जो भी अपने संग हुआ है
दुनिया का ये ढ़ंग हुआ है
तू आया जब मुझसे मिलने
चांद जरा नव-रंग हुआ है
देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है
डोर जुड़ी तुझसे ये कैसी
ये मन एक पतंग हुआ है
कुर्सी की लत पड़ते ही अब
हाकिम और दबंग हुआ है
मेहमान बना है तू जब से
घर में इक सत्संग हुआ है
तेरी एक नजर से हिरदय
इक बजता मिरदंग हुआ है
{बहर= 4 X फ़ेलुन}
यूनिकवि- मेजर गौतम राजरिशी
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
dekh jameeni bhagvano ko upar vala bhi dang hua bahut hi sahi kaha poori gazal kabile tareef hai abhaar
राजऋषी जी,
क्या खूब लिखा है। पूरी ही गजल अपने आप कह जाती है।
" मेहमान बना है तू जब से
घर में इक सत्संग हुआ है "
सूफियाना तबियत की भावना मनविभोर कर देती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
मेज़र साहब की कलम का कमाल यहाँ भी.......
बहुत ही बढिया
मेजर जी,
कविता का एक-एक शब्द अर्थमय और बहुत ही सुंदर लगा. बार-बार पढने को मन करता है.
सुन्दर अति सुन्दर .
देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है
क्या खूब लिखा है
सादर
रचना
मन को छूती हुई सशक्त रचना. काबिले-तारीफ़.
"देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है".. ab to bhagwan insaan mein manufacturing defect dhood rahe hain
देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है
मेहमान बना है तू जब से
घर में इक सत्संग हुआ है
लाज़वाब शेर
खूबसूरत रचना
क्या बात है मेजर साहिब,,आज युग्म पर यूनिकवि,,,मजा आ गया,,,,तबियत बहुत खुश हुई,,,,,गजल की तो तारीफ़ हमेशा ही करते हैं,,,,,आपके शेरों के ख़ास फैन हैं हम तो,,,,,पर ये सब यहाँ पढने को मिला तो तबीयत कुछ अलग ही हो गई,,,,,
और कुछ याद आया इस शेर पर,,,
तू जब आया मुझसे मिलने,
चाँद ज़रा नवरंग हुआ है,,,
और युग्म पे तो सत्संग हुआ ही है,,,
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