सुजीत कुमार सुमन लम्बे समय से हिन्द-युग्म पर कविताएँ भेजते रहे हैं। लगातार अच्छा लिखने की कोशिश कर रहे हैं।
कविता- मत समझो
गर कहा मानो मेरा किसी को भगवान मत समझो
किसी की सादगी को तुम महज पहचान मत समझो
बहुत कांटे हैं राहों में सुमन के वेश में देखो
है मुश्किल ये डगर इसको आसान मत समझो
साधते जाओ जहां तक सको साध हित अपना
कभी रिश्तों को राहों का व्यवधान मत समझो
वो और था गांधी फिरा करता था खद्दर में
भूले से भी खादी को महान मत समझो
खताएं वो भी करते हैं कद ऊंचा है जिनका
तुम उनकी बातों को कभी फरमान मत समझो
अगर पाना तुम्हें भी हो जगह ऊंची जमाने में
उठाओ जूतियां उनकी कभी अपमान मत समझो
कहा जो भी अभी मैंने तर्जुबा कच्चे वय का है
पर बात है सच्ची मुझे नादान मत समझो।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुजीत जी सचमुच आप नादान नहीं है क्योंकि इतने प्रेरणादायक सन्देश जो हैं आपकी रचना में, एक सराहनीय प्रयास है. मुझे लगता है और सुधार की जरुरत है, बधाई और शुभकामनाएं कि और अच्छा लिखें. हो सकता है मेरी नासमझी हो लेकिन मुझे लगता है:
अगर पाना तुम्हें भी हो जगह ऊंची जमाने में
उठाओ जूतियां उनकी कभी अपमान मत समझो
अगर पाना तुम्हें भी हो जगह ऊंची जमाने में
उठाओ जूतियां उनकी कभी अपमान मत समझो
औरों के साथ मेल नहीं खाता.
सुजीत जी,
बात तो पते की कही है आपने, हो सकता है कि बैरंग हो रही हो, खैर आपके मंतव्य तक तो पहुँचेगी जरूर।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
वैसे अपना तो इरादा है भला होने का
पर मज़ा और है दुनियां में बुरा होने का
बहुत कांटे हैं राहों में सुमन के वेश में देखो
है मुश्किल ये डगर इसको आसान मत समझो
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
खताएं वो भी करते हैं कद ऊंचा है जिनका
तुम उनकी बातों को कभी फरमान मत समझो
ji badhiyaa
सच्ची संदेश से ओतप्रोत बार बार पठनीय सुंदर कविता..शुक्रिया सुजीत जी भाव और सार्थक संदेशों के भरी ऐसी कविता प्रस्तुत करने के लिए..बहुत बहुत आभार
भगवान इतने महान होगये थे कि वस्त्रों की आवश्यकता न रही उनके लिये-न कि वस्त्र त्याग कर महावीर बना जा सकता है
उसी तरह गांधी जी के कारण खादी महान उद्देश्य बनी विदेशी वस्त्र त्याग हेतु- आज के नेताओं के कारण तो खादी उपहास का कारण हो गयी है।
एक और बात बस यूहीं उसका खादी या कविता से कुछ लेना-देना नहीं है। यहां गयी क्रिया रूप में है अत: गई लिखना गलत होगा
वो और था गांधी फिरा करता था खद्दर में
भूले से भी खादी को महान मत समझो
सही कहा आपने ! बहुत-बहुत बधाई सुन्दर रचना के लिये।
साधते जाओ जहां तक सको साध हित अपना
कभी रिश्तों को राहों का व्यवधान मत समझो
.....
बड़ी व्यावहारिक बात कही है
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