कुमार आशीष हिन्द-युग्म के पुरानों पाठकों में से हैं। हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता के पाँचवें अंक (मई 2007) के यूनिपाठक रह चुके हैं। कई बार इनकी कविताएँ भी शीर्ष 10 में प्रकाशित हुई हैं। एक लम्बे अंतराल के बाद ये दुबारा लौटे हैं अपनी एक कविता के साथ।
पुरस्कृत कविता- श्रमिक
जिस श्रम से प्रशान्त हो जीवन
वह पवित्र तप बन जाता है
श्रम-रस से मधुसिक्त मनुज जो,
सहज रूप सबको भाता है
जिस तन में श्रमरूप स्वयं
श्रीराम अवतरित हों उस तन में
सारे तीर्थ रमण करते हैं
तीर्थराज वह बन जाता है
उद्यमशील मनुष्य कभी भी
नहीं हारता जीवन-रण में
यदि उद्यम विराट का वन्दन
बन जीवन को महकाता है
श्रम तो है समष्टि की सेवा
इसका स्वाद उसी से पूछो
एकछत्र जीवन-निधियों की
जो यह कुंजी पा जाता है
प्रथम चरण मिला स्थान- नौवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- नौवाँ
पुरस्कार और सम्मान- मुहम्मद अहसन की ओर से इनके कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक प्रति।
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
Shramik...bahut sundar kavita..
shram ek shakti hai jisase manushy kuch bhi prapt kar sakata hai bas sahi disha me shram kare.
badhiya kavita..badhayi
श्रम का महत्व बहुत खूबी के साथ बताया .बधाई .
श्रम और श्रमिक के बारे में बहुत ही भावपूर्ण रचना देने के लिए बधाई। दो पंक्तियां पेश हैं -
किसी काम का नहीं, अनर्जित जीवन में जो आया।
सुख व शांति उसी ने पाई, जिसने स्वेद बहाया।
एक सार्थक और उत्तम रचना के लिए मेरी बधाई |
अवनीश तिवारी
अच्छी रचना है......
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