पल में तोला,पल में माशा है
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
जाने क्यों रहती मुझको हरदम
तुझसे मिलने की अभिलाषा है
वक्त बुरा आने पर आ जाती
हर इक मन में एक हताशा है
घर लौट सदा जो आ जाती है,
वो दोशीजा ही तो आशा है
नासमझो को समझा पाओगे
यार गजल उल्फ़त की भाषा है
श्याम सखा ने तो वक्त्न-फ़वक्त्न
गज़लों में माहौल तराशा है
or
‘श्याम’तुझे हम मान गये,तूने
यार गजल को खूब तराशा है
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
पल में तोला,पल में माशा है
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
वाह, बहुत सुन्दर !
bahut hi sundar bhav.
पल में तोला,पल में माशा है
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
वाह क्या कहने बहुत सरलता से सब कुछ कह डाला
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
क्या बात है, इतनी खूबसूरत बात, इतने खूबसूरत शेर के साथ..बेहद शोख और जिंदादिल गज़ल है..अशआरों को पॉजिटिवटी के रंग देती हुई..
’उलफ़्त’ की वर्तनी कुछ खटकती है..
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है,
वाह, बहुत सुन्दर गज़ल...
बहुत ख़ूब!
पल में तोला,पल में माशा है
जीवन भी क्या खूब तमाशा है
वक्त बुरा आने पर आ जाती
हर इक मन में एक हताशा है
क्या बात है!!
एक सामन्य सी ग़ज़ल |
ठूस कर भरा शेर है मानो -
जाने क्यों रहती मुझको हरदम
तुझसे मिलने की अभिलाषा है
आप से और अच्छे शेर मिलेंगे, ऐसी कामना के साथ ...
अवनीश तिवारी
thode shbdon men gahri baaten
v n misra
आपने सही कहा है |
नासमझो को समझा पाओगे
यार गजल उल्फ़त की भाषा है
सच में आपका ब्लॉग एवं उसमे रखी
जो गजल है वह वाकई में दिल को स्पर्स्ती है |
मुंह में डालो बस घुल जाएगा
यारो ,ग़म क्या एक बताशा है
काश ऐसा होता
नीलम
Aveeneesh ne sahi kaha. saadhaaran ghazal.
Vivek
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