सर्वप्रथम हमें इस बात का अत्यंत खेद है कि कुछ अपरिहार्य कारणों से दिसम्बर अंक की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम २ दिन की देरी से प्रकाशित कर रहे हैं।
जनवरी २००७ में जब हिन्द-युग्म ने इंटरनेट पर हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के आयोजन की शुरूआत की थी तह हमें मात्र ६ कवियों ने अपनी कविताएँ भेजी थी। एक पाठक नियमित कमेंट करता था (सदस्यों को छोड़कर)।
दिसम्बर २००७ में प्रतिभागी कवियों की संख्या ४८ हो गई और प्रतिभागी टिप्पणीकर्ताओं की संख्या १२ से भी अधिक हो गई। मतलब प्रतिभागियों की संख्या में ७००%-११००% का इज़ाफ़ा। निश्चित रूप से यह टीम वर्क के सुपरिणाम हैं। साथ ही साथ दुनिया भर के १०० से अधिक देशों के हज़ार से अधिक शहरों से हज़ारों-हज़ार पाठकों ने जिस प्रकार हमें पढ़ा, सराहा और सहयोग दिया है, शायद वही हमें नित नई ऊँचाइयों पर पहुँचाता रहा है।
कुल ६ निर्णयकर्ताओं ने चार चरणों में (प्रथम चरण में ३, द्वितीय, तृतीय व अंतिम में क्रमशः १-१ निर्णयकर्ता) जजमेंट प्रक्रिया को पूरा किया। कुल ४७ कवियों की कविताओं को पीछे छोड़ती हुई दिव्या श्रीवास्तव की कविता 'उस रात' ने प्रथम स्थान पर कब्ज़ा कर लिया। यूनिकवयित्री दिव्या श्रीवास्तव ने ५ से भी अधिक बार यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लिया है और बहुत बढ़िया बात यह रही है कि हमेशा ही इनकी कविता प्रकाशित हुई है। तब भी जब हम टॉप १० कविताएँ प्रकाशित करते थे और तब भी जब टॉप २० कविताएँ प्रकाशित करते थे।
यूनिकवयित्री- दिव्या श्रीवास्तव
परिचय-सुश्री दिव्या श्रीवास्तवा का जन्म कोलकाता महानगर में हुआ था। ४ साल पहले इन्होंने कविता- सृजन आरंभ किया। इस कार्य में उन्हें अपने परिवार का विशेष कर अपने पिताश्री का विशेष सहयोग और प्रोत्साहन मिला। अध्ययन के साथ-साथ साहित्य-सृजन का कार्य भी चलता रहा। कविता के अतिरिक्त व्यंग्य और कथा साहित्य में भी कुछ रचना लिखी हैं। हिंदी साहित्य के प्रति गहरी अभिरुचि और आस्था है। अभी आप मेडिकल (MBBS) की प्रथम बर्ष की छात्रा है।
पुरस्कृत कविता- उस रात
सन्नाटा उतरा था जेहन में.....
चीख हृदयविदारक थी........
मौत को करीब से देखती
चीख......
"बचाओ.....कोई..ईईईईईइ"
चले गए थे दो चेहरे
अँधेरे की गुफा में..
स्तब्ध,गतिहीन
निस्पंद वहाँ...
दो जन थे...
मैं और एक लाश.....
आज....
चर्चा आम है.
उस रात का...
न्याय के
दावेदार अनेक है
संसद में हंगामा है
लोग बोले जा रहे है...
लाश अब जीवित है!!
मैं ही नहीं बोलती
कुछ भी..
क्यों?????
उस रात मैं भी
एक लाश बन गयी थी....
शायद.........
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰२५, ५, ७
औसत अंक- ६॰४१६७
स्थान- सोलहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ४॰९, ६॰४१६७(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰६५८३
स्थान- अठारहवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-समाज और व्यवस्था की क्रूरता और असंवेदनशीलता को सामने लाती हुई प्रभावी रचना है।
अंक- मौलिकता: ४/२॰५ कथ्य: ३/१॰५ शिल्प: ३/२
कुल- १०/६
स्थान- तीसरा
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
रचना पाठक को सोच प्रदान करती है। सही बिम्ब प्रस्तुतिकरण को सशक्त बना रहे हैं।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ७॰५/१०
कुल योग: १४॰५/२०
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने जनवरी माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम।
यूनिकवयित्री दिव्या श्रीवास्तव तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।
पाठकों के बीच की प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही जा रही है। अधिकतम प्रविष्टियों पर कमेंट करने वाली शर्त तो अब लागू ही नहीं होती। ४-५ पाठकों के कमेंट तो बराबर की संख्या में होते हैं।
इस बार आलोक कुमार सिंह 'साहिल', शैलेश चन्द्र जमलोकी, अवनीश एस॰ तिवारी और अल्पना वर्मा ने बराबर की संख्या में प्रतिक्रियाएँ दी है।
शैलेश चन्द्र जमलोकी टिप्पणियाँ देने में अनियमित रहे। जबकि अल्पना वर्मा ने हिन्द-युग्म के अपडेट पर इस प्रकार नज़र रखी कि इधर पोस्ट प्रकाशित हुई, उधर इन्होंने पढ़ डाला।
इसलिए हमने इस बार अल्पना वर्मा को यूनिपाठिका चुना है। यह प्रथम बार हो रहा है कि यूनिकवि और यूनिपाठक दोनों सम्मानों पर स्त्रियों का कब्ज़ा है।
यूनिपाठिका- अल्पना वर्मा
नाम- श्रीमती अल्पना वर्मा
जन्म--अगस्त १९६७ में गाज़ियाबाद [उ०प्र० ]
वनस्थली विद्यापीठ [राज०] से बी.एस.सी.,बी.एड.,फ्रेंच भाषा में डिप्लोमा,
पत्रकारिता, संगीत व कंप्यूटर सॉफ्टवयेर ऍप्लिकेशन में बेसिक शिक्षा आदि।
१५ सालों से देश के बाहर ही निवास है।
कार्यक्षेत्र- गृहिणी
वर्तमान में अलेन इंडियन सोशल सेंटर में वीमन फॉरम की अध्यक्षा हैं।
हिन्दी से लगाव- नवीं कक्षा में पहली कविता प्रकाशित हुई।
कॉलेज के दिनों में महान कवयित्री महादेवी वर्मा जी, डॉ. शिव मंगल सुमन जी और डॉ. कुंवर बैचैन जी का आशीर्वाद मिलना को अपना सौभाग्य मानती हैं।
अब भी कभी कभी लिख लेती हैं, यदा-कदा प्रकाशित भी हुईं। यू.ऐ.ई. में कई बार कवि सम्मेलन और मुशायरों में पढने का सुअवसर मिला।
पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।
यूनिपाठिका अल्पना वर्मा तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।
इससे पहले कि हम आगे के पाठकों और कवियों की बात करें, हम एक विशेष बात कर लेना चाहते हैं।
आलोक कुमार सिंह 'साहिल' हिन्द-युग्म के ऐसे पाठक हैं जिन्हें एक आदर्श पाठक कहें तो गलत नहीं होगा। इन्होंने पिछले २-२॰५ महीनों से हिन्द-युग्म को पढ़ना शुरू किया है और हिन्द-युग्म के आधे से अधिक संग्रहालय को पढ़ डाला है। हिन्द-युग्म के सभी मंचों (कविता, कहानी-कलश, बाल-उद्यान और आवाज़) पर इनकी नज़र रही है। यदि यह कहा जाय कि हिन्द-युग्म को पढ़ने में ये दिन के ४-५ घण्टे का समय देते हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारा मानना है कि यदि हिन्दी में आलोक कुमार सिंह जी के जैसे हज़ार पाठक भी पैदा हो गएँ तप साहित्य-जगत से पाठकों का अकाल जाता रहेगा। हिन्द-युग्म के प्रमुख उद्देश्यों में से एक साहित्य जगत को आलोक जैसा पाठक देना भी है।
अतः आलोक कुमार सिंह 'साहिल' को विशेष सम्मान 'हिन्द-युग्म पाठक सम्मान २००७' से सम्मानित किया जा रहा है। हिन्द-युग्म की ओर से रु ५०० का नक़द ईनाम और प्रशस्ति-पत्र भेंट किये जाते हैं।
हिन्द-युग्म पाठक २००७- आलोक कुमार सिंह 'साहिल'
नाम- आलोक सिंह "साहिल"
माता जी- श्रीमती द्रौपदी सिंह
पिता जी - श्री हरे राम सिंह
जन्म- २४ जून १९८८,(अपने ननिहाल सिवान, बिहार में)
गाँव- लार, सलेमपुर,देवरिया, उत्तर प्रदेश
इंटर तक की पढ़ाई देवरिया में हुई,
बी.एस.सी.(जीव विज्ञान) सेंट एन्द्र्युज कालेज, गोरखपुर (दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्व विद्यालय, गोरखपुर), संप्रति- दिल्ली में मीडिया के पढ़ाई की तयारी
उपलब्धियाँ- बचपन में कुछ अख़बारों और स्कूल की पत्रिकाओं में लेख और कवितायेँ, राज्य स्तर तक वाद-विवाद,भाषण, विज्ञान प्रदर्शनी और विज्ञान कोंग्रेस का अनुभव, बचपन से ही ये वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के जुनून की हद तक दीवाने थे, विभिन्न सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं और कार्यक्रमों में सक्रीय प्रतिभागिता, विशेष तौर से विज्ञान की प्रदर्शनियों और विज्ञान काग्रेसों में सक्रिय प्रतिभागिता, बचपन से ही नाटक, एकांकी, कौव्वाली, लोक नृत्य और मुशायरों में प्रतिभागिता, अभिनय के शौक के चलते कुछ दिनों तक गोरखपुर में थियेटर से जुड़े रहे। बड़े होने पर तमाम नाटकों और मूक नाटकों में अभिनय और उनका निर्देशन किया। अभी अख़बारों में छोटे-मोटे लेख लिखते हैं। कुछ दिनों तक क्षेत्रीय टीवी चैनलों पर कार्यक्रमों का संचालन। तमाम स्टेज शोज के संचालन का अनुभव।
संपर्क- आलोक सिंह "साहिल" द्वारा एम्. एस. चौहान. ३१५- ढक्का, किंग्सवे कैंप, दिल्ली-११०००९
शैलेश चन्द्र जमलोकी जी को पाठक की जगह समीक्षक कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये कविता के मजबूत और कमज़ोर दोनों पक्षों को बहुत बारीकी से देखने की कोशिश करते हैं। इनकी टिप्पणियों को पढ़कर एक साधारण से पाठक को भी यह अंदाज़ा लग सकता है कि शैलेश जमलोकी ने कविता पर टिप्पणी करने से पहले कई बार उसे पढ़ा होगा। शैलेश चन्द्र जमलोकी ने काव्य-पल्लवन के ताज़ा अंक की सभी २९ कविताओं पर अलग-अलग विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ की। हम इन्हें यूनिपाठक बनाना चाहते हैं अल्पना वर्मा का पलड़ा भी उतना ही भारी है और उन्होंने ज्यादा नियमित पढ़ा है, इसलिए हिन्द-युग्म समझता है कि शैलेश जमलोकी जी परिणामों को सकारात्मक लेते हुए जनवरी ००८ के यूनिपाठक बनने की चुनौती स्वीकार करेंगे। फिलहाल हम इन्हें दिसम्बर २००७ के दूसरे स्थान का पाठक चुनते हैं और सूरज प्रकाश द्वारा सम्पादित कहानियों की पुस्तक 'कथा दशक' और प्रो॰सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' की पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट करते हैं।
तीसरे स्थान के पाठक के रूप में हमने सीमा गुप्ता को चुना है, इन्होंने भी ढेर सारी कविताओं पर कमेंट किया, मगर इनके अधिकतरम कमेंट या तो रोमन-हिन्दी में हैं या अंग्रेज़ी में हैं। जबकि हिन्द-युग्म सारा प्रयास हिन्दी देवनागरी को प्रोत्साहित करने के लिए करता है। आशा है कि सीमा जी इस महीने से देवनागरी में ही कमेंट करने की कोशिश करेंगी। इन्हें प्रो॰सी॰बी॰श्रीवास्तव 'विदग्ध' की काव्य-पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट की जाती है।
चौथे स्थान के पाठक हैं राजीव तनेजा जोकि हमें यदा-कदा ही पढ़ते हैं, हम इनसे और अधिक सक्रियता की उम्मीद करते हैं। इन्हें भी हिन्द-युग्म प्रो॰सी॰बी॰श्रीवास्तव 'विदग्ध' की काव्य-पुस्तक 'वतन को नमन' भेंट करता है।
इसके अतिरिक्त हरिहर झा, मीनाक्षी, राम चरण गुप्ता 'राजेश', सतीश वाधमरे, दिव्य प्रकाश दुबे, राकेश पाठक आदि ने भी हिन्द-युग्म को पढ़ा, हम आशा करते है कि आगे आपलोग हिन्द-युग्म को और अधिक समय देंगे और हिन्दी का झंडा बुलंद करेंगे।
इस बार हम एक और खुशख़बरी देना चाहते हैं। जनवरी २००८ में हम दिसम्बर माह की प्रतियोगिता से शीर्ष २५ कविताएँ प्रकाशित करेंगे।
टॉप १० कवियों के अन्य ९ कवियों के नाम जिन्हें कवि ऋषिकेश खोडके 'रूह' की काव्य-पुस्तक 'शब्दयज्ञ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी और जिनकी कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित होंगी, निम्नलिखित हैं-
अनुराधा शर्मा
हरिहर झा
सुमन कुमार सिंह
विनय के॰ जोशी
अजय काशिव
गौरव जैन
पंकज
गिरिश बिल्लोर 'मुकुल'
पंकज रामेन्दु मानव
टॉप २५ के अन्य १५ के नाम जिनकी कविताएँ जनवरी माह में क्रमानुसार प्रकाशित होंगी-
विनय चंद्र पाण्डेय
केशव कुमार 'कर्ण'
विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
सुमित भारद्वाज
अम्बर पांडेय
दीपेन्द्र शर्मा (कवि दीपेन्द्र)
दिनेश गेहलोत
सीमा गुप्ता
अवन्तिका मेहरा
प्रकाश यादव 'निर्भीक'
मनुज मेहता
कुमार लव
आशुतोष मासूम
अमलेन्दु त्रिपाठी
सन्नी चंचलानी
उपर्युक्त सभी कवियों से निवेदन है कि ३१ जनवरी २००७ तक न अपनी कविता कहीं प्रकाशित करें और न हीं कहीं प्रकाशनार्थ भेजें।
इस बार कवियों की सूची लम्बी है। निम्नलिखित कवियों का भी हम धन्यवाद करते हैं जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया और निवेदन करते हैं कि आगे भी इसी प्रकार हिन्द-युग्म के सभी आयोजनों में शिरकत करते रहें।
डॉ॰ आशुतोष शुक्ला
पंखुड़ी कुमारी
शैलेश चन्द्र जमलोकी
अभिजीत शुक्ला
आलोक कुमार सिंह 'साहिल'
एस॰ कुमार शर्मा
सुनील प्रताप सिंह
सतीश वाघमरे
राम चरण वर्मा 'राजेश'
शिवानी सिंह
आशीष दुबे
अंजु गर्ग
राकेश पाठक
महेश चंद्र गुप्त 'खलिश'
तपन शर्मा
सौम्या अपराजिता
दिव्य प्रकाश दुबे
पराग अगरकर
उपासना पाण्डेय
प्रगति सक्सेना
अवनीश एस॰ तिवारी
आनंद गुप्ता
दिवेश मेहता 'निर्जीव'
सभी विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
39 कविताप्रेमियों का कहना है :
लाश अब जीवित है!!
मैं ही नहीं बोलती
कुछ भी..
क्यों?????
उस रात मैं भी
एक लाश बन गयी थी....
शायद.........
दिव्या जी आपकी रचना ने बहुत मर्म स्पर्शी लगी. दिल को हीला देने वाली. आप सही मे बधाई की पात्र हैं. "
" congratulations from heart and good wishes for future"
Regards
सब को बहुत बहुत बधाई हो ..
कुछ भी..
क्यों?????
उस रात मैं भी
एक लाश बन गयी थी....
शायद.........
कविता बहुत अच्छी है दिव्या ..आप सब जिस तरह से लिखा हुआ पढ़ते हैं उस से लिखने का उत्साह और मिलता है ..आगे भी यूं ही साथ रहे ..बहुत बहुत बधाई और शुभकामना के साथ .रंजू
अल्पना जी यूनिपाठिका की उपलब्धी की बहुत बहुत बधाई. जितना आपके बारे मे जाना है और आपको पढा है, उतना कम लगता है. आपसे बहुत कुछ सीखना है. आपका लेखन बहुत सधा हुआ और सही होता है.
"congrates once again with good wishes"
With lots of Regards
सभी को बधाई |
हिंद युग्म को वर्ष पूरा करने
के लिए भी |
ये सफर जारी रहे ....
--
अवनीश तिवारी
आलोक कुमार सिंह 'साहिल' जी 'हिन्द-युग्म पाठक सम्मान २००७' की उपलब्धी के लिए बधाई. आप बहुत अच्छा कमेंट करते हैं हर आर्टिकल पर.
"congrates and all the best for future achievements"
Regards
शैलेश चन्द्र जमलोकी जी आपको बहुत बहुत बधाई. आपके बारे मे क्या कहूँ, कम है. आपकी टीस कविता पर सारी समीक्षा पडी ,काबिले तारीफ है.
" congrates once again"
With Regards
" all other winners and participants also deserves appreciation so Congrates and thanks to all of them"
My special appreciation with Regards to "हिंद युग्म" for completing one year and giving a wonderful plateform to new writers and readers and creating an interest to write more and more. All the best.
Regards
यूनिकवि तथा यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम देखकर अतीव आनन्द की प्राप्ति हुई । दोनो ही स्थानों पर महिलाओं का कब्जा देखकर कुछ गर्व भी हुआ । दिव्या जी आपको बहुत-बहुत बधाई । आपकी कविता हृदय स्पर्शी है । सामयोक विषय को बहुत अच्छी तरह उठाया है ।
यूनिपाठिका अल्पना वर्मा जी की जितनी प्रशंसा की जाइ कम है । आपकी बहुत बारीकी से समीक्षा करती हैं । एक जागरूक पाठक के रूप में आपने अपनी पहचान बनाई है । यूनिपाठिका बनने की बहुत-बहुत बधाई
आलोक सिंह साहिल जी
आपने अपनी समीक्षाओ से सदा उत्साह बढ़ाया है । बहुत-बहुत बधाई
शैलेष यमलोकी जी
आप सदा ही लिखने वालों का उत्साह बढ़ाते हैं तथा गुण-दोषों की सही व्याख्या करते हैं । आपका स्वागत है ।
अवनीश जी
आपकी लेखनी के साथ-साथ आपकी तीक्ष्ण दृष्टि भी काबिले तारीफ़ है । बहुत अच्छी आलोचना करते हैं । बधाई
आलोक सिंह साहिल जी
आपको बहुत-बहुत बधाई । आपकी टिप्पणियाँ हिन्द युग्म का श्रृंगार हैं । इसी उत्साह के साथ पढ़ते रहें और मार्ग दर्शन करते रहें । सस्नेह
भई वाह ! बहुत बहुत बधाई यूनिपाठिका अल्पना वर्मा जी व यूनिकवयित्री- दिव्या श्रीवास्तव जी को .
दिव्या, अल्पना, आलोक को अनेकानेक बधाइयां..
बहुत खुशी हो रही देख कर इतना प्यार दुलार
व्यक्त करू मैं अंतर्मन से बहुत बहुत आभार
दिव्या जी की दिव्य कलम ने चुन मोती बरसाये
अल्पना जी का दूर देश से देख देख नेह हर्षाये..
आलोक,सीमा,राजीव और सब जब तक साथ हमारे
रोके नही रुकेंगे जय हिन्द जय हिन्दी के नारे..
लाखों और अनाम हमारे जन-दल जब प्रशंसक
हिन्द-युग्म के कदम बढ़ेंगे रहा ना कोइ अब शक.
जितने पाठक, कमलकार हैं सबको कोटि बधाई
एक गुजारिश आप सभी से बनी रहे प्रभुताई..
दिव्या जी और अल्पना जी आप दोनों को आपकी उपलब्धियों के लिए दिल से शुभकामनाएं.
जम्लोकी भाई, प्यारी सीमा जी और अवनीश जी आप सबों ने पूरे महीने ही नहीं वरन उसके पहले से भी निरंतर अपने सहयोग से हमारा मनोबल बढ़ते रहे है, आप सबों की उपलब्धि काबिले तारीफ है.
मेरी तरफ़ से आप सभी को ढेरों बधाईयाँ
आलोक सिंह "साहिल"
दिव्या जी बात करें आपकी कविता की तो हम जैसे कमजोर दिल वालको झकझोरने के लिए आपकी कविता बहुत पर्याप्त है, उम्मीद करता हूँ कुछ कठोर ह्रदय भी पिघलेंगे. श्रेष्ठ रचना.
मुबारक हो.
आलोक सिंह "साहिल"
दिव्या जी व अल्पना जी को बहुत बहुत वधाई.. लिखको और पाठ्कों ही से हिन्द-युग्म की शान है... अन्य सभी विजेताओं को भी बधाई.
सीमा जी मुझे याद है जब मैंने टीस पर आपकी कविता पढी तो वो मुझे सर्वश्रेष्ठ लगी, लगा आप बहुत अच्छी कवियित्री हैं, आपके द्वारा खींचे गए प्यारे और लुभावने तस्वीरों को देखा तो लगा ये महिला multitalented है.
पर आज आपको पाठकों की अग्रिम कतार में खड़े देखा तो सच कहूँ मैं तो अवाक् ही रह गया.
बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत..............बहुत ही ढेर सारी बधाईयाँ, शुभकामनाएं
आलोक सिंह "साहिल"
मैं अन्य उन तमाम साथियों को भी दिल से मुबारकबाद देना चाहूँगा जो इस प्रतियोगिता में स्थान पाने में सफल रहे चाहें कवि के तौर पर या फ़िर पाठक के तौर पर.
उन साथियों को भी मैं दिल से दुआएं देता हूँ जो स्थान बना पाने में सफल नहीं हो सके परन्तु अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करे.
आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं.
आलोक सिंह "साहिल"
भुपेंदर जी आपने तो भावविभोर ही कर दिया महाराज.
धन्यवाद.
आपके निरंतेर स्नेह का आकांक्षी
आलोक सिंह "साहिल"
kahte hain der aaye dust aaye, vilamb se hi sahi per, acchha hai.....................
alok singh "sahil"
सभी प्रतियोगियों को बहुत-बहुत बधाई। दिव्या जी एवं अल्पना जी को विशेष बधाई।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
divya ji ko pahle bhi padha hai par yeh kavita to sachmuch pueaskaar yogy hai, divya ji ke saath saath sabhi judges ko bhi badhaai, itni sashakt kavita ko chunne ke liye, alpana ji ke kya kahne, sahil ji ke baare men jaan kar achha laga, harihar jha saab ka naam upar ki shreni men dekh kar khushi hui, sailseh jamloki ji tippaniyan sachmuch lajaawab hoti hai sabhi vijetaaon ko badhaai
badhai ho divyaji,us raat kavita behad prabhavshali hai.
badhai ho alpanaji,apki sari tippaniya,bariki se padhka likhi hoti hai.
bakli sare vijetayon ko bhi dher sari badhai aur shubh kamnaye. mehek.
सर्वप्रथम,
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई देना चाहता हूँ... विशेष कर दिव्या जी, अल्पना जी, और अलोक जी का.. जो मन लगा कर बड़े उत्साह से काम कर के हम सब का मार्ग प्रसस्थ करते है.
- फिर मै उन सभी लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा जिन्हें मेरी समीक्षा पसंद आई..
-और अंत मै उन सभी आयाजको, निर्णायकों का जिन्होंने इस प्रतियोगिता को सफल बनाया...
बस इतना कहना चाहूँगा....
" एह खुदा गर मेहरबान है तू मुझ पर, तो एक करम कर,
इस 'हिन्द-युग्म' की आवाज़ तू हर दिल तक बुलंद कर."
सादर
शैलेश
दिव्या जी,
जहाँ तक मै आपकी कविता को समझ पाया हूँ, तो आप कुछ ये कहना चाह रही है ..(अगर गलत कहूं तो कृपया सुधारें )
( कवी अपनी जीवन की एक दर्दनाक घटना को याद कर रहा है.. की उस रात उसके भयानक हादसे की रात उसकी मनोस्थिति कैसी थी, ऐसा लग रहा था की मानो वो मृत हो,
और फिर वो आज देखती है.. ये घटनाएं कितनी आम हो गयी है और ये दिन मै ऐसा हो रहा है की न्याय नाम की चीज़ नहीं है.. संसद मै लोग मारपीट कर रहे है.. पर लोगों की कोई सुन नहीं रहा है.. और आदमी जीते हुए भी मृत लग रहा है.. और कवी को ये दोनों घटनाओं मै एक समानता सी दिख रही है....)
मैंने ये इस लिए लिखा, क्यों की मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगा की इस कविता मै प्रसंग जरूर दिया होना चाहिए.. ताकि कवी जो कह रहा है.. वही भाव.. पाठक तक पहुचे.. और मेरी नज़र मै कविता तभी पूरी है....
अगर यही बात कवी से सुनी की उन्होने क्या यही बात सोच कर कविता लिखी तो शायद जबबा न होगा.. अतः कुछ कविताओ मै प्रसंग हो टीओ कविता पढ़ने मै कुछ मज़ा ही और जाता है..
बाकी
- कविता का विषय बहुत सुन्दर है..शब्द चयन अति सुन्दर है.. और वाकई मै पृष्कार के लायक है..
बधाई दिव्या जी
सादर
शैलेश
*'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' आयोजन के एक वर्ष पूरे होने पर सभी आयाजको, निर्णायकों को बहुत बहुत बधाई.
**जैसे एक बच्चे को पुरस्कार मिलने पर खुशी होती है बिल्कुल वैसी ही खुशी मुझे आज हो रही है.
सब से ज्यादा इस बात को जान कर अच्छा लग रहा है कि यह सम्मान आसानी से नहीं मिला ,इस दौड़ में तीन और दमदार प्रतियोगी थे.
**सच कहूँ तो एक पाठक की तरह आप सब से जुड कर बहुत अच्छा लग रहा है.
** हिन्दयुग्म के रचनाकारों की सब से अच्छी बात यह है कि हर प्रतिक्रिया को सकारात्मक लिया जाता है.कई बार मैंने डरते डरते अपना विचार लिखा है कि कहीं कवि नाराज न हो जाए.
** सभी बधाई देने वाले साथियों का तहे दिल से धन्यवाद करती हूँ.
**कोशिश रहेगी कि इस बार की तरह अगली बार भी यूनीपाठक का चुनाव कठिन हो.
**सच कहूँ तो जम्लोकी जी के कहे शेर को ही दोहराना चाहूंगी और हिन्दयुग्म की उन्नति के लिए शुभकामनाएं देती हूँ .-धन्यवाद
**दिव्या बहुत बहुत बधाई .
यूनिकवि का सम्मान दिलाने वाली तुम्हारी कविता मन को छू गयी.
जिस तरह तुमने 'एक प्राणी कैसे किन हालातों में 'प्राणहीन' हो गया ,उन के बारे में कहा है.
'न्याय केदावेदार अनेक हैं'
और
''लोग बोले जा रहे है...
लाश अब जीवित है!!
मैं ही नहीं बोलती''
कह कर स्थिति को बिल्कुल साफ कर दिया.
सुंदर प्रस्तुति!
**आलोक कुमार सिंह 'साहिल' जी 'हिन्द-युग्म पाठक सम्मान २००७' के लिए बहुत सी बधाईयां
-आप को सच में एक आदर्श पाठक कहें तो गलत नहीं होगा. आप ने तो एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है
**शैलेश चन्द्र जमलोकी जी मैं भी आप के प्रशंषकों में से एक हूँ.आप की टिप्पणियां मैं हमेशा पढ़ती हूँऔर वे मुझे बहुत प्रभावित करती हैं क्योंकि आप के विचार बहुत ईमानदार होते हैं. -पुरस्कार के लिए आप को भी बधाई
**सीमा गुप्ता जी आप को भी बहुत बहुत बधाई.
आप ने तो सभी विजेताओं को बड़े ही सुंदर ढंग से बधाई दी है.
**राजीव तनेजा जी आप को भी मुबारकबाद.
*भूपेंदर राघव जी आप की कवितामय बधाई देखकर मन भावविभोर हो गया.
आभार सहित
divya..ji...waah ..kya baat hai...
touched my heart...congratulations...
आज दिव्या लोक में युग्म में है अल्पना
दृष्टि के आलोक से कुसुमित ह्रदय मन कल्पना
आप सब का स्नेह यूं ही हिन्द को मिलता रहे
दीप भाषा नेह से और रचना स्नेह से....
गेह में जलता रहे .....
बधाई शुभकामना स्नेह ....
अल्पना जी, दिव्या जी, आलोक जी ...सहित आप सबको स्वागत है आप सब मित्रों का युग्म पर आपकी पैनी और पारखी नजर तो रहेगी ही साथ ही साथ आगे भी हमें आप सबसे समुचित मार्गदर्शन मिलता रहे यह निवेदन भी है
divya congratulations..very nice poem..heart touching
divya ji ki divya lekhini se prasphutit kavita "us raat" ko padh kar aisa laga ki mahapraan niraalaa ki lekhini punah chal padee ho. ! vartamaan trasadi ko sugam vimbon ke madhyam se itni sahajta ke saath parstut karne mein safal rahi kavyitree ka aghaz hee bata raha hai ki Hindi Sahitya Shree ke aangan mein ek divya pushp khil chuka hai. Divya ko karna kee bahut bahut badhaai.
श्रीकांत सर,
कहते हैं एक कवि अगर गद्य भी लिखे तो उसमे कविता की झलक मिलती है, तो फ़िर बधाई में कैसे चूक हो सकती है.
आपके स्नेहिल शब्दों के लिए ह्रदय से आभारी.
आलोक सिंह "साहिल"
सभी मित्रों को उनके शुभकामनाओं के लिए दिल से आभार.
आपका
आलोक सिंह "साहिल"
शैलेश जमलोकी जी बहुत बधाई के पात्र है कि हिन्दी के लिए हिन्द-युग्म के उठने वाले कदम को सकारात्मक लेते हैं।
आशा है कि हम हिन्दी प्रेमियों को अपने विश्लेषणों द्वारा कृतार्थ करते रहेंगे।
दिव्या जी,
आपकी कविता बहुत ही सशक्त है। आपको भावों को जीना आता है। हिन्द-युग्म को आपकी लेखनी से बहुत उम्मीदें हैं।
अल्पना जी और आलोक जी,
आपलोग तो हिन्दी जगत को वरदान है। हम जब भी हिन्दी पढ़ने से दूर होयेंगे, आपकी पठनीयता को याद कर लेंगे, हमें प्रेरणा मिल जायेगी। आप दोनों को केवल नमन किया जा सकता है।
सीमा जी और राजीव तनेजा भी बहुत उर्जावान पाठक हैं। जल्द ही इन्हें भी हिन्द-युग्म शीर्ष पाठकों में देखना चाहेगा।
अन्य सभी विजेताओं को भी बधाइयाँ। आगे भी भाग लेते रहें और हिन्दी की असली सेवा करते रहें।
bharatwaasi bhai, bahut bahut dhanywaad
alok singh "Sahil"
*श्रीकांत जी , वाह !कविता के रूप में आप की बधाई पढ़ कर मन खुश हो गया.धन्यवाद.
*शैलेश भारतवासी जी ,आप हिन्दयुग्म की टीम ने न केवल उदीयमान कवियों को बल्कि पढने वालों और सीखने वालों को एक मंच दिया है.मैंने हिन्दी की ऐसी अच्छी interactive साईट अभी तक कहीं नहीं देखी.
पूरी कोशिश करुँगी कि हमेशा नियमित पाठक रहूँ -
कामना करती हूँ कि हिन्दयुग्म खूब उन्नति करे.
धन्यवाद.
alpana ji main bhi yahi dua karunga ki aapki kamna purn ho.
alok singh "Sahil"
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सम्पादक दिव्य नर्मदा
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
लाल चिडिया
सिर्फ़ एक नहीं है.
मैं, तुम,
ये, वे,
हम सब
अपने-अपने पिजरों में क़ैद
लाल चिडियाएँ ही तो हैं.
आते समय हमारा
किया जाता है स्वागत.
फ़िर काटे जाते हैं पंख.
ताकि भर न सकें उड़ान.
बार-बार कोशिश करने पर भी
उड़ नहीं पाए हम.
हमारे हौसलों का चिडा
उत्साह देता रहा. .
जमाने ने
नहीं छोड़ा उसे भी .
इतना सताया कि
उसे याद ही नहीं रहा कि
वह बिना पंखों के भी
कैद रहने को मजबूर नहीं है. .
पिंजरे में कहीं
एक छोटा सा
दरवाजा भी है.
पिंजरे की सलाखें
कितनी भी मजबूत क्यों न हों
उन्हें तोड़ना
नामुमकिन नहीं है.
इसके पहले कि
आसों की आहट
और सांसों की चाहत
दम तोड़ दे,
प्रयासों का
ताजमहल बनने की तमन्ना
भोर की ठंडी हवा का स्पर्श पाकर
जिन्दा हो उठती है.
और मैं उगते सूरज को देखकर
फ़िर से
उषा का स्वागत
करने लगता हूँ.
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