पिछले महीने हम आपका परिचय युवा कवि जितेन्द्र दवे से करवा चुके हैं। इस बार फिर इन्होंने शीर्ष 20 में स्थान बनाया है।
रचना- कुंठाएं
कागज़ पर पड़ी
उल्टी-सीधी रेखाएं
लक्ष्य-विहीन
अस्त-व्यस्त
दर्प से ग्रस्त
एक-दूसरे को
दबाने-काटने को उतारू
कुंठा से सनी
न उभर पाती
न ही उभरने देती
दूसरों के आस्तित्व को
इसी जद्दोजहद में
नहीं ढल पाती
किसी सुन्दर कृति में
सृजन की आंच की बजाय
जो झुलसी हैं
ईर्ष्या की दाह से
लिए हुए दर्द
एक-दूसरे को न निगल पाने का
प्रथम चरण मिला स्थान-पाँचवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- उन्नीसवाँ
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ही खूबसूरत कविता है. बहुत ही बढ़िया. जितनी तारीफ की जाये कम हैं. उम्दा दिखाई देती है इस कविता में
सोच कागज़ पर पड़ी
उल्टी-सीधी रेखाएं
लक्ष्य-विहीन
अस्त-व्यस्त
दर्प से ग्रस्त
एक-दूसरे को
दबाने-काटने को उतारू
कुंठा से सनी
न उभर पाती
न ही उभरने देती
दूसरों के आस्तित्व को
इसी जद्दोजहद में
नहीं ढल पाती
किसी सुन्दर कृति में
सृजन की आंच की बजाय
जो झुलसी हैं
ईर्ष्या की दाह से
लिए हुए दर्द
एक-दूसरे को न निगल पाने का
बहुत ही सुन्दर और गहराई लिये हुई रचना
सृजन की आंच की बजाय
जो झुलसी हैं
ईर्ष्या की दाह से
लिए हुए दर्द
एक-दूसरे को न निगल पाने का
आत्मचिन्तन की दिशा में एक बहुत सुन्दर रचना ।
कुंठाओं का सर्जन लाजवाब है ,बधाई
ईर्ष्या की दाह से
लिए हुए दर्द
एक-दूसरे को न निगल पाने का
सृजन करने के बजाये आज कल लोग इर्षा में ज्यादा लगे रहते हैं
आप की बात सही है
अच्छा लिख है आप ने
रचना
hindi wala system kaam nahi kar rahaa hai....
par aapki rachanaa bahut-bahut pasand aayee....
sahi kahaa hai aapne..
बहुत अछ्छा उदहारण पेश कर के समझाया है..बेहद सुन्दर चित्रण..
शुक्रिया.. इतनी सुन्दर कविता पढने का मौका देने के लिए..
सादर
शैलेश
कागज़ पर पड़ी
उल्टी-सीधी रेखाएं
लक्ष्य-विहीन
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आभार्
इसी जद्दोजहद में
नहीं ढल पाती
किसी सुन्दर कृति में
सृजन की आंच की बजाय
जो झुलसी हैं
ईर्ष्या की दाह से
लिए हुए दर्द
एक-दूसरे को न निगल पाने का
इस कविता के सन्दर्भ में क्या कहूँ, जुबान सिल गई है, कितनी सच्ची बात को कितनी आसानी से आपने कह दिया. बधाई.
सृजन की आंच की बजाय
जो झुलसी हैं
ईर्ष्या की दाह से
लिए हुए दर्द
एक-दूसरे को न निगल पाने का
बहुत ही सुंदर कविता है बधाई स्वीकार करें.
अमिता
सभी सुधी पाठकों सहित साहित्य-अनुरागियों और हिंद-युग्म को आभार. आपकी प्रतिक्रियाएँ मुझे और भी बेहतर लिखने की प्रेरणा देंगी.
dave sahab
accha likha hai aapne.
ik hi prateek se poori rachna rach ker aap prabhavit kerte hai.
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