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Friday, July 17, 2009

गज़ल-श्याम सखा`श्याम'






















तन
कंचन मन चंद- वन


मुख से शरमाए दर्पन



थी छोटी सी इक उलझन

घेर लिया है पूरा मन


जब से छोड़ गए साजन

ताना मारे है जोबन


पिंजरे में देखी मुनिया

कैद हुआ खुद हीरामन


ग़म तो दिल में मीठा था

आंख बनी फिर क्यों सावन


कांटो से कैसा शिक्वा
थामा तो मेरा दामन


दिल ही तुझको क्या दूं मैं

तुझपर न्यौछावर जीवन


`श्याम' गोपियों संग गया

ढूंढ रही तू क्या जोगन



12/5/03

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

gazalkbahane का कहना है कि -

मित्रो!
कुछ दिन से यहां जेनेवा में हूं २ महीने और रहने का कार्यक्र्म है.मौसम,कुदरत,मनुष्य सभी सुन्दर ,सभ्य हैं/शायद जिसने इसे धरती कास्वर्ग कहा है ठीक ही कहा है-first impression तो यही है सप्ताह भर में
कहीं भीड़ भी है तो भारत ,अमेरिका या यू.के हांगकांग या बैंकाक जैसा उतावला पन लिये नहीं है
डायरी व एक उपन्यास लिख रहा हूं आशा है पूरा होगा तब आपसे साझा करूंगा

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत खूब !!

सदा का कहना है कि -

कांटो से कैसा शिक्वा
थामा तो मेरा दामन

बहुत ही बेहतरीन ।

Manju Gupta का कहना है कि -

दूर हो तो क्या हुआ ?गजल में तो हो. श्याम सखा जी
बधाई सरल सहज शेली में दिल की बात कही है.

manu का कहना है कि -

`श्याम' गोपियों संग गया--( जेनेवा....?---)
ढूंढ रही तू क्या जोगन

:)

sunder...!!!!!!!!!

M VERMA का कहना है कि -

कांटो से कैसा शिक्वा
थामा तो मेरा दामन
=====
gaharee baat. dairy aur upanyas lekhan ke liye hardik shubhkamnayen.

Harihar का कहना है कि -

तन कंचन मन चंद- वन
मुख से शरमाए दर्पन
श्यामजी! सहज भाषा में सुन्दर गज़ल बन पड़ी है

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत फिलोस्फिकल है ये शेअर

थी छोटी सी इक उलझन
घेर लिया है पूरा मन

Disha का कहना है कि -

एक अच्छी रचना.
जिनेवा के अनुभवों से पूर्ण आपकी रचनाओं का इंतजार रहेगा

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

बहुत ही बढिया.....

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

पिंजरे में देखी मुनिया
कैद हुआ खुद हीरामन

waah bas ...yaad aa gayi teesari kasam ...achhi ghazal hai shayam ji

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