रविकांत अनमोल ने अप्रैल महीने की कविता में जहाँ शीर्ष 10 में स्थान बनाया, वहीं मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में शीर्ष 20 में बने रहे। जून माह की प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता शीर्ष 20 में है, आपके समक्ष प्रस्तुत है।
रचना- क्या लिखूँ?
"भाषा भावनाओं को प्रकट करती है"
यह पढ़ा था
लेकिन जब भावनाएँ
शब्दों में ढलने से इनकार कर दें
और जब शब्द
भावनाओं के हमजोली न हों।
तो तुम ही कहो
मैं क्या कहूँ, क्या लिखूँ?
तुम्हें मैं रोज़ ही एक चिट्ठी लिखता हूँ,
सोच के कागज़ पर
कल्पना की कलम से।
शब्द उसके कुछ धुँधले होते हैं
पर भाव सटीक साफ़।
और रोज़ ही
मुझे तुम्हारा उत्तर मिलता है।
रोज़ ही मैं तुमसे मिलता हूँ
अपनी कहता हूँ
तुम्हारी सुनता हूँ।
लेकिन शब्दों का सहारा लिए बिना।
क्योंकि मेरे लिए
भाव एक चीज़ हैं और शब्द बिल्कुल दूसरी
भाव सूक्ष्म हैं और शब्द स्थूल
भाव निर्मल हैं और शब्द मलिन
भाव ब्रह्म हैं और शब्द संसार
इसलिए भाव कभी शब्दों में नहीं बँधते।
इसीलिए शब्द भावों के हमजोली नहीं होते।
भाव लिखे नहीं जाते और न कहे जाते हैं।
फिर भी
तुम्हारे आग्रह पर ऐ दोस्त
मैं कागज़ कलम लिए बैठा हूँ
अब तुम ही बताओ
मैं क्या कहूँ?
क्या लिखूँ?
प्रथम चरण मिला स्थान-उन्नीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- अठारहवाँ
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ही उम्दा सोच और बहुत अच्छी कल्पना
तुम्हें मैं रोज़ ही एक चिट्ठी लिखता हूँ,
सोच के कागज़ पर
कल्पना की कलम से।
bilkul sahi kaha.........bhavon ko shabdon mein dhalna kahan itna aasan hota hai gar aisa hota to ab tak ek hi vishay par baar baar na likha gaya hota kyunki koi bhi bhavon ko poorna roop de hi nhi paya ya kaho wo shabd hi nhi bane jo sampoorna bhavon ko pakad sakein.
ek sashakt rachna.
बहुत ही सुन्दर रचना
बधाई
सही बात है कभी कभी भावना शब्दों में बन्धने से इंकार कर देती है और तब कविता मात्र शब्दों का खेल बन के रह जाती है
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
रचना
rachanaa ji ke comment se sahmat...
bahut sahi likhaa hai aapne...
ek bhatki hui kavita jo achchhi hote hote reh gayi.
बह्त सुन्दर कविता है सच मे ही भावों को शब्द् देना आसान नहीं होता शब्द मिल भी जायें तो भी उसमे वो संवेदना नहीं मिलती शुभकामनायें
शब्द उसके कुछ धुँधले होते हैं
पर भाव सटीक साफ़।
और रोज़ ही
मुझे तुम्हारा उत्तर मिलता है।
रोज़ ही मैं तुमसे मिलता हूँ
अपनी कहता हूँ
तुम्हारी सुनता हूँ।
लेकिन शब्दों का सहारा लिए बिना।
क्योंकि मेरे लिए
भाव एक चीज़ हैं और शब्द बिल्कुल दूसरी
बहुत सुन्दर कविता
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने आभार्
अगसन साहिब आपकी टिप्पणी कुछ अस्पष्ट है कृपया कुछ और स्पष्ट करें तो आभारी रहुँगा
सादर
अनमोल
अहसन साहिब आपकी टिप्पणी कुछ अस्पष्ट है कृपया कुछ और स्पष्ट करें तो आभारी रहुँगा
क्या लिखूं कह कर आपने सब कुछ व्यक्त कर डाला..सुंदर भाव से सजी आपकी कविता लाजवाब है..
बधाई हो!!!
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