यूनिकवि प्रतियोगिता से कविताओं को प्रकाशित करने का क्रम ज़ारी है। चौथी कविता हिन्द-युग्म पर काफी महीनों से सक्रिय कवि मुहम्मद अहसन की है।
पुरस्कृत कविता- लल्लू
लल्लू छोटे क़द का सांवला सा आदमी था
अधेड़
न दुबला न मोटा
बस विनम्रता और समर्पण की प्रतिमूर्ति
चेहरा नि: स्पृह, निर्भाव और निर्द्वंद
बस कभी-कभी बड़ी अजीब सी विकेन्द्रित मुस्कान बिखेरता हुआ;
लल्लू का भगवान और अफ़सर पर बराबर का विश्वास था
लल्लू का मानना था
कि अफ़सर की कलम में बड़ी ताक़त होती है
लल्लू साहब का चपरासी था
पर था बड़ा भला आदमी
रात दिन साहब के साथ रहता था
साहब कोई भी हों
वह लल्लू के लिए देवता होते;
लल्लू उन की रात दिन सेवा करता
दौरों में साहब का पूरा ध्यान रखता
कहीं कोई चूक नहीं हो सकती थी;
सब से बाद में और सब से कम खाता
कहीं भी सो जाता
कुछ भी ओढ़ लेता
न उसे मच्छर तंग करते न मक्खियाँ
लल्लू शक्ल से भी लल्लू था
लगता था वह लल्लू के ही रूप में पैदा हुआ था;
लल्लू कभी बड़ा नहीं हुआ
वह बचपन, जवानी और अधेड़पन में लल्लू ही था;
लल्लू ने जिंदगी में कभी गुस्सा नहीं किया
और न कभी किसी से कुछ माँगा,
विरोध और क्रान्ति उसे छू भी नहीं गए थे
लल्लू छोटा आदमी था
लेकिन सपने बड़े-बड़े देखता था,
कभी सपने देखता कि
शहर के एक कोने में छोटा सा पक्का मकान बनवाएगा
गाँव से परिवार को ला कर शहर में रखेगा
छोटे लल्लू को पढ़ा लिखा कर इंटर पास करवाएगा
और फिर साहेब से कह-सुन कर
कहीं क्लर्की में लगवाए देगा
इस बीच जी.पी. एफ़. के लम्बे हिसाब-किताब उस के दिमाग में चलते रहते;
इस तरह बड़े-बड़े सपने देखते-देखते
लल्लू अक्सर ऊंघ जाता;
सरकारी गाड़ी चलती रहती
लल्लू ऊंघता रहता
सब से पीछे की सीट पर सामान के ऊपर बैठा-बैठा,
घुटने सिकोड़े
प्रथम चरण मिला स्थान- उन्नीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा
पुरस्कार- हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
अहसन भाई,
कविता पूरे समय पढने वाले को अपने आस-पास के ऐसे ही किसी शख्स के पास खींच के ले जाती है, जिन्हें देखते ही नियति की भाग्य-विड़ंबना को हम भी कोसने लगते हैं.
काश ऐसे ही भोले शख्सों से ही पूरी दुनिया क्यों नही भरी होती है? क्यों रौंदना वाला अफसर देवतुल्य हो जाता है? क्यों पीड़ित/शिकार लल्लू ही रह जाता है?
अच्छी रचना के लिये बधाईयाँ.
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
lajwab.
Kavita- Sapna Shakti ka saarthak prateek hai
Vaastavikta se svapn manjoosha tak.
कवि मुहम्मद अहसन ko kavita ke liye haardik badhayee.
वाह मुह्म्म्द भाई, गजब का कमाल है आपकी लेखनी में
लल्लू का चित्रण बहुत ही सुंदर ढंग से किया है आपने मुहम्मद भाई,
पसंद आया ,,,,,
वो और बात है के कविता के रूप में नहीं लगा.....पर अच्छा लगा
कई बार सोचता हूँ के आपकी कविता पर कविता का जिक्र ही ना किया करू.....पर ..
फिर लगता है के आप एक परिपक्वा समझ वाले इंसान हैं,,आप पर इन तिपन्नियों का कोई बुरा असर नहीं पडेगा.....
बस इसलिए कह देता हूँ,,,,,
हाँ , इस बार जब कवियों की लिस्ट में स्मिता पाण्डेय और शामिख फराज का नाम नहीं देखा तो जाने क्यों ...
मन में सीधी आपकी ही तस्वीर खिंच आयी,
भगवान ना करे के इन दोनों ने आपकी तिपन्नियों से घबरा कर लिखना ना छोड़ दिया हो....
अच्छा लिखते हैं ये दोनों,
वैसे आपने भी अह्छा चित्र खींचा है ....
अपनी छोटी छोटी ख्वाहिशों में खोया सरकारी चपरासी बखूबी उतारा है आपने ..
par कविता रूप में नहीं...
तिवारी जी, सलिल साहेब और मनु जी ,kamal preet evam harihar ji,
यदि मुझे स्वयं भी समीक्षा करनी हो तो यही कहूं गा की की यह अकविता है , लेकिन क्या करें कहीं पढा था tailors and poets must conform to the faishon of the day.
so i had to post what is by and large is prevalent at hindyugm.
किन्तु इतना अवश्य है कि इस में गूढ़ता नहीं है, बल्कि सरसता है.
आप कह सकतें हैं की इस में उर्दू के शब्द हैं, सही है किन्तु वो मेरे नहीं हैं वो लल्लू के विचार प्रक्रिया के हैं.
लल्लू एक वास्त्विल चरित्र है, लगभग तीन साल पहले उस दिन इलाहबाद से लखनऊ अपने एक सहयोगी अधिकारी के साथ सरकारी गाडी से आते हुए इस कविता को लिखने की प्रेरणा मिली थी. कविता लिखी गयी और डिब्बे में बंद कर दी गयी, इस माह हिन्दयुग्म को प्रेषित कर दी.
किसी युवा लेखक/ कवि को हतोत्साहित करने की कोई मंशा नहीं है किन्तु यदि यह खुली प्रतियोगिता है तो फिर उम्र क्यों विचारणीय बिंदु?
अहसान भाई,
उर्दू के सब्द उस दिन आपकी टिपण्णी में जरूर छांटे थे.... इस रचना में नहीं छांटे ....ऐसा करना मैं सही नहीं मानता ......हां गजल को अगर बहुत जबरदस्ती हिदी का रूप दिया जाए हिंदी के नाम पर तो जरूर तकलीफ होती है....
और खुली प्रतियोगिता हो या बंद....
शायद मैं गलत हो सकता हूँ...
पर उम्र पर मेरा ध्यान जाता ही है,,,,,
उम्र का ताल्लुक केवल कविता कौशल से ही नहीं होता और भी हजार बातों से होता है जिसे मैं समझा नहीं सकता.....
और कविता का ताल्लुक उन ही हजार बातों से होता है......
ये हर कोई जानता है...कोई भी समझा सकता है.....
उन हजार बातों के बिना भी क्या कविता....
पर आपने लल्लू को सही उकेरा ...मालूम था के आपने इस लल्लू को कही ना कही देखा होगा..
फिर से तारीफ़ करता हूँ आपके ओबजर्वेशन की......
अहसान जी,
आपकी कविता पढ़ी और लल्लू का नाम इतनी बार पढ़ा कि मुझे अचानक याद आ गया कि मेरे मायके में भी एक भाई के बेटे को, जब वह छोटा था, यही nick-name दिया गया था और सभी उसे लल्लू पुकारते थे जब खूब प्यार उमड़ता था उस पर. बड़ा हो गया तब भी उसे लल्लू कहा जाता था. पर नाम है उसका रोहित and now he is an intelligent young man working and living in Delhi. खैर उन दिनों का जिक्र कर रही थी तो फिर अचानक एक दिन सबने सोचा कि लल्लू अब बड़े हो गए हैं और कहीं उसे स्कूल में सब, और फिर जब काम करेगा तब वहां सब या फिर जब शादी होगी तब उसकी बीबी या फिर उसके किसी दिन बच्चे हुए तो फिर कहीं वह सब के लिए लल्लू ना बन कर रह जाए, इसलिए अचानक लल्लू को उसके असली नाम से सब पुकारने लगे. अब जब उसकी कभी शादी होगी तो कम से कम उसकी बीबी-बच्चे उसे लल्लू तो नहीं बनायेंगे
लल्लू बड़ा नहीं,बहुत बड़ा रहा....
manu saheb,
agar aap 'kavita' ki philosphy par jaaen ge to bahes lambi chale gi is liye s mu'amle ko khatam hi kiya jaae.
rahi baat urdu /hindi ki, to itna hi kahuun ga ki agar hindi prayog karuun ga to uupar waale ki kripa se urdu ke shabdon ke prayog ki aawashyakta nahi pade gi,, isi tareh urduu ke saath hindi alfaaz ke bina bhi likhne ki ahliyat uupar waale di hai.
rashmi ji,
aap ka bahut shukriya.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)