षिता का कहना है कि -

समाज के उपेक्षित श्रमिक वर्ग को सुंदर और सटीक बिम्बों के माध्यम से दर्शाते हुए कवि उनके औचित्य पर भी प्रकाश डालता है। एक बहुत ही सधी हुई लेखनी का कमाल पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। कैटरपिलर तक भी कवि पहुंच सकता है, और उसे इतना महत्वपूर्ण ढ़ंग से गढ़ सकता है, मेरी कल्पना से परे था। कवि को उसके पुरस्कृत होने पर बधाई और हिन्दयुग्म को ऐसी रचना पेश करने के लिए साधुवाद।

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

कैटरपिलर!
तुम प्रतीक हो,
बेबस बेचारों के,
मोहताज़ मज़दूरों,
लाचारों के।
हे श्रमजीवी!
करके तैयार,
रंग-विरंगे वस्त्रों का,
रेशमी संसार।
तुम मिटते हो,
पटते हो,
जैसे नींव में पत्थर।

समाज के उपेक्षित वर्गों पर इतनी संवेद्य कविता दुर्लभ ही है. नए प्रतीक और उपमान गढ़ के तो आपने साहित्य का उपकार किया ही है. कविता मे छिद्रान्वेषण की अपनी प्रवृती से वशीभूत इस कविता को बार-बार पढ़ कर मैं यही निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि "भाव अनूठे चाहिए, भाषा से क्या काम ?"
धन्यवाद !!!

मयंक सिंह सचान का कहना है कि -

वाह, मनोज भाई वाह ! हमारे दैनिक जीवन में कड़ी मेहनत से हमारी सुख-सुविधाओं को सजाने वाले श्रमिक वर्ग के उत्पीड़्न को कैटरपिलर के जीवन काल से जोड़ कर आपने शिक्षित - सम्भ्रांत वर्ग की आँखों से उच्चक मनोग्रंथी (superiority complex) का चश्मा उतारने का एक नवीन और सराहनीय प्रयास किया है । ऐसे प्रयास आप आगे भी जारी रखें । यह मानवता के लिये बहुत बड़ा योगदान होगा । इस कविता को मैं तो प्रथम स्थान पर रखना चाहूँगा । हालाँकि, अच्छे कवि को इससे फ़र्क नहीं पड़्ता । बहुत - बहुत बधाई ।

Akhilesh का कहना है कि -

pathak ke taur par aapme ik alag dristhi hai vase hi kavi ke taur par bhi.
accha padne aur usse bhi accha likhne ke liye bahayee.

मनोज कुमार का कहना है कि -

ऊपर जिन सभी सुधी पाठकवृंद ने टिप्पणियां दी हैं, उन सबका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। कल के मेरे परिचय में आपने पढ़ा होगा कि मैं पेशेवर कवि नहीं हूं, पर अपनी भावनाएं और विचार बांटने के लिए लिखता हूं। जन्तु विज्ञान का छात्र था और साहित्य (हिंदी-कविता) का प्रेमी। सोचा दोनों का ऋण कैसे चुकाऊं। लिखता गया और कैटरपिलर का सृजन हो गया।

कविता रावत का कहना है कि -

तुम प्रतीक हो,
बेबस बेचारों के,
मोहताज़ मज़दूरों,
लाचारों के।
हे श्रमजीवी!
करके तैयार,
रंग-विरंगे वस्त्रों का,
रेशमी संसार।
तुम मिटते हो,
पटते हो,
जैसे नींव में पत्थर।
ओ कैटरपिलर!

कैटरपिलर! ke madhayam se aapne samaj ke upekshit varg ke jeewan sangharsh ko udghatit kar sundar bimb prashtut kiya hai uske liye aapko bahut badhai.
युनिपाठक चुने जाने के लिये बधाई.

rachana का कहना है कि -

अति उत्तम. नवीन सोच
बहुत बहुत बधाई
सादर
रचना

neelam का कहना है कि -

विचार बांटने के लिए लिखता हूं। जन्तु विज्ञान का छात्र था और साहित्य (हिंदी-कविता) का प्रेमी। सोचा दोनों का ऋण कैसे चुकाऊं।

पर मनोज जी ,
अब हम सब क्या करें जिन्होंने आपकी कविता पढ़ ली ,वो सब तो आपके कर्जदार हो गए ,कोई बात नहीं आप ऋणमुक्त होते रहिये ,हम सब कर्जदार बनते रहेंगे .
कविता के अनूठे विषय को अनूठे ढंग से प्रस्तुत करने पर बहुत -बहुत बधाई

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनोज जी,
एक कैटरपिलर जैसे जीव पर इतनी सुंदरता और सूक्ष्मता से आपने कविता लिखी है उसके लिए बधाई. कितना अच्छा बखान किया है, वाह!

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुन्दर मुद्दा है |


बधाई
अवनीश

rachana का कहना है कि -

NEELAM JI NE BAHUT SAHI BAAT KAHI HAI ME UNSE SAHMAT HOON
RACHANA

manu का कहना है कि -

कई दिन बाद आया...
पढा तो कविता का ढंग बड़ा पसंद आया....

जिसने भी लिंक दिया आपका ... सही ही दिया है....
ऐसे ही लिखते रहे..

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