दोहा गाथा सनातन :
४१ रचिए छन्द अहीर.
संजीव 'सलिल'
ग्यारह मात्री चरण ले, रचिए छन्द अहीर.
जगण-समान्ती छंद का, दूजा नाम अभीर..
दोहा परिवार के छंदों में से अभी हम उन छंदों से परिचित हो रहे हैं जिनमें दो पद तथा चार चरण होते हैं. इन छंदों में अहीर या अभीर छंद बहुत महत्वपूर्ण है. इस चरण में दोहे के सम चरण की चार आवृत्तियाँ होती हैं. सभी चरणों में सम पदांतता तथा पदांत में जगण ( I S I ) होना अनिवार्य है.
दो़हे का सम चरण ग्यारह मात्राओं का होता है. अतः, अहीर छंद में ११ - ११ मात्राओं के चार चरण होते हैं हर चरण के अंत में जगण अर्थ लघु गुरु लघु मात्रा अनिवार्य है. साथ ही सभी पदों में एक समान तुक भी आवश्यक है.
उदाहरण:
१.
तू भटका मत डोल,
ज्ञान चक्षु निज खोल.
मानव तन अनमोल,
जीवन-विष मत घोल..
-ज्वाला प्रसाद शाण्डिल्य 'दिव्य'
२.
रुक मत अडें पहाड़.
डर मत सिंह दहाड़.
मत हो कभी निराश,
तम के बाद प्रकाश..
-ॐ प्रकाश बरसैंया 'ओमकार'
३.
पाना है यदि मान,
'सलिल' न कर अभिमान.
कर प्रभु का गुणगान.
पूरा हो अरमान.. -'सलिल'
४.
फूल संग कुछ खार,
देता है करतार.
जिस पर शत उपकार.
वही करे अपकार.. -'सलिल'
५.
दादुर सम कर शोर,
देते दाँत निपोर,
होकर भाव विभोर.
वे जो हैं मुँहजोर, -'सलिल'
जिन्हें छन्द रचने में कठिनाई होती है अहीर छंद उनके लिए उपयुक्त है. इस छंद में किसी भी रस की कवितायेँ की जा सकती हैं.
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
doha ko aur adhik saralata se prstut karane ka atyant sundar dhang prstut kiya aapne udaharan bhi bade hi satik aur sundar hai...aabhar salil ji...
आदरणीय गुरु जी,
प्रणाम!
आज आपने एक नवीन छंद ' अहीर ' से परिचय कराया है. तो आपकी प्रेरणा से मैंने यह चार छंद लिखे हैं और आपके बिचार जानने की उत्सुकता है.
१.
फूल के संग पात
वैसे हैं दिन - रात
सूरज संग प्रभात
है साँस संग गात.
२.
करते नहीं ख्याल
मचता रहे ववाल
ना पूछो अब हाल
काम रहे सब टाल.
३.
जब छाते घन घोर
वन में नाचत मोर
नदी खोज कर राह
जारी रखे प्रवाह .
४.
जब होती बरसात
हरियाते सब पात
भरें खेत खलियान
पड़ जाती तब जान.
विनोद जी!
दोहा और अन्य हिंदी छन्दों में सतत रूचि लेने हेतु धन्यवाद.
शन्नो जी!
आप अहीर छंद सही लिख रही हैं. एक अनुरोध है की नए छन्द सीखने पर पहले सीखे छंद भूल न जाएँ इसलिए उन्हें भी साधते रहिये. आपको अहीर छन्द लिखने पर बधाई.
गुरु जी, धन्यबाद. हर छंद में कितनी मात्राएँ थीं व उनके नाम क्या-क्या थे उनको इकठ्ठा याद रखने की अब तक कोशिश नहीं की मैनें. जो सामने आता गया उसका मुकाबला करती गयी. आपकी कही बात मेरे भी दिमाग में कई बार आई थी की पहले वाले छंदों का विवरण भी याद रखना चाहिये. याद दाश्त भी तो घिस गई है. क्या करुँ? फिर भी कोशिश करके देखूँगी.
आदरणीय गुरु जी ,
सादर नमस्ते .
लिखने की कोशिश की है -
गुरु मिले हैं उदार
लगे हमें करतार
दोहे -सा उपहार
हम पर है उपकार .
गुरु जी,
एक और छंद प्रस्तुत है:
गागर भर कर क्षीर
लाया छंद अहीर
सब ही लगत अधीर
खाने को कुछ खीर.
गुरु जी,
आपकी कृपा से एक और अहीर छंद लिखा है:
होता नहीं सुधार
कोशिश कर हर बार
ढँक लेती जब पाप
भू जाती तब काँप.
मंजू जी!, शन्नो जी!
अहीर छंद से मित्रता के लिए बधाई.शेष संगी कहाँ हैं?
गुरु जी, प्रणाम!
छात्रों के बारे में पूछा है तो:
ना पूछें अब हाल
करते छात्र कमाल
करके टाल-मटोल
हो जाते सब गोल.
विनोद हाजिर होत
भाव से ओत-प्रोत
मंजू रखें लगाव
कक्षा का करें वचाव.
और गये सब भाग
मेरा सुनकर राग
दोहा ना अब मीत
सुनते हैं वह गीत.
मुझपर है सब आस
करती ना कुछ खास
जब जायें गुरु ऊब
मौज मने तब खूब.
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नाचत आवय नंद कन्हैया
उड़त हावय धूल रे
बाजत हावय बांसुरिया
खोंचे मोरपंख फूल ले।
Nice mem ji
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