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Tuesday, April 21, 2009

दिव्या का खालीपन.....


चाय की प्यालियों का खालीपन
क्षण भर को अखरा था.....
विचारों की तल्लीनता भंग हुई थी....
"खोखला और खाली होना
क्या कोई अक्षम्य अपराध है???"
शून्यता तो....
एकांकी का परिचायक है...

अंतर में जो घुटता है मेरे
शोर करता है....
तुम होती तो
मैं दिन-रात रो लेती..
और खाली हो जाती....

"रुदन की क्रिया भी..
तुम्हारे बिना अधूरी!!!!
क्यों-क्यों-क्यों अधूरी???"

भय-लहर मन के चट्टानों
को लहूलुहान किये है....
विचार घूम रहे है घुन-घुन
ऐंठ रहे है जिस्म को....

स्वीकृत करते ही....अनावृत्त हो जायेगा
एक फुँफकारता जहरीला नाग....

"फिर क्या तुम लौट के आओगी..
मेरे पास????
शायद कभी नहीं"...
प्यालियों में चाय डाल दी है
अखरना कम हो गया है....

यूनिकवयित्री दिव्या श्रीवास्तवा

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

Divya Narmada का कहना है कि -

स्पष्ट अभिव्यक्ति...मार्मिक रचना...

प्रिया का कहना है कि -

bahut sunder abhivyakti divya ji

manu का कहना है कि -

अच्छा लगा आपको पढ़ना,,,,,
बेहद सटीक,,,,,,

rachana का कहना है कि -

दिव्या जी
क्या सुंदर लिखा है
बधाई
रचना

Unknown का कहना है कि -

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