बादल-बिजली गड़गड़-कड़कड़ चमके सारी रात।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
खिड़की-कुण्डी खड़खड़-खड़खड़ सन्नाटे का शोर
करवट-करवट जागा करता मेरे मन का चोर
मेढक-झींगुर जाने क्या-क्या कहते सारी रात
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
अंधकार की आँखें आहट और कान खरगोश
अपनी धड़कन पूछ रही है तू क्यों है खामोश
मिट्टी की दीवारें लिखतीं चिट्ठी सारी रात
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
बूढ़े बरगद पर भी देखो मौसम की है छाप
नयी पत्तियाँ नयी लताएं लिपट रहीं चुपचाप
जुगनू-जुगनू टिम-टिम तारे उड़ते सारी रात
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
टुकुर-टुकुर देखा करती है सपने एक हजार
पके आम के नीचे बैठी बुढ़िया चौकीदार
उसकी मुट्ठी से फिसले है गुठली सारी रात
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
कवि- देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
vaah devendra ji bahut khoobsurat...
मुंबई में तो खूब बरसात हो रही है .सच का सेलाब शब्दों के प्रतीकों से कविता में वर्षा है बधाई
देवेन्द्र जी बहुत ही अच्छा लगा, पूरा गीत मनभावन है
निम्न पंक्तियाँ मन को छु गई |
*
मिट्टी की दीवारें लिखतीं चिट्ठी सारी रात
*
बहुत खूब |
सादर
विनय के जोशी
वाह, देवेन्द्र साहब वाह, क्या बढ़िया कविता है. अत्यंत मधुर, सुरीली, रिमझिम में भीगती, अपनी मिटटी से जुडी,
सुंदर भावुकता को पिरोए असली गाँव, देस मिटटी की कविता, जितनी तारीफ की जाए कम
waaaah kya bat kahi hai aap ne ..sachmuch lazwaab .... craft behad khubsurat hai is geet ka ..
अच्छी लगी. सावन की पहली बारिश का चित्रण अच्छा है. लेकिन शायद इसमें अभी कुछ और बातें बढाकर इसको और सुन्दर बनाया जा सकता था. लेकिन इतनी भी कम सुन्दर नहीं.
बूढ़े बरगद पर भी देखो मौसम की है छाप
नयी पत्तियाँ नयी लताएं लिपट रहीं चुपचाप
जुगनू-जुगनू टिम-टिम तारे उड़ते सारी रात
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् टिप्-टिप्-टिप्-टिप् सावन की बरसात।।
टुकुर-टुकुर देखा करती है सपने एक हजार
पके आम के नीचे बैठी बुढ़िया चौकीदार
उसकी मुट्ठी से फिसले है गुठली सारी रात
वाह देवेन्द्रजी ! सुन्दर गीत पढ़ कर मजा आ गया
सहज अभिव्यक्ति
सूखे-सूखे गुजरते सावन में ये गीत पढ़ कर वो सावन ताजा करा दिए जो किसी वक़्त देखे थे...
लगा के जैसे दूर देहात में बैठ कर सावन का मजा ले रहा हूँ..
बहुत ही सुन्दर कविता है.
सावन की बरसात होती ही ऐसी है कि कलपनायें अपनी उड़ान भरने लगती हैं
देvवेन्द्र जी के शब्दों ने बिन बरसात भी बारिश का एहसास करवा दिया है सुन्दर सामयिक रचना बधाई
बूढ़े बरगद पर भी देखो मौसम की है छाप
नयी पत्तियाँ नयी लताएं लिपट रहीं चुपचाप
जुगनू-जुगनू टिम-टिम तारे उड़ते सारी रात
बहुत ही सुन्दरता के साथ व्यक्त किया आपने मौसम की खुशगवारी को बधाई ।
रिमझिम फुहार और आपके एहसास......खूबसूरत बन पड़े हैं
बहुत ही सुन्दर गीत ..सावन की तरह
वाह भई वाह।
सबकर प्रशंसा पढ़ के मजा आ गयल। ई मन बड़ा स्वार्थी हौ ... जब आपन कविता छपे ला तs ई होला कि सबै प्रशंसा करें । ई प्रशंसा पत्र में श्रीमान मुहम्मद अहसन साहब कs प्रशंसा पढ़के मन ढेर गदगद हो गयल.. लगल की जैसे जमके आलोचना करsलन वैसे जमके प्रशंसा भी कैले हऊअन ।
एक बात से मन जरूर खिन्न हौ ...कि अभहिन ले नीलमजी क कउनो प्रतिक्रिया ना मिलल।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
देवेन्द्र साहब,
मुझे याद है आप की एक कविता पर मेरी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी. आज इस कविता की प्रशंसा कर रहा हूँ, इस की सोंधी महक और कबित्त के कारण.
मैं अपने आप से और कविता से तब भी ईमानदार था और अभी भी हूँ.
मेरा अब भी मानना है कि कवि की भूमिका समाज सुधारक या धर्म प्रचारक की नहीं होती है . वह तो मात्र चित्रकार है जो रंगों की जगह शब्दों का इस्तेमाल करता है. आप ने इस कविता में बहुत अच्छे रंग भरे हैं.
-मुहम्मद अहसन
बूढ़े बरगद पर भी देखो मौसम की है छाप
नयी पत्तियाँ नयी लताएं लिपट रहीं चुपचाप
माटी की सोंधी खुशबु रिमझिम फुहार नजाने क्या क्या महसूस हो रहा है क्या लिखा है आप ने
सादर
रचना
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