सूत्र:
अहिवर दोहा - ५ गुरु ३८ लघु = ४३ अक्षर
परिभाषा:
दोहा परिवार का यह सदस्य 'ठुमक-ठुमक रामचन्द्र बाजत पैंजनियाँ' की स्मृति जगाता है.
अहिवर दोहे को पढ़ते समय यही प्रतीत होता है कि कोई नटखट नन्हा ठुमकता-मचलता चला जा रहा है.
अहिवर दोहे में ५ गुरु तथा ३८ लघु कुल ४३ अक्षर होते हैं. इस दोहे की रचना करते समय प्रारंभ में यथासंभव बिना मात्रा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए.
उदाहरण:
१.
लटकि-लटकि लटकत चलत, डटल मुकुट की छांह.
टक भइयौ नटु मिलि गयौ, अटक-भटक बन मांह. -महाकवि बिहारी
२.
पाटल-दल सम अधर पर, तिल मधुकर रस-लीन.
लख तिल-तिल दिल जल रहा, घृत बिन दीपक दीन. -सलिल
३.
बढ़त-बढ़त सम्पति सलिल, मन-सरोज बढ़ि जाय.
घटत-घटत पुनि नहिं घटत, बरु समूल कुम्हिलाय.
४.
कवि मन सावन सघन घन, कवि मानस जलधार.
उमड़-घुमड़ बरसात सतत, चल-चल सबके द्वार. -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'
५.
नटखट झटपट लपटकर, मधुर-मधुर कह बैन.
डगमग-डगमग पग रखे, माँ परवश बेचैन.. -सलिल
६.
जनप्रतिनिधि बनकर 'सलिल', पद-मद चखकर चूर.
जनगण-मन आहत अगर, सपने चकनाचूर..
७.
हम-तुम, यह-वह, सकल जग, विधि-हरि-हर का खेल.
उसकी मन-मरजी 'सलिल', शुभ कह, हँसकर झेल..
अहिवर दोहे रचना जटिल है. अतः, अपेक्षकृत कम दोहाकार इन्हें रच पाते हैं.
इस लेखमाला के नियमित पाठक इस चुनौती को स्वीकार कर अपने तथा दोहे अन्यों के दोहे भेजें.
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
दोहा की २७ वीं कक्षा में ठुमक ठुमक गाने पर कत्थक डांस याद आ गया .आज पता लगा की दोहे का गीत बना है .ज्ञानवर्धक जानकारी मिली .आभार .
मंजू जी!
आपका अनुमान ठीक नहीं है. 'ठुमक चालत राम्म्चंद्र बाजत पैंजनिया' भजन की रचना संभवतः गोस्वामी तुलसीदास ने की. राम-भक्ति काभज यह भजन गायकों तथा नर्तकों में अपनी अद्भुत भावाभिव्यक्ति के कारण लोकप्रिय है. मैंने इस लेख में इस भजन के कुछ शब्दों का प्रयोग 'अहिवार दोहे' की प्रवृत्ति इंगित करने के लिए किया है.
आचार्य जी तो गुणी हैं ,गुण बांट रहे हैं ,मगर युग्म हैडर पर करगिल विजय ????
क्या चोर या बदमाश को घर से निकाल बाहर करना विजय कहलाता है अगर आप भाजपाई नहीं है तो ?
दिन-प्रतिदिन जानकारी बढ़ रही है हमारी
धन्यवाद
पड़ोसियों को अपने घर से निकल बाहर करने के लिए देश-हितों की उपेक्षा, सीमाओं की अनदेखी, राजनैतिक मतभेदों को राष्ट्रीयता पर वरीयता और पड़ोसियों की ज्यादतियों को सहन करने की बुरी आदत (कुटैव या लत) पर विजय पाने की वर्ष गांठ को विजय दिवस कहना ठीक ही तो है.
आपके दोहा ज्ञान की कक्षाओं से मेरा दोहा ज्ञान लगातार बढ़ रहा है. आपको इस कम के लिए बधाई.
गुरु जी,
प्रणाम
मैंने एक अहिवर दोहा लिखने की कोशिश की है. डर रही हूँ सोचकर की यह प्रयत्न सफल है या नहीं. इस पर आप अपनी प्रतिक्रिया दें, कृपा करके.
थिरकत चलत चंदन-बदन, करत रूप अभिमान
मन पल-पल मचलत फिरे, चलत नयन से बान.
सभी पाठकों, टिपण्णीकारों और प्रशंसकों का आभार.
शन्नो जी !
आपने दोहा कक्षा-नायिका हेतु अपने चयन को सही सिद्ध करते हुए अच्छा 'अहिवर दोहा' रचा है. प्रथम पद में १४ मात्राएँ हैं, इन्हें १३ कर लीजिये, गुरु ५ के स्थान पर ६ हैं. अधिक से अधिक दोहे रचिए, उन्हें प्रकाशित करने के पहले शब्द अदल-बदल कर, आगे-पीछे कर, समानार्थी या सम वजन के शब्दों का प्रयोग कर जाँचिये. जब लय, अर्थ, कथ्य, बिम्ब- प्रतीक तथा पद-भार सभी दृष्टियों से सही पायें तभी प्रकाशित करें. अपने लेखन के प्रति निर्ममता की सीमा तक निष्पक्ष व् निरपेक्ष रहें. कम छपे पर केवल अच्छा छपे तो ही गंभीर व श्रेष्ठ रचनाकारों में गणना होगी. आपमें प्रतिभा है. पूर्व कक्षाओं में अपने प्रारंभिक प्रयासों को देखकर आज के लेखन से तुलना करें तो प्रगति की मात्रा व दिशा का आभास होगा. पुराने दोहों को दोबारा लिखें तो स्वयं बहुत से परिवर्तन कर सकेंगी. इस अभ्यास से दोहा सिद्ध होने लगेगा. सामयिक श्रेष्ठ दोहांकारों के दोहे बार-बार पढिये, उनके खूबियाँ खोजिये और अपने दोहों में लाने का प्रयास करिए पर नकल न हो इस दिशा में सतर्क रहें. कई बार अनजाने में ही हम किसी अन्य कवि की पूरी या आधी पंक्ति का प्रयोग कर लेते हैं और तब जागरूक पाठक या समालोचक उसे इंगित करता है.
आपके बहाने यह सलाह सभी नवोदित दोहांकारों को दे रहा हूँ. दोहा को लिखने के बाद बार-बार गुनगुनाइए. इससे उसकी लय में कोई शब्द खातात रहा होगा तो पकड़ में आएगा, ऐसे शब्द को बदलें. धीरे-धीरे बिना मात्रा गिने अपने आप सही वज़न का दोहा अवतरित होने लगेगा. आप सबको यहाँ तक पहुँचना है, बिना रुके, बिना थके. शुभकामनायें
अपने दोहे में 'थिरकत' को 'थिरक' तथा 'चन्दन' को 'मलयज' करें. 'रूप अभिमान' के मध्य संयोजक चिन्ह '-' चाहिए. 'रूप का अभिमान' में 'का' शब्द को संयोजक चिन्ह का प्रयोग कर हटाया गया है. चिन्ह न हो तो यह अशुद्धि गिना जायेगा.
थिरक चलत मलयज-बदन, करत रूप-अभिमान
मन पल-पल मचलत फिरे, चलत नयन से बान.
आचार्य जी
वन्देमातरम्। अहिवर दोहा लिखना बड़ा ही श्रम साध्य है लेकिन आपकी प्रेरणा से अब सब कुछ आसान लगता जा रहा है। एक प्रयास किया है, आशा है उचित हो। -
जगमग-जगमग अब करे
मन, जुगनू सब ओर
गरजत-बरसत मेह तब
वन परिसर चहुँ ओर।
सलिल जी की रचनाओं पर टिप्पणी करने की क्षमता मेरी कलम मे नहीं है नमन है उनकी कलम को आभार्
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये आभार्
गुरुदेव,
सादर नमन!
आपने मेरे लिखित दोहे के प्रथम पद में १४ मात्राएँ गिनी. लगता है की चंदन में आपको ४ मात्राएँ लगीं. लेकिन मैंने टंकड़ (बिंदी को) एक मात्रा समझ कर दोहा रचा था. उस हिसाब से गुरु ५ ही बने. मैंने आपके उदाहरणों में भी टंकड़ (बिंदी) को एक मात्रा में पढ़ा है.
आप परम ज्ञानी हैं. यह मेरा सौभाग्य है की इतनी दूर रहते हुए आप से मार्ग-दर्शन हो रहा है. दोहों में एक ऐसा आकर्षण होता है की मैं लिखने के प्रयास को रोकना चाहकर भी अपने को रोक नहीं पाती हूँ अब. इसीलिए आप को मेरा एक और अहिवर दोहा पढने का कष्ट करना पड़ेगा. मुझे क्षमा करियेगा गुरुदेव, अभी तक तो हार नहीं मानी है लेकिन आने वाले समय के बारे में अनिश्चित हूँ. गलतियाँ हो रही हैं. मन को भी मारना होगा.
आता है वह दिन जभी, मन पर होगा भार
छोडूँ तब दोहा-जगत, मानूँगी मैं हार.
अब यह रहा वह अहिवर दोहा:
११११ २ ११ ११ १११ १११ १२ ११ २१
कलियुग में हर जन भ्रमित, बदल रहे नर-नार
१११ १११ २ ११ १११ ११११ १११ १२१
करम-धरम ना मन बसत, बदलत रहत बिचार.
अंत में मुझे कहते हुए इतना हर्ष हो रहा है की आपने मेरे पहले अहिवर दोहे के प्रथम चरण को सही और सुंदर रूप देकर उसे और मोहक बना दिया. अति धन्यबाद!!
अजित जी!
'अहिवर दोहा रचने हेतु बधाई. मैं आप और शन्नो जी की प्रतिभा और दोहा-प्रेम के समक्ष नतमस्तक हूँ.
दिग्गज दोहाकार भी शार्दूल, अहिवर आदि की रचना नहीं कर पाते. मैं कई दोहा संग्रहों में एक भी ऐसा दोहा नहीं पाता.
शन्नो जी!
आप और पलायन? ये तो विरुद्धार्थी शब्द हैं. आपका पर्याय तो जिजीविषा, लगन और सफलता है.
आपके दोहों में यत्किंचित कमी भी मुझे खटकती है, इसलिए इंगित कर देता हूँ. इससे आपको निराशा हो तो मुझे अनदेखा कर दें.
बिंदी और चन्द्र बिंदी का अंतर समझ लें. हँसना में 'हँ' की १ मात्रा होगी, यह लघु है. हंस में 'हं' की दो मात्राएँ हैं, यह गुरु है. दोनों का उच्चारण करें तो अंतर समझ सकेंगी. दोनों को घड़ी सामने रखकर २५-३० बार सामान संख्या में बोलें तो उनके उच्चारण में लगे समय में अंतर पाएँगी. अक्षर को गुरु-लघु में उच्चारण में लगे समय के आधार पर ही बाँटा गया है.
चंदन = चन्दन = २ + १ + १ = ४, चँवर = १ + १ + १ = ३. हो सकता है कहीं मैंने बिंदी और चन्द्र बिंदी लगाने में गलती की हो, इसका मुझे खेद है.
दोहां गाथा के प्रारंभ के ३-४ पाठ पढने पर अधिक जानकारी मिल जायेगी.
खड़ी बोली में गुरु मात्रावाले कई अक्षर भोजपुरी, अवधी, बृज आदि लोकभाषाओँ में लघु बोले जाते हैं, क्रिया के जो रूप लोकभाषाओँ में प्रयुक्त किये जाते हैं उन्हें खड़ी बोली में दोष माना जाता है.
मैं नहीं चाहता कि आप में से किसी की भी रचना को समालोचक कम आंकें, इसलिए सजग करता रहता हूँ.
आदरणीय गुरुदेव
प्रणाम!
आपकी टिप्पणी पढ़कर मुझे आपका यह बताना अच्छा लगा की शब्दों के उच्चारण करते समय उनमें कहाँ और कैसे टंकड़ की जरुरत है या नहीं. उसी समय मुझे यह भी महसूस हुआ की इस बार आपने मेरे दोहे पर कोई कमेन्ट नहीं किया. आप मेरी कमियों को इंगित करते है इसी से ही तो मैं अपने को सुधार सकती हूँ. कक्षा में मेरे आने का सारा उद्देश्य ही यही है. वह तो बस मेरा मन जरा गलतियाँ अधिक हो जाने की वजह से कुछ डूब सा गया था. और यह भी डर लगा की मुझ जैसी शिष्या से कहीं आप झींक या ऊब तो नहीं गये हैं. A feeling of self-conciousness and incompatibility was sweeping over me and I felt so disappointed with myself that a sudden thought of quitting doha-kaksha came in my mind, thinking if my efforts don't ever get any better in future. That's all, nothing more than that. But thanks for lifting up my spirit again. I don't think I deserve so much praise coming from you, but thank you for that because it feels nice too. It's so kind of you if you really think I deserve that. But, please, keep pointing at my mistakes in future otherwise how will I improve myself in doha-writing. My only fear is......just in case you get fed-up if I continue making mistakes with every piece of work I produce. How can I then face whole kaksha? Guru ji, I am sorry for any misunderstanding caused by any of my comments. The work I present in kaksha is all my own idea (original). I don't have any Hindi literature to read or copy here and my Hindi- shabdkosh is not all that good now. And so, every so often I fret over it. Never mind all that.
अजित जी का हिंदी-शब्दकोष का ज्ञान कितना अच्छा है यह उनके दोहे पढ़ने से ही प्रतीत हो जाता है. अजित जी को बहुत-बहुत बधाई. मुझमें जो कमियां हैं उन्हें overlook नहीं किया जा सकता है.
तो चलिए अब सब पर अपना मूड ठीक होने की ख़ुशी में एक और अहिवर दोहे की try
की जाये. पर इस बार कृपा करके इस दोहे पर व पिछले दोहे पर कमेन्ट अवश्य दीजियेगा. आपकी डांट भी तो कभी-कभी अच्छी लगती है और सबके आनंद का विषय बन जाती है.
सुख की बस पल भर झलक, दुःख विरहन के साथ
करम करत नितदिन भले, नियति लिखति सब माथ.
प्रणाम गुरु जी,
मेरा एक और अहिवर दोहा ठुमकी देने आया है. इस पर भी अपना मत दीजिये:
घटत-बढ़त यश-मान, धन, फलत नहीं अभिमान
मधुर वचन पुलकित करत, सब गावत गुण-गान.
any-mouse ji...
kyaa kabhi aapke ghar mein daaku ghuse hain...?????
aap kabhi ek baar khud roo-b-roo hoyen kaafgil se....!!
uske baad comment kar ke bataaiyegaa ke ..
VIJAY kyaa hai..
BAHAADURI kyaa hai..
shanno ji ..waah...majaa aa gayaa..
pranaam aachaarya....
roman mein likhne ki maafi...
mujhe jaraa mushkil lag rahaa hai...
fir aataa hoon....
A very good article indeed.
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