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Friday, November 09, 2007

दूध का फ़िर कोई धुला न हुआ (चौथी कविता)


कुमार आशीष और हिन्द-युग्म का बहुत पुराना रिश्ता है। मई माह के यूनिपाठक रह चुके हैं। जब भी अवसर मिलता है यूनिकवि प्रतियोगिता एवम् काव्य-पल्लवन में भाग लेते हैं। हिन्द-युग्म का भविष्य सुनहरा हो-इसके लिए मार्गदर्शन देते रहते हैं। कई बार टॉप १० में रह चुके हैं। आज इनकी ग़ज़ल 'दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ' की बात करेंगे। यद्यपि हम सभी कविताओं पर पेंटिंग देना चाहते थे, लेकिन ग़ज़ल में अमूमन एक भाव तो होता नहीं है, हर शे'र अलग बात कहता है, इसलिए चित्रकारों को भी असुविधा हुई। पर दीपावली गिफ्‍़ट की तर्ज़ पर हम यह ग़ज़ल आशीष जी की आवाज़ में रिकार्ड करके लाये हैं। नीचे के प्लैयर को चलाकर सुनिए।


यदि इस प्लेयर से सुनने में परेशानी आ रही है तो यहाँ से डाऊनलोड कर लीजिए।

नाम- कुमार आशीष
जन्‍मतिथि- 16 जून 1963
शिक्षा- बी.एससी., एम.ए. (अर्थशास्‍त्र), एलएल.बी., पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा इन कम्‍प्‍यूटर टेक्‍नालाजी एण्‍ड इ‍ंजिनीयरिंग।
जन्‍म जनपद सुलतानपुर के लालडिग्‍गी मोहल्‍ले में हुआ। आरम्‍भिक शिक्षा-दीक्षा अपने पैतृक जनपद फ़ैज़ाबाद में हुई। साहित्‍य से गहरी अभिरुचि बचपन से ही रही। 12 वर्ष की उम्र में पहली कविता लिखी और उसके बाद साहित्‍य की विविध विधाओं यथा कहानी, कविता, गीत, गजल, नाटक, लघुकथा, लेख आदि में स्‍वान्‍त:सुखाय सृजन-कार्य किया। कुछ समय पत्रकारिता से भी जुड़े रहे। आकाशवाणी में युववाणी की कम्‍पीयरिंग भी की। वर्तमान में जिला ग्राम्‍य विकास अभिकरण, फैजाबाद में कम्‍प्‍यूटर प्रोग्रामर के पद पर कार्यरत हैं।

चिट्ठा - http://suvarnveethika.blogspot.com

ई-मेल - asheesh.dube@gmail.com

सम्‍पर्क -
8/2/6, स्‍टेशन रोड, फैजाबाद-224001 (उ.प्र.)

दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ

दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ
मुझ सा इन्‍सान काफिला न हुआ

तेरे कूचे से अबकी यूं गुजरा
द‍रमियां कोई फासला न हुआ

तुमसे वादा था मगर क्‍या करते
जख्‍म चाहत का फिर हरा न हुआ

फिर तो यूं भी कि मेरी हालत पे
दुश्‍मनों का भी हौसला न हुआ

मेरे आने की इत्तिला न हुई
मेरे जाने का कुछ गिला न हुआ

जजों की दृष्टि-


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८, ५॰६
औसत अंक- ६॰७
स्थान- नौवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰९, ८
औसत अंक- ६॰९५
स्थान- तीसरा


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- अच्छा प्रयास है। रचनाकर में संभावनाएँ हैं ,........कुछ पूर्तियों में निर्वाह-भर करने की कोशिश दीखती है। गज़ल का प्रत्येक शे'र उतना ही मारक होना चाहिए जैसे दोहा। २ पंक्ति की कसावट में पूरा कथन चामत्कारिक रूप से प्रकट होता हो।
अंक- ६॰२
स्थान- चौथा


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
अच्छी रचना है, बहुत चमत्कृत करने वाले या कि पैने तो नहीं, तथापि, कई शेर मनभावन हैं।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ६॰६/१०
कुल योग: १३॰६/२०


पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

"राज" का कहना है कि -

आशीष जी ,
आपकी रचना बहुत ही अच्छी है ....परिपक्वता और तजुर्बे का बोध होता है .......बहुत ही अच्छी शैली का प्रयोग हुआ है...
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दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ
मुझ सा इन्‍सान काफिला न हुआ

तुमसे वादा था मगर क्‍या करते
जख्‍म चाहत का फिर हरा न हुआ

फिर तो यूं भी कि मेरी हालत पे
दुश्‍मनों का भी हौसला न हुआ
**********************************
बधाई हो !!!

शोभा का कहना है कि -

आशीष जी
बहुत-बहुत बधाई । दीपावली पर आपकी सुन्दर काविता किसी तोहफ़े से कम नहीं । जितनी सुन्दर कविता है उतनि ही अच्छी पढ़ी है आपने । बधाई स्वीकारें ।

व्याकुल ... का कहना है कि -

आशीष जी ,
रचना बहुत ही सुंदर है ..अच्छा प्रयास किया है ..आशा है आगे भी इसी प्रकार आप हमे अपनी सुंदर रचनाएँ पढ़वाते रहेंगे ...शुभ दीपावली मुबारक हो
''फिर तो यूं भी कि मेरी हालत पे
दुश्‍मनों का भी हौसला न हुआ''
उच्चतम

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर रचना, आगे भी ऐसी रचानाओं की आकांक्षा है

बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

ग़ज़ल तो चुस्त-दुरुस्त है ही, आवाज़ उसमें और निखार ला रही है। आगे कुछ ऐसा लिखें कि प्रथम हो जावें।

RAVI KANT का कहना है कि -

आशीष जी,
कमाल की गज़ल और आ्वाज भी।

तेरे कूचे से अबकी यूं गुजरा
द‍रमियां कोई फासला न हुआ

ऐसा शेर जो जीने लायक है।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

गज़ल और आवाज दोनों ही प्रसंशनीय।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Avanish Gautam का कहना है कि -

बहुत बढिया!

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