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Tuesday, April 21, 2009

घर में इक सत्संग हुआ है


जो भी अपने संग हुआ है
दुनिया का ये ढ़ंग हुआ है

तू आया जब मुझसे मिलने
चांद जरा नव-रंग हुआ है

देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है

डोर जुड़ी तुझसे ये कैसी
ये मन एक पतंग हुआ है

कुर्सी की लत पड़ते ही अब
हाकिम और दबंग हुआ है

मेहमान बना है तू जब से
घर में इक सत्संग हुआ है

तेरी एक नजर से हिरदय
इक बजता मिरदंग हुआ है

{बहर= 4 X फ़ेलुन}

यूनिकवि- मेजर गौतम राजरिशी

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

dekh jameeni bhagvano ko upar vala bhi dang hua bahut hi sahi kaha poori gazal kabile tareef hai abhaar

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

राजऋषी जी,

क्या खूब लिखा है। पूरी ही गजल अपने आप कह जाती है।

" मेहमान बना है तू जब से
घर में इक सत्संग हुआ है "

सूफियाना तबियत की भावना मनविभोर कर देती है।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

मेज़र साहब की कलम का कमाल यहाँ भी.......
बहुत ही बढिया

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मेजर जी,
कविता का एक-एक शब्द अर्थमय और बहुत ही सुंदर लगा. बार-बार पढने को मन करता है.

rachana का कहना है कि -

सुन्दर अति सुन्दर .
देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है
क्या खूब लिखा है
सादर
रचना

Divya Narmada का कहना है कि -

मन को छूती हुई सशक्त रचना. काबिले-तारीफ़.

प्रिया का कहना है कि -

"देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है".. ab to bhagwan insaan mein manufacturing defect dhood rahe hain

Ria Sharma का कहना है कि -

देख जमीनी भगवानों को
ऊपर वाला दंग हुआ है

मेहमान बना है तू जब से
घर में इक सत्संग हुआ है

लाज़वाब शेर
खूबसूरत रचना

manu का कहना है कि -

क्या बात है मेजर साहिब,,आज युग्म पर यूनिकवि,,,मजा आ गया,,,,तबियत बहुत खुश हुई,,,,,गजल की तो तारीफ़ हमेशा ही करते हैं,,,,,आपके शेरों के ख़ास फैन हैं हम तो,,,,,पर ये सब यहाँ पढने को मिला तो तबीयत कुछ अलग ही हो गई,,,,,
और कुछ याद आया इस शेर पर,,,

तू जब आया मुझसे मिलने,
चाँद ज़रा नवरंग हुआ है,,,

और युग्म पे तो सत्संग हुआ ही है,,,

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