ब्यालिस लघु गुरु तीन ले,रचिए दोहा नित्य.
नाम 'विडाल' मिला इसे, दे आनंद अनित्य.
दोहाकार प्रवीण जो, लिखते वही विडाल.
मात्र तीन गुरु वर्ण ले, कहते बात कमाल..
वर्ण बयालीस लघु लगें, सच जी का जंजाल.
जिस दोहे में हों सजे, उसका नाम विडाल..
सूत्र: विडाल दोहा = ३ गुरु + ४२ लघु = कुल ४५ मात्राएँ
उदाहरण:
१.
नटखट मन अटपट चलन, अरुण नयन मद-मस्त.
जन-जन-मन विचलित करे, कर सद्गति-पथ ध्वस्त. -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'
२.
लहिय न बढ़ि बरि अरुनि-तिय, जिय हनि बड़वरि हानि.
कहँ सिरमनि तिन हित धरी, जिन सिरमनि कुल कानि. -डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'
३.
निश-दिन शत-शत नमन कर, सुमिर-सुमिर गणराज.
चरण-कमल धरकर ह्रदय, प्रणत- सदय हो आज. -सलिल
४.
डगमग-डगमग सतत चल, डग-डग मग कर पार.
पग-पग पर पद चिन्ह नव, प्रमुदित विकल निहार.. -सलिल
५.
निरख-परख जड़ जगत नित, अमित-अजित बन आत्म.
कण-कण तृण-तृण लख कहे, सकल जगत परमात्म.. -सलिल
६.
सरल-तरल रह सलिल सम, अजित अपरिमित शक्ति.
सतत अवतरित हो अगर, अविचल प्रभु-पद भक्ति.. -सलिल
७.
अनिल अनल जल धरणि नभ, सकल चर-अचर भूल.
'सलिल' वतन-रज सर चढा, बरबस सब अनुकूल..
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