न हिन्दू की न मुस्लिम की किसी ग़लती से होता है,
यहाँ दंगा सियासतदान की मर्ज़ी से होता है।
ज़मीं सरमाएदारों की है या है हम किसानों की,
हमारे मुल्क में ये फैसला गोली से होता है।
नज़र मज़लूम ज़ालिम से मिला सकते नहीं अक्सर,
शुरू ये सिलसिला शायद किसी बागी से होता है।
तरक्की-याफ़्ता इस मुल्क में खुशियाँ मनाएं क्या,
हमारा वास्ता तो आज भी रोज़ी से होता है।
गुज़र जाते हैं जो लम्हे वो वापस तो नहीं आते,
मगर अहसास अश्कों का किसी चिट्ठी से होता है।
कहाँ तक रौशनी जाए फलक से चाँद तारों की,
ये बटवारा जहाँ में आप की मर्ज़ी से होता है।
(सियासतदान = राजनीतिज्ञ सरमाएदार = पूंजीपति मजलूम = अत्याचार-पीड़ित फलक = आसमान)
--प्रेमचंद सहजवाला
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
सच बात को आपने बहुत ही सहजता से कह दिया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपकी बात से शत-प्रति सहमत !!
"यहां दंगा सियासतदान की मर्जी से होता है"
न हिन्दू की न मुस्लिम की किसी ग़लती से होता है,
यहाँ दंगा सियासतदान की मर्ज़ी से होता है।
Behatreen gazal..desh ke siyasatdaron ko ek sandesh deti hui ki kuch to sudhar jaye...gazab ki rachana..dhanywaad
ज़मीं शरमाएदारों की है या हम किसानों की
हमारे मुल्क में ये फैसला गोली से होता है
--वाह! बेहतरीन गज़ल
गुज़र जाते हैं जो लम्हे वो वापस तो नहीं आते,
मगर अहसास अश्कों का किसी चिट्ठी से होता है। ..
bahut sahi...
गुज़र जाते हैं जो लम्हे वो वापस तो नहीं आते,
मगर अहसास अश्कों का किसी चिट्ठी से होता है।
kya sun likha hai.
ji sahi kaha aaj to jangal raj hai.
bahut khub
saader
rachana
यह ग़ज़ल जीवन्त मानवीय द़ष्टिकोण की नई परिकल्पना के संवेदनशील पहलुओं को दिखाती है।
गुज़र जाते हैं जो लम्हे वो वापस तो नहीं आते,
मगर अहसास अश्कों का किसी चिट्ठी से होता है।
बधाई मेरी स्वीकारें वाह-वाह होंठ कहते हैं,
सहज से कह दिया सबको यहाँ कैसे क्या होता है।
यह ग़ज़ल नही वरन् एक आइना है जो एक विकास के असमान रास्ते पर बढ़ती हुई छुद्र राजनीति और निहित स्वार्थ से दूषित हुई डेमोक्रेसी के विकृत हो रहे चेहरे के सामने रखा गया है..और कितने बड़े सच छुपाये हुए
तरक्की-याफ़्ता इस मुल्क में खुशियाँ मनाएं क्या,
हमारा वास्ता तो आज भी रोज़ी से होता है।
उम्मीद है कि तरक्की की खुशियाँ मनाने वाले इस सच से और मुँह नही चुरा पायेंगे..
आभार इस बेमिसाल ग़ज़ल के लिये
अनुभवों से भरी एक दमदार रचना लगी |
बधाई |
कहाँ तक रौशनी जाए फलक से चाँद तारों की,
ये बटवारा जहाँ में आप की मर्ज़ी से होता है।
बहुत सही है |
अवनीश तिवारी
बहुत शानदार गजल सहजवाला जी...
आपको ताजा हालात पर लिखने में खूब महारत हासिल है..
हालाते हाजरा पर लिखी ये प्रभावशाली रचना है :
तरक्की-याफ़्ता इस मुल्क में खुशियाँ मनाएं क्या,
हमारा वास्ता तो आज भी रोज़ी से होता है।
बहुत सुन्दर लिखा है ,रचनाकार को मुबारकबाद
kya baat hai ....behad anand aaya ..sahaj aur prabhavshali rachna
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