फटाफट (25 नई पोस्ट):

Wednesday, January 09, 2008

नीलकण्ठ तो मै नही हूँ


नील कण्ठ तो मै नही हूँ
लेकिन विष तो कण्ठ धरा है !
कवि होने की पीड़ा सह लूँ
क्यों दुख से बेचैन धरा है ?

त्याग, शीलता, तप सेवा का
कदाचित रहा न किंचित मान ।
धन, लोलुपता, स्वार्थ, अहं का,
फैला साम्राज्य बन अभिमान ।

मानव मूल्य आहत पद तल,
आदर्श अग्नि चिता पर सज्जित ।
है सत्य उपेक्षित सिसक रहा,
अन्याय, असत्य, शिखा सुसज्जित ।

ले क्षत विक्षत मानवता को
कांधों पर अपने धरा है ।
नील कण्ठ तो मैं नही हूँ
लेकिन विष तो कण्ठ धरा है ।

सौंदर्य नही उमड़ता उर में,
विद्रूप स्वार्थ ही कर्म आधार ।
अतृप्त पिपासा धन अर्जन की,
डूबता रसातल निराधार ।

निचोड़ प्रकृति को पी रहा,
मानव मानव को लील रहा ।
है अंत कहीं इन कृत्यों का,
मानव! तूँ क्यों न संभल रहा ?

असहाय रुदन चीत्कारों को,
प्राणों में अपने धरा है ।
नीलकण्ठ तो मैं नही हूँ,
लेकिन विष तो कण्ठ धरा है ।

तृष्णा के निस्सीम व्योम में,
बन पिशाचर भटकता मानव ।
संताप, वेदना से ग्रसित,
हर पल दुख झेल रहा मानव ।

हर युग में हो सत्य पराजित,
शूली पर चढ़ें मसीहा क्यों ?
करतूतों से फिर हो लज्जित,
उसी मसीहा को पूजें क्यों ?

शिरोधार्य कर अटल सत्य को,
सीने में अंगार धरा है ।
नीलकण्ठ तो मैं नही हूँ,
लेकिन विष तो कण्ठ धरा है ।

कवि कुलवंत सिंह..

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

16 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर रचना |
आपका शब्द कोष काफी व्यापक है |
--
अवनीश

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर रचना है कवि जी यह आपकी ..

निचोड़ प्रकृति को पी रहा,
मानव मानव को लील रहा ।
है अंत कहीं इन कृत्यों का,
मानव! तूँ क्यों न संभल रहा ?

सही लिखा है आपने यह .!!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

स्पर्शी रचना..
बहुत ही सुन्दर लिखा है..
बस कहीं कहीं शिल्प में थोडा भटकाव प्रतीत हो रहा है..

लील रहा ...संभल रहा
मसीहा क्यों...पूजें क्यों
-
एक सुन्दर रचना के लिये बधाई

seema gupta का कहना है कि -

नील कण्ठ तो मै नही हूँ
लेकिन विष तो कण्ठ धरा है !
कवि होने की पीड़ा सह लूँ
क्यों दुख से बेचैन धरा है ?
" very interesting, n heart touching poetry"
regards

Harihar का कहना है कि -

Bahut khub Kulvant Sngh Ji

सौंदर्य नही उमड़ता उर में,
विद्रूप स्वार्थ ही कर्म आधार ।
अतृप्त पिपासा धन अर्जन की,
डूबता रसातल निराधार ।

12 taarikh ko besabri se
aapse mlne kaa intajaar hai

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

सौंदर्य नही उमड़ता उर में,
विद्रूप स्वार्थ ही कर्म आधार ।
अतृप्त पिपासा धन अर्जन की,
डूबता रसातल निराधार ।
कुलवंत जी सच्चाई बयां करती पंक्तियाँ...बहुत खूबसूरत भाव और शब्द. आनंद आ गया...वाह..
नीरज

शोभा का कहना है कि -

कुलवन्त जी
बहुत सुन्दर लिखा है -
त्याग, शीलता, तप सेवा का
कदाचित रहा न किंचित मान ।
धन, लोलुपता, स्वार्थ, अहं का,
फैला साम्राज्य बन अभिमान ।

मानव मूल्य आहत पद तल,
आदर्श अग्नि चिता पर सज्जित ।
है सत्य उपेक्षित सिसक रहा,
अन्याय, असत्य, शिखा सुसज्जित ।

बधाई स्वीकारें

आलोक साहिल का कहना है कि -

कुलवंत जी बहुत ही अच्छी रचना.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

विश्व दीपक का कहना है कि -

कवि कुलवंत जी, रचना अच्छी है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मुझे आपसे एक शिकायत है। आप जब प्राकृत भाषा के शब्द यानि कि तत्सम शब्द लेकर चलें तो उसे सही स्थान पर वाक्य में डालें, नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। साथ हीं साथ तुकबंदी का भी सही ध्यान दें जैसे कि
कण्ठ धरा
बेचैन धरा
यहाँ तुकबंदी बिगड़ी है, जबकि कविता की यही पंक्तियाँ जान हैं। उम्मीद करता हूँ कि आगे से भी आप इस बात का ध्यान रखेंगे। अगर कुछ गलत कह दिया हो मैने तो माफ कीजिएगा।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

Anonymous का कहना है कि -

behad satik rachana hai,main nilkanth nahi par kanth tho nilaa hai jaher se bhara.badhai.

Alpana Verma का कहना है कि -

मानव मूल्य आहत पद तल,
आदर्श अग्नि चिता पर सज्जित ।
है सत्य उपेक्षित सिसक रहा,
अन्याय, असत्य,शिखा सुसज्जित ।

कविता समृद्ध लगती है.
भावों की अभिव्यक्ति को शब्दों का सुंदर जामा पहनाया है.
'शिरोधार्य कर अटल सत्य को,
सीने में अंगार धरा है ।'
बहुत सही लिखा है,कवि के मन की व्यथा का सही बखान हुआ है.
समाज के कठोर रवैये को समझते और सहते हुए भी उसका मन संवेदनशील ही रहता है.
अच्छी कविता है.

dr minoo का कहना है कि -

bahut achhi rachna kavi kulwant ji...badhaaii..

dr minoo का कहना है कि -

very nice kavi kulwant ji..

Kavi Kulwant का कहना है कि -

आप सभी के प्यार और स्नेह को आत्मसात करते हुए... तन्हा जी के विचारों को ग्रहण करने का प्रयत्न कर रहा हूँ...

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपकी कविता बिलकुल भी प्रभावित नहीं करती। शैली में नयापन नहीं है। शब्द-चुनाव भी प्रवाह को बाधित कर रहा है। जब गीत लिखें तो प्रवाह का भी ख्याल रखें।

धन्यवाद।

Mohinder56 का कहना है कि -

कुलवंत जी,

मुझे आपकी रचना बहुत भायी... शब्द चयन और मिलान भी सटीक है... बधाई

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)