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Monday, April 13, 2009

कोंख में बिटिया


माँ
जब भी तुम
बकरी के छौने को
गोद में उठाती हो
तुम्हारे चेहरे पर
छलक आती है हँसी.
बड़े होकर ये छौने
बकरी बनकर वंश बढ़ाएँगे
और बकरों को
सौंप देती हो कसाई को
चंद रूपयों के बदले।

माँ
तुम खुश होती हो
टोकरी में अंडों पर
बैठी मुर्गी को देखकर
चूजों को पहचानने लगती हो
फुदकती है मुर्गियां आंगन में
और कुछ समय बाद
ये मुर्गे डालते हैं
कुछ और रूपये
तुम्हारी उसी थैली में.

मां...
गाय को गाभिन देखकर
इतराने लगती हो
बछड़े बड़े होकर
बंध जाते हैं
किसी और की आंगन में
और तुम्हारी थैली
कुछ और भारी हो जाती है.
मां....
मैं देख रही हूँ
यह सब
तुम्हारी कोंख से,
सुन रही हूँ
तुम सबकी बातें...
बैठे हैं सब,
बेटे की आस में,
मुझे जनमते ही सब
देंगे तुम्हें ताने
करेंगे तुम्हारी उपेक्षा,
और...
तुम सबकी आंख बचाकर
मुझे
अपनी गोद में छुपाये
बहाती रहोगी आंसू.
बिना स्कूल गये
जब मैं बड़ी हो जाऊँगी
कर दूँगी तुम्हारी
उस भारी थैली को हल्का.
और...
किसी और की आंगन में
बांध दी जाऊँगी
यही सब कुछ
दोहराने के लिये.
मां...
मैं नहीं देख सकती
तुम्हारा ये दुख
न सुन सकती हूं
सबकी उलाहना
कैसे सह पाऊँगी
तुम्हें दुख सहते देखना.
माँ...
सुन लो मेरी विनती
और रोक लो
मुझे इस दुनिया में आने से.
अपनी कोंख में ही
कर दो मेरा ध्वंस
मैं सह लूंगी सब कुछ
अपनी मां की खातिर.
पर मां...
मेरी एक सवाल का जवाब
जरूर देना
यदि तुम्हारी मां ने भी
यही सब कुछ किया होता
तो क्या तुम...
आज यहां होती?
या
ताने बुनने वाली की
माताओं ने यही किया होता
तो कैसी होती ये धरा...
कैसी होती ये सृष्टि
बस मुझे इतना ही बता
मां...
ओ मां...

यूनिकवि डॉ॰ सुरेश तिवारी



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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

डॉ. सुरेश जी तिवारी,

सर्वप्रथम तो मैं आपको यूनीकवि चुने जाने पर हार्दिक बधाईयाँ देता हूँ.

इस प्रथम प्रस्तुति में ही अपनी छाप छोड़ी, इसके लिये बधाईयाँ स्वीकारें.


हमारे आस-पास के परिवेश में से लिये हुये प्रतीक जब कविता को गहराई देते हैं तो यूँ लगता है जैसे अपने भोगे यथार्थ को लिखा जा रहा है.

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

aadarniye suresh ji,
sarvpratham badhaai.....aapki is rachna me atulniye satya aur ek aagaaj hai,
पर मां...
मेरी एक सवाल का जवाब
जरूर देना
यदि तुम्हारी मां ने भी
यही सब कुछ किया होता
तो क्या तुम...
आज यहां होती?
या
ताने बुनने वाली की
माताओं ने यही किया होता
तो कैसी होती ये धरा...
कैसी होती ये सृष्टि
बस मुझे इतना ही बता
मां...
ओ मां...bahut hi badhiyaa

arun prakash का कहना है कि -

सच कहा है आपने ,
बार बार पढ़ा फिर सोचा की काश ऐसा न होता
बहुत बढ़िया

rachana का कहना है कि -

मार्मिक रचना बधाई
रचना

संगीता पुरी का कहना है कि -

डा सुरेश तिवारी जी को बहुत बहुत बधाई ... समाज के सामयिक मुद्दे पर इतना सुंदर भाव लिए सुंदर कविता पेश किया आपने ... इसकी कितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।

Mumukshh Ki Rachanain का कहना है कि -

कितना मार्मिक दृश्य है की एक और धन लोभ के मोह में तो हम जानवरों के नर शिशु को तो बेचने से नहीं हिचकिचाते और मादा शिशु को स्नेह के साथ पालतें है की भविष्य में यह और आय का स्रोत बनेगा. वहीं दूसरी और इन्सान के कृत्य और भावनाएं अपने नर और मादा भ्रूण के लिए किसी से आज के दौर में छुपे नहीं हैं ....

सच का सुन्दर चित्रण जैसा आपने किया स्वागत योग्य है.
बधाई

चन्द्र मोहन गुप्त

Divya Narmada का कहना है कि -

पठन ही नहीं मनन और चिंतन की और उन्मुख करती रचना.

कमलप्रीत सिंह का कहना है कि -

डॉक्टर सुरेश तिवारी की कविता
" कोख में बिटिया "
एक मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी रचना जो वास्तविकता के
परिपेक्ष्य में आज के समाज और विशेषकर
जननी के लिये एक सार्थक और सशक्त प्रश्न चिह्न है
- बधाई

manu का कहना है कि -

बहुत शानदार ,,
अक्सर ही ये बाते रहती हैं दिमाग में,,,,,
आपने बाखूबी कहा है,,,

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

आज मैंने भी यह कविता पढ़ी और दिल को बहुत छू गयी...तमाम सवालों से भरी एक सुंदर रचना.

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