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Tuesday, August 11, 2009

दोहा गाथा सनातन: 29 विडाल दोहा


ब्यालिस लघु गुरु तीन ले,रचिए दोहा नित्य.
नाम 'विडाल' मिला इसे, दे आनंद अनित्य.

दोहाकार प्रवीण जो, लिखते वही विडाल.
मात्र तीन गुरु वर्ण ले, कहते बात कमाल..

वर्ण बयालीस लघु लगें, सच जी का जंजाल.
जिस दोहे में हों सजे, उसका नाम विडाल..

सूत्र: विडाल दोहा = ३ गुरु + ४२ लघु = कुल ४५ मात्राएँ

उदाहरण:

१.
नटखट मन अटपट चलन, अरुण नयन मद-मस्त.
जन-जन-मन विचलित करे, कर सद्गति-पथ ध्वस्त. -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'

२.
लहिय न बढ़ि बरि अरुनि-तिय, जिय हनि बड़वरि हानि.
कहँ सिरमनि तिन हित धरी, जिन सिरमनि कुल कानि. -डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'

३.
निश-दिन शत-शत नमन कर, सुमिर-सुमिर गणराज.
चरण-कमल धरकर ह्रदय, प्रणत- सदय हो आज. -सलिल

४.
डगमग-डगमग सतत चल, डग-डग मग कर पार.
पग-पग पर पद चिन्ह नव, प्रमुदित विकल निहार.. -सलिल

५.
निरख-परख जड़ जगत नित, अमित-अजित बन आत्म.
कण-कण तृण-तृण लख कहे, सकल जगत परमात्म.. -सलिल

६.
सरल-तरल रह सलिल सम, अजित अपरिमित शक्ति.
सतत अवतरित हो अगर, अविचल प्रभु-पद भक्ति.. -सलिल

७.
अनिल अनल जल धरणि नभ, सकल चर-अचर भूल.
'सलिल' वतन-रज सर चढा, बरबस सब अनुकूल..

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24 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

प्रणाम गुरुदेव,

अपनी उपस्थिति के साथ होम वर्क के दो विडाल दोहे भी आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ. आपकी प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता है:

उछल-उछल, करवट बदल, कलकल कर उस पार
गिरत-पड़त मचलत लहर, फिसल जात जल-धार.


गरजत, बरसत छनन-छन, घन ही घन हर ओर
चमक-दमक बिजली करत, मचत हर तरफ शोर.

Divya Narmada का कहना है कि -

वाह...वाह...शन्नो जी आपने कमल का र्दिया, बाजी मार ली. एकदम शुद्ध विडाल रच दिया.

बहुत-बहुत बधाई.

Divya Narmada का कहना है कि -

शन्नो जी! शुद्ध दोहा-लेखन हेतु यह लीजिये आपका उपहार,
छन- छन छन-छनन छन, थिरक-थिरक घनश्याम.
लिपट-लिपटकर चमक सँग, खिल-खिल पड़ें सुनाम..

gazalkbahane का कहना है कि -

सलिल जी नेट पर समग्र दोहा सामग्री प्रस्तुत करने हेतु आप सचमुच बधाई के पात्र हैं,मसि कागद छुओ नहीं कलम गहि नहिं हाथ, की दूसरी पंक्ति मुझे कहीं नहीं मिल रही कृपया बतलाएं
सादर श्याम सखा श्याम

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,
आपसे उपहार पाकर मैं बहुत हर्षित हूँ. मेरी भावनाएं मेरे विडाल दोहे में पढिये:

मन गदगद अति अब भवत, भरत नयन हर बार
जतन लगत सफल सुखमय, गुरु दें जब उपहार.

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

सुंदर दोहा और गुरु जी का उपहार भी..
बधाई!!!

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,
दोहे के उपहार के लिए बहुत धन्यबाद. उसे सदैव सम्मान से संभाल कर रखूँगी.

श्याम जी के दोहे की दूसरी लाइन क्या हो सकती है, वास्तव में मुझे कुछ नहीं पता. पूछा भी आप से है लेकिन मुझसे नहीं रहा गया. आप दोनों मुझे क्षमा करियेगा. और अब आप बतायें की मेरी सोची दूसरी लाइन कैसी है:

यह विधि दोहा रचन की, प्रभु लिखि दीनी माथ.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नो जी तो हर बार ही बाजी मार ले जाती हैं, यहाँ तो नींद ही देर से खुलती है। पोस्‍ट अभी ही देखी और इतना सब पहले ही हो गया। एक दोहा लिखा है आचार्य जी पास करें तब बात बने।

जगत जगत अब नहीं रहत

सजग रहत सब चोर

अँखियन बरजत कहि रहत

लुटत सबहि चहुँ ओर।

Arshia Ali का कहना है कि -

Saarthak Dohe.
{ Treasurer-S, T }

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,
एक और विडाल आपकी सेवा में लायी हूँ:

रह-रह नयन खुलत रहत, सजग रहत चित चोर
नयन खुलत सिमटत सपन, जगत जगत में भोर.

अजित जी,
सोते समय मेरा ध्यान करिये और भोर होते ही आपकी निद्रा उड़नछू हो जायेगी. अपनी निद्रा तो अधिकतर जल्दी ही खुल जाती है. पता नहीं क्यों?अब मेरी बात पर अमल करिये फिर देखिये सफलता मिलती है की नहीं जल्दी जगने में.

Manju Gupta का कहना है कि -

विडाल के बारे में जानकारी मिली , आभार .दोहा लिखने की कोशिश की है-
झटपट झटपट चटपट चटपट कर हर काम.
समय समय पर फिर बिस्तर पर करो अराम.

manu का कहना है कि -

मसि कागद छुओ नहीं..
कलम गहि नहि हाथ.........

इस लाईन में या तो प्रिंटिंग मिस्टेक है ...
या क्योंकि मेरा दोहा-ज्ञान कुछ भी नहीं है...
या मैं इसे फिलहाल शायरी के मूड से पढ़ रहा हूँ.....

एकदम इसी लाईन पे अगर कुछ मिला बी तो शायद वो गलत हो...
बाकी आचार्य को मालूम होगा...क्यों के दोहा के बारे में वो ही ज्यादा जानते हैं....
:)

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अरे मनु जी!
आपने आज कक्षा की तरफ रुख किया .....हम सब पर बड़ी मेहरबानी की. बहुत ही ख़ुशी हुई देख कर. रही दोहा की बात तो.....आपका दोहा-ज्ञान मुझसे तो कई गुना ज्यादा है. क्योंकि आपको प्रिंटिंग मिस्टेक होने का शक हुआ और मुझे तो कुछ महसूस ही नहीं हुआ. गज़लों की दुनिया में तो धमाल मचा ही रखी है आपने. लेकिन इधर दोहा लिखने में भी आप कम नहीं हैं. वह अलग बात है की आजकल आपका मूड नहीं है. पर हम सब सब्र से उसका इंतजार कर रहे हैं की कब आप कुछ फुलझड़ी छोडें.

नित दिन कुछ दोहा लिखे, रही मूढ़ की मूढ़
मैं विनीत एक शिष्या, 'सलिल' ज्ञान के गूढ़.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नो जी, आपका सिमरन तो हमेशा ही करती हूँ लीजिए एक दोहा आपकी सेवा में -
सिमरन अब किस विध सरल

अँखियन डर दिखलाय

जगत रहत फिर कब सुबह

नहीं यह सच की राय।

एक अन्‍य विडाल दोहा भी देखें -
तड़क-भड़क जग में बहुत

किधर रहत सुविचार

लखत-लखत अब नहिं मिलत

शरम रहत किस पार।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी,
शुभ-प्रभात

हाय राम! Timing तो देखिये अजित जी, हम दोनों ने एक समय ही टिपण्णी लिखी. आज जरा आँखें देर से खोलीं. सोचा आपका साथ दूं जरा देर से उठ के. लेकिन आज अपने लापता मनु जी बाजी मार ले गये हैं उठने में और कक्षा में तशरीफ़ लाये हैं. अब लीजिये आपकी याद में भी मेरी तरफ से कुछ:

सिमरन तो मैं भी करुँ, सोच जहाँ हैं आप
अँखिया थकतीं कर-कर, मात्राओं की नाप.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

और हाँ, अजित जी मैं कहना भूल गई की आपके दोनों दोहे बहुत ही अच्छे लगे.

धन्यबाद.

सदा का कहना है कि -

सरल-तरल रह सलिल सम, अजित अपरिमित शक्ति.
सतत अवतरित हो अगर, अविचल प्रभु-पद भक्ति..

बधाई!

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नों जी फिर चूक हो गयी। तेरह की जगह बारह हैं।

शन्‍नो जी गिनती करे, मात्रा की हो चूक
आँखे चंचल क्‍या करे, रहत कभी ना मूक।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

धन्यबाद अजित जी, मेरी गलती पकड़ने के लिये और इंगित करने के लिये भी. मुझे भी अब सुझाई दे रही है. आपका मतलब शायद 'अँखिया' से होगा. है ना? तो लीजिये, वह तीसरा चरण फिर से लिख दिया है. वैसे आपको सूचित कर दूं की मैं फिर कुछ देर को झपकी ले चुकी हूँ और अब दिनचर्या का मुकाबला करने को तैयार हूँ. सबसे पहले सोचा की आपको चिंता-मुक्ति कर दूं.
पिछली कक्षा में सबके सब बच गये गलतियाँ करके. कभी-कभी ऐसा भी होता है, है ना.
'TO ERR IS HUMAN TO FORGIVE DIVINE'

सिमरन तो मैं भी करुँ, सोच जहाँ हैं आप
थकी-थकी अँखिया करें, मात्राओं की नाप.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी प्रणाम,
निम्नलिखित विडाल दोहा पहले का है:

रह-रह नयन खुलत रहत, सजग रहत चित चोर
नयन खुलत सिमटत सपन, जगत जगत में भोर.

अब मैंने उपर्युक्त दोहे के अंत के चरण में परिवर्तन किया है आपकी प्रतिक्रिया देखने के लिये:

रह-रह नयन खुलत रहत, सजग रहत चित चोर
नयन खुलत सिमटत सपन, जब करवट ले भोर.

Divya Narmada का कहना है कि -

श्याम सखा जी!

दोहा गाथा में आपका हार्दिक स्वागत. हिंद युग्म और आपके सहयोग से यह सारस्वत अनुष्ठान अपनी पूर्णता की और अग्रसर है.

आपने जिस अर्धाली को इंगित किया है उससे संबंधित पूरा दोहा और इसे कहे जाने की पृष्ठभूमि पर आगामी पाठ में चर्चा होगी ताकि यह हाशिये में न रह जाए.

अजित जी!

'नहीं' के स्थान पर 'नहिं' हो तो दोहा बिलकुल सही है. बधाई.

मंजू जी!

दोहा १३-११, १३-११ मात्राओं के दो पदों से बनता है. विडाल में ३ गुरु तथा ४२ लघु मात्राएँ अनिवार्य है. आपके दोहे में कुछ बदलाव कर उसे विडाल का रूप दिया है. देखिये कैसा है?

झटपट-झटपट समय पर, अनथक कर सब काम .
चटपट-चटपट निबटकर, जप नित प्रति हरि-नाम..

मनु जी!

आप आये बहार आयी...

मित्र-भाव अनमोल है, यह रिश्ता निष्काम.
मित्र मनाये-मित्र की, सदा कुशल हो राम..

चर्चित पंक्ति कबीर की है. स्थान-स्थान पर पाठ भेद की चर्चा हम पूर्व में भी कर चुके हैं. अगले पाठ में शेष चर्चा होगी. आपके दोहों की प्रतीक्षा है.

शन्नो जी!

आप ऐसे ही प्रयास करें...सफलता सन्निकट है. भाषिक प्रवाह, शब्द-चयन और मात्राओं के प्रति सजग रहें, जरा सी असावधानी त्रुटि बन जाती है.

अजित जी!

आप अपने समृद्ध तथा देशज शब्द भंडार और अभिव्यक्ति सामर्थ्य का जितना अधिक प्रयोग करेंगी दोहे उतना अधिक चित्ताकर्षी होंगे.

Manju Gupta का कहना है कि -

सलिल जी ,
बढिया दोहा बन गया .सुधार के लिए धन्यवाद

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सलिल जी को बधाई.

Pooja Anil का कहना है कि -

प्रणाम गुरूजी,
कक्षा में तो आई , पर दोहा नहीं रच पाई . कोशिश जारी है , शायद लिख सकूं....!!! शन्नो जी और अजित जी सिद्ध हस्त हैं , दोनों को हार्दिक बधाई .

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