tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post609709600048740134..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: नीलकण्ठ तो मै नही हूँशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70491800203168018582008-01-11T12:18:00.000+05:302008-01-11T12:18:00.000+05:30कुलवंत जी,मुझे आपकी रचना बहुत भायी... शब्द चयन और ...कुलवंत जी,<BR/><BR/>मुझे आपकी रचना बहुत भायी... शब्द चयन और मिलान भी सटीक है... बधाईMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42049151825590255262008-01-11T09:49:00.000+05:302008-01-11T09:49:00.000+05:30आपकी कविता बिलकुल भी प्रभावित नहीं करती। शैली में ...आपकी कविता बिलकुल भी प्रभावित नहीं करती। शैली में नयापन नहीं है। शब्द-चुनाव भी प्रवाह को बाधित कर रहा है। जब गीत लिखें तो प्रवाह का भी ख्याल रखें।<BR/><BR/>धन्यवाद।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-78563084064354208562008-01-10T15:57:00.000+05:302008-01-10T15:57:00.000+05:30आप सभी के प्यार और स्नेह को आत्मसात करते हुए... तन...आप सभी के प्यार और स्नेह को आत्मसात करते हुए... तन्हा जी के विचारों को ग्रहण करने का प्रयत्न कर रहा हूँ...Kavi Kulwanthttps://www.blogger.com/profile/03020723394840747195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41238983067593795762008-01-10T10:40:00.000+05:302008-01-10T10:40:00.000+05:30very nice kavi kulwant ji..very nice kavi kulwant ji..dr minoohttps://www.blogger.com/profile/08488251401587589319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-7995524235157217722008-01-10T10:39:00.000+05:302008-01-10T10:39:00.000+05:30bahut achhi rachna kavi kulwant ji...badhaaii..bahut achhi rachna kavi kulwant ji...badhaaii..dr minoohttps://www.blogger.com/profile/08488251401587589319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55190179569188720162008-01-10T03:02:00.000+05:302008-01-10T03:02:00.000+05:30मानव मूल्य आहत पद तल,आदर्श अग्नि चिता पर सज्जित ।ह...मानव मूल्य आहत पद तल,<BR/>आदर्श अग्नि चिता पर सज्जित ।<BR/>है सत्य उपेक्षित सिसक रहा,<BR/>अन्याय, असत्य,शिखा सुसज्जित ।<BR/><BR/>कविता समृद्ध लगती है.<BR/>भावों की अभिव्यक्ति को शब्दों का सुंदर जामा पहनाया है.<BR/>'शिरोधार्य कर अटल सत्य को,<BR/>सीने में अंगार धरा है ।'<BR/>बहुत सही लिखा है,कवि के मन की व्यथा का सही बखान हुआ है.<BR/>समाज के कठोर रवैये को समझते और सहते हुए भी उसका मन संवेदनशील ही रहता है.<BR/>अच्छी कविता है.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86715359386330986462008-01-09T21:18:00.000+05:302008-01-09T21:18:00.000+05:30behad satik rachana hai,main nilkanth nahi par kan...behad satik rachana hai,main nilkanth nahi par kanth tho nilaa hai jaher se bhara.badhai.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-66470533414971322542008-01-09T19:13:00.000+05:302008-01-09T19:13:00.000+05:30कवि कुलवंत जी, रचना अच्छी है। लेकिन हर बार की तरह ...कवि कुलवंत जी, रचना अच्छी है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मुझे आपसे एक शिकायत है। आप जब प्राकृत भाषा के शब्द यानि कि तत्सम शब्द लेकर चलें तो उसे सही स्थान पर वाक्य में डालें, नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। साथ हीं साथ तुकबंदी का भी सही ध्यान दें जैसे कि<BR/>कण्ठ धरा<BR/>बेचैन धरा <BR/>यहाँ तुकबंदी बिगड़ी है, जबकि कविता की यही पंक्तियाँ जान हैं। उम्मीद करता हूँ कि आगे से भी आप इस बात का ध्यान रखेंगे। अगर कुछ गलत कह दिया हो मैने तो माफ कीजिएगा।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26065730238914970332008-01-09T17:58:00.000+05:302008-01-09T17:58:00.000+05:30कुलवंत जी बहुत ही अच्छी रचना. बधाई हो आलोक सिंह "...कुलवंत जी बहुत ही अच्छी रचना.<BR/> बधाई हो <BR/> आलोक सिंह "साहिल"आलोक साहिलhttps://www.blogger.com/profile/07273857599206518431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-53366889177447533092008-01-09T16:18:00.000+05:302008-01-09T16:18:00.000+05:30कुलवन्त जीबहुत सुन्दर लिखा है -त्याग, शीलता, तप से...कुलवन्त जी<BR/>बहुत सुन्दर लिखा है -<BR/>त्याग, शीलता, तप सेवा का<BR/>कदाचित रहा न किंचित मान ।<BR/>धन, लोलुपता, स्वार्थ, अहं का,<BR/>फैला साम्राज्य बन अभिमान ।<BR/><BR/>मानव मूल्य आहत पद तल,<BR/>आदर्श अग्नि चिता पर सज्जित ।<BR/>है सत्य उपेक्षित सिसक रहा,<BR/>अन्याय, असत्य, शिखा सुसज्जित ।<BR/><BR/>बधाई स्वीकारेंशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-72388297005967016982008-01-09T15:17:00.000+05:302008-01-09T15:17:00.000+05:30सौंदर्य नही उमड़ता उर में,विद्रूप स्वार्थ ही कर्म आ...सौंदर्य नही उमड़ता उर में,<BR/>विद्रूप स्वार्थ ही कर्म आधार ।<BR/>अतृप्त पिपासा धन अर्जन की,<BR/>डूबता रसातल निराधार ।<BR/>कुलवंत जी सच्चाई बयां करती पंक्तियाँ...बहुत खूबसूरत भाव और शब्द. आनंद आ गया...वाह..<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-85746333181432623342008-01-09T15:13:00.000+05:302008-01-09T15:13:00.000+05:30Bahut khub Kulvant Sngh Jiसौंदर्य नही उमड़ता उर में...Bahut khub Kulvant Sngh Ji<BR/><BR/>सौंदर्य नही उमड़ता उर में,<BR/>विद्रूप स्वार्थ ही कर्म आधार ।<BR/>अतृप्त पिपासा धन अर्जन की,<BR/>डूबता रसातल निराधार ।<BR/><BR/>12 taarikh ko besabri se <BR/>aapse mlne kaa intajaar haiHariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11142041231218504282008-01-09T14:58:00.000+05:302008-01-09T14:58:00.000+05:30नील कण्ठ तो मै नही हूँलेकिन विष तो कण्ठ धरा है !कव...नील कण्ठ तो मै नही हूँ<BR/>लेकिन विष तो कण्ठ धरा है !<BR/>कवि होने की पीड़ा सह लूँ<BR/>क्यों दुख से बेचैन धरा है ?<BR/>" very interesting, n heart touching poetry"<BR/>regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-41532016449962227522008-01-09T14:56:00.000+05:302008-01-09T14:56:00.000+05:30स्पर्शी रचना..बहुत ही सुन्दर लिखा है..बस कहीं कहीं...स्पर्शी रचना..<BR/>बहुत ही सुन्दर लिखा है..<BR/>बस कहीं कहीं शिल्प में थोडा भटकाव प्रतीत हो रहा है..<BR/><BR/>लील रहा ...संभल रहा <BR/>मसीहा क्यों...पूजें क्यों<BR/>-<BR/>एक सुन्दर रचना के लिये बधाईभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-47370406362409670762008-01-09T14:38:00.000+05:302008-01-09T14:38:00.000+05:30सुंदर रचना है कवि जी यह आपकी ..निचोड़ प्रकृति को पी...सुंदर रचना है कवि जी यह आपकी ..<BR/><BR/>निचोड़ प्रकृति को पी रहा,<BR/>मानव मानव को लील रहा ।<BR/>है अंत कहीं इन कृत्यों का,<BR/>मानव! तूँ क्यों न संभल रहा ?<BR/><BR/>सही लिखा है आपने यह .!!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-83911964422403893392008-01-09T14:28:00.000+05:302008-01-09T14:28:00.000+05:30सुंदर रचना |आपका शब्द कोष काफी व्यापक है |--अवनीशसुंदर रचना |<BR/>आपका शब्द कोष काफी व्यापक है |<BR/>--<BR/>अवनीशअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.com