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Monday, October 12, 2009

नानी ने भेजे होंगे


प्रतियोगिता की छठवीं कविता के रचनाकार रवि मिश्रा एक पत्रकार हैं। इससे पहले इनकी एक कविता मई महीने की प्रतियोगिता में प्रकाशनार्थ चुनी गई थी।

पुरस्कृत कविता- सोने दो

सुबह की पलकें खोले कौन
हिंडोले में ना डोले कौन
पुतली को सोने दो
सपना है, सपना ही सही
होने दो, आज मुझे सोने दो।

बड़े दिनों के बाद
ये लहरें चौखट तक आयी हैं
कोई बदरी मेरे छत की
इस दूर देस में छाई है
खाली हैं, खाली ही सही
होने दो,
आज मुझे सोने दो।

इक धान की बाली फूट गई
और मेरे तकिये पर बिखर गई
लाल-लाल एक धूप सुबह की
अलसाई पलकों में उतरी
उतरी और निखर गई
और इंद्रधनुष का एक घेरा भी है
झूठा है, होने दो
आज मुझे सोने दो।

पैरों में लगी फिर गीली मिट्टी
बीते कल से आई है चिठ्ठी
लिखा बहुत कुछ अक्षर-अक्षर
भरे लिफ़ाफे परियों के पर
नानी ने भेजे होंगे
वरना कौन करेगा
बड़े हुए हम बच्चों की फ़िकर
बातें हैं, होने दो
आज मुझे सोने दो।


पुरस्कार- डॉ॰ श्याम सखा की ओर सेरु 200 मूल्य की पुस्तकें।

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

बहुत ही बढिया.....

मनोज कुमार का कहना है कि -

इस कविता को पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिली और काफी संतुष्टि प्रदान कर गई यह कविता।

Jayesh Sharma का कहना है कि -

i remember my childhood............

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

कविता अच्छी लगी...

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..बधाई!

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..बधाई!

राकेश कौशिक का कहना है कि -

कविता का भाव सुंदर है|

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