गम भुलाकर दिमाग खुश होना चाहता है
ये दुखी दिल जी भर के अब रोना चाहता है
ढो लिये चाँद-तारे आकाश उकता गया अब
बावला रे ! तु चैन से सोना चाहता है
कैद हैं सब टेन्शन टकराते मेरे भीतर
तेज जलता चिराग अब बुझना चाहता है
लुट गई तो न बच सकेगी धरती पे कहीँ
आबरू को डूबाके वो मरना चाहता है
हँस न पाया हँसी कभी मासूम सी जो
भटक कर फूल वो कहाँ बोना चाहता है
चाँद पर रात भर यों काला डामर टपकता
पाप धरती से जो हुये ; धोना चाहता है
-हरिहर झा
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये शेअर अच्छा लगा.
जो घर में दे न पाया एक मासूम हँसी
भटक कर कहाँ फूल बोना चाहता है
बहुत उम्दा गज़ल । पढ़ कर मजा आ गया । बधाई ।
bahut hi umda sher likhe hai aapne .....bahut bahut badhaee
ढोकर चाँद-तारे आकाश उकता गया
बावला चैन की नींद सोना चाहता है
कैद हैं सब तनाव दिमाग के लोक-अप में
दर्द का अहसास, दिल खोना चाहता है
लुट गई तो बच न पायेगी इस धरती पर
इज्जत को पानी में डूबोना चाहता है
Harihar Ji Namaste,
Bahut sunder panktiyaan, badhai ..
अच्छे शे'एर
ढोकर चाँद-तारे आकाश उकता गया
बावला चैन की नींद सोना चाहता है
जो घर में दे न पाया एक मासूम हँसी
भटक कर कहाँ फूल बोना चाहता है
चाँद नहा कर अँधियारी रात के डामर से
धरती के पाप चाँदनी से धोना चाहता ही
खराब शे'एर
ग़म भुलाकर दिमाग खुश होना चाहता है
दुखी दिल अब केवल रोना चाहता है
कैद हैं सब तनाव दिमाग के लोक-अप में
दर्द का अहसास, दिल खोना चाहता है
लुट गई तो बच न पायेगी इस धरती पर
इज्जत को पानी में डूबोना चाहता है
-मुहम्मद अहसन
.लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाई .रात की तुलना डामर से की .अच्छी उपमा है.. .
बहुत सुंदर शब्द हैं धन्यवाद
लय-ताल में आने की अच्छी कोशिश......
बधाई..
जो घर में दे न पाया एक मासूम हँसी
भटक कर कहाँ फूल बोना चाहता है
वाह क्या कहना
बहुत ही बढ़िया शेर
जो घर में दे न पाया एक मासूम हँसी
भटक कर कहाँ फूल बोना चाहता है
यूं तो हर शेर बहुत ही अच्छा पर इसकी बात सबसे अलग, अलग ही अन्दाज बहुत अच्छा लिखा आपने ।
आप का ये अंदाज़ अच्छा लगा ये शेर पसंद आया
जो घर में दे न पाया एक मासूम हँसी
भटक कर कहाँ फूल बोना चाहता है
सादर
रचना
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