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दोहा गाथा सनातन: ४२
दोहा की बहिना चौपाई
दोहा की बहिना चौपाई, गुरु मात्रा पदांत में लाई.
चरण हमेशा सोलह मात्री, रचिए चौपाई सुखदात्री..
दोहा की बड़ी बहिन चौपाई मात्रिक सम छंद है जिसके हर पद में दो चरण तथा प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं.
चौपाई के हर चरण के अंत में 'जगण' तथा 'तगण' का निषेध है अर्थात गुरु मात्रा होना अनिवार्य है. हर चरण के अंत में 'यति' (विराम) होती है.
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस में दोहा और चौपाई का साम्राज्य दृष्टव्य है.
उदाहरण:
१.
बिनु सत्संग विवेक न होई, राम-कृपा बिनु सुलभ न सोई.
सत संगति मुद मंगल मूला, सोई फल सिधि सब साधन फूला.. - तुलसीदास
२.
मीन विलग जल से जब होती, तडप-तडप निज जीवन खोती.
बुझे शीघ्र जल दीपक-बाती, जब न सनेह भरी रह पाती..ओमप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'
३.
नेतागण हैं सिक्का खोटा, जैसे बेपेंदी का लोटा.
लूट-बेच खा रहे देश को, जोड़ रहे धन क्या हमेश को? - सलिल
चौपाई में हर रस का रंग देखा जा सकता है. समर्थ कवि के लिए यह छंद सरस्वती का वरदान है.
महाकाव्यों और खंडकाव्यों में इस छंद की महत्ता देखी जा सकती है.
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
गुरु जी,
वन्देमातरम!
सबसे पहले दोहे की दूसरी बहिन (दोही की छोटी बहिन?) चौपाई के सम्मान में प्रस्तुत है:
स्वागत चौपाई का करुँ, सादर है अभिनंदन मेरा
अब कब तक को डालेंगीं यह, यहाँ कक्षा में बहिना डेरा?
आगे-पीछे गुरु के डोले, इतने सारे चेला-चेली
अब खाली-खाली कक्षा लगे, मैं बेचारी यहाँ अकेली.
चीजें मँहगी सभी हो रहीं, हो मुश्किल से बड़ा गुजारा
घर में एक कमाने वाला, दूजा कोई नहीं सहारा.
घर में राशन रहता है कम, है खर्चों का बोझा सारा
कितना अच्छा लगे सभी को, मुफ्त में हो कहीं भंडारा.
लेन-देन की झंझट शादी, मंहगाई ने बहुत मारा
चक्कर में दहेज़ के बेटा, बस बैठा ही रहा कुँवारा.
बढ़ते ही रहें भाव अक्सर, मंहगाई के पड़ें डंडे
वैसे तो पैसे की तंगी, पर खूब जिमाते हैं पंडे.
मुद्दों पर होती हैं बहसें, और अक्सर जुलूस निकालें
पर उनकी जेबें भर जातीं, यह नेता हैं किस्मत वाले.
सलिल जी, आपके द्वारा प्रस्तुत चौपाई रचना के सरल और सटीक उदाहरण बहुत ज्ञानवर्धक हैं. दोहा और चौपाई रचना में निहित बारीकियों को आपने बखूबी समझाया है..नये और उत्सुक कवियों के लिए बहुत बढ़िया जानकारी..
बहुत बहुत आभार!!!
चौपाई सम्बन्धी शिक्षाप्रद तथा ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए सलिल जी को धन्यवाद्.
आदरणीय गुरु जी ,
सदर नमस्ते .
हमेशा की तरह शिक्षाप्रद -ज्ञानवर्धक चौपाई का खजाना मिला .आभार .
चौपाई लिखने की कोशिश की है -
जब अनंत नभ की गोदी में , भोर किरण जागे सोने से ,
तब काले नभ की झोली से ,रात की कालिमा रोती है .
अविराम अरुणिमा की लाली ,करे रवि उदय की तैयारी .
नीले नभ में फैली लाली ,दिखे नववधु की लाल साडी.
आप सभी को चौपाई में रूचि लेने हेतु आभार. इस सशक्त छंद के दोनों चरणों का स्म तुकांती होना आवश्यक है. दिए गए उदाहरणों को ध्यान से देखकर प्रयास कीजिये. शन्नो जी और मंजू जी ने सराहनीय प्रयास किये हैं, उन्हें बढ़ाई के साथ अनुरोध की कुछ और प्रयास करें ताकि और अच्छी चौपाईयाँ बन सकें.
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