प्रतियोगिता के अगले विजेता जीष्णु हरिशरण मॉरिशस निवासी हैं। 12 दिसम्बर 1988 को जन्मे जीष्णु B. A. (Hons) हिन्दी के विद्यार्थी हैं। इन्हें जब कभी भी मौका मिलता है, कविता लिख देते हैं। अपनी सारी उपलब्धियों का श्रेय ये अपने परिवार और अपने गुरुजनों की सहायता/ प्रोत्साहन को देते हैं।
पुरस्कृत रचना- एक बच्चे को
आज,
न चाहकर भी देख आया मैं
स्कूल से लौटते हुए एक बच्चे को
फटे उसके गंदे जूतों को
पुराने कमीज़ के असाधारण रंग-बिरंगे बटनों को
पतलून के ज़िप पर लगे पिन को
मैले रंगहीन बसते को
देख आया मैं।
आँखों में उसके देखा
एक ओर थकान थी
तो दूसरी ओर खुशी
एक ओर व्यस्तता थी
तो दूसरी ओर शांति
एक ओर दारिद्रय था
तो दूसरी ओर पूर्ती
तब एका एक
दिल से दुआएं निकलीं
प्रार्थनाएँ निकलीं
दुःख हुआ पर खुशी भी मिली
कि अच्छा है-
संघर्ष है
सपने हैं
आशाएं हैं...
मंजिल भी मिल जाएगी
पर हे प्रभु!
इन छोटी-छोटी मासूम आँखों को
धोखा मत देना
देर ही सही
इन नन्हे पैरों को
अपनी मंजिल तक पहुVचा देना
लेकिन
इतना भी सहायक न बन जाना
कि ये ही पद
एक दिन
दूसरों को कुचल कर आगे बढ़ जाए.
इसलिए
इन्हें नियंत्रित रखना
मार्ग दिखाना
ठोकर देना
आँचल भी देना
आज
न चाहकर भी
देख आया मैं
स्कूल से लौटते हुए एक बच्चे को
प्रथम चरण मिला स्थान- चौदहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- आठवाँ
पुरस्कार- समीर लाल के कविता-संग्रह 'बिखरे मोती' की एक प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
dua kubul ho aap ki ....
जीष्णु जी को बहुत बहुत बधाई एक कविता मे कई सवाल गहरे से उठ जाते हैं बहुत बडिया अभार्
siidhe saral prakaar se , kavita ke maadhyam se ek gehri baat kahi gayi.
badhaayi
sidhe hridya me uttar gayi yah rachana .....bahut hi sundar ....pruskaar ke liye badhaaee
सकारात्मक और भावो की गहराई के लिए बधाई .
इतना भी सहायक न बन जाना
कि ये ही पद
एक दिन
दूसरों को कुचल कर आगे बढ़ जाए.
bahut achchhe...
बहुत ही सुन्दर व मन को छूती हुई रचना है.
इन छोटी-छोटी मासूम आँखों को
धोखा मत देना
देर ही सही
इन नन्हे पैरों को
अपनी मंजिल तक पहुVचा देना
लेकिन
इतना भी सहायक न बन जाना
कि ये ही पद
एक दिन
दूसरों को कुचल कर आगे बढ़ जाए.
इसलिए
इन्हें नियंत्रित रखना
मार्ग दिखाना
ठोकर देना
आँचल भी देना
Eshvar apki prathna puri kare .
svednaye abhi jivit hai sabit kar diya aapne .
bdhai .shubhkamnaye
अति सुंदर, समस्या के साथ समाधान भी, दुःख के साथ सुख की आस भी, दर्द के साथ दुआ भी . बहुत उतम रचना .
इतना भी सहायक न बन जाना
कि ये ही पद
एक दिन
दूसरों को कुचल कर आगे बढ़ जाए.
इसलिए
इन्हें नियंत्रित रखना
मार्ग दिखाना
ठोकर देना
आँचल भी देना
आज
न चाहकर भी
देख आया मैं
स्कूल से लौटते हुए एक बच्चे को
कविता को एक सुन्दर अंत दिया आपने. मुबारकबाद.
आपके बारे में जानकर अच्छा लगा की इतनी दूर रहकर भी मातृभाषा के प्रति प्रेम है.
अत्यंत मार्मिक सत्यता से भरी रचना...
सच्चाई को बयां करती बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)