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Tuesday, January 08, 2008

लहरों के आने तक












एक नयी खोज ने
सिद्ध कर दिया है
‘बालू’ के कणों' से निर्मित
'पिण्ड' में भी
'स्व-निर्माण प्रक्रिया' जारी है

‘समुद्र तट' पर बने 'घरौंदों' में
हो रहा है 'घरौंदों' का निर्माण
‘ज्वार भाटे' की लहरों से बेखबर,
बस घरौंदे को ही …
‘दुनियाँ’ समझने में मगन
‘बालू के पिण्ड'
करते जा रहे हैं
'असंख्य पिण्डों' की सृष्टि
बालू कहां से आयी है
बालू कहाँ से आयेगी ... ?
जारी है तमाशा
बस ….
'तूफानी लहरों' के आने तक

खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है प्रारम्भ…
'स्वनिर्माण प्रकिया' को
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है बन्द
इसी प्रकिया को

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

‘'समुद्र तट' पर बने 'घरौंदों' में
हो रहा है 'घरौंदों' का निर्माण
‘'ज्वार भाटे' की लहरों से बेखबर,
बस 'घरौंदे' को ही …
‘दुनियाँ’ समझने में मगन
‘बालू के पिण्ड''
करते जा रहे हैं
'असंख्य पिण्डो' की स्रष्टि
'बालू' कहाँ से आयेगी
चालू है तमाशा
बस ….
तूफानी लहरों के आने तक
" Very strange,but equally true also. very nice poetry.

Regards

शोभा का कहना है कि -

श्रीकान्त जी
आपकी चिरपरिचित शैली में लिखी कविता पढ़ी । कुछ देर लगी समझने में । काफी गम्भीर भाव हैं । आपकी दृष्टि बहुत सूक्ष्म है । सुन्दर भाषा प्रभावित करती है । चित्र भी बहुत प्रासंगिक लगा ।
एक नयी खोज ने
सिद्ध कर दिया है
‘बालू’ के कणों' से निर्मित
'पिण्ड' में भी
'स्व-निर्माण प्रक्रिया' चालू है
एक अच्छी रचना के लिए बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

‘बालू’ के कणों' से निर्मित
'पिण्ड' में भी
'स्व-निर्माण प्रक्रिया' चालू है


आपकी कविता के भाव बहुत गहरे होते हैं .पर समझने के लिए २ या ३ बार पढ़ना पड़ता है :) अच्छी लगी इस बार की आपकी रचना आपके ही चिरपरिचित अंदाज़ में ...बधाई सुंदर और मुश्किल कविता के लिए :)

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है चालू…
'स्वनिर्माण प्रकिया' को
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है बन्द
इसी प्रकिया को

गहरी रचना। "चालू.." यह शब्द आपके शब्द संयोजन में अनुकूल नही लगता। कोई दूसरा शब्द देखिये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Mohinder56 का कहना है कि -

श्रीकान्त जी,

लोग बालू छान कर सोना और चांदी इक्क्ठा करते हैं आपने बालू में से हीरा (कविता) निकाल ली. गहरायी लिये इस रचना के लिये बधाई

Unknown का कहना है कि -

बन्धु राजीव जी

मित्रेच्छा की अवहेलना करना मेरे लिए बिल्कुल सम्भव नहीं है. इसलिए मैं 'चालू' के स्थान पर 'प्रारम्भ' और जारी शब्दों का उपयोग करते हुए यथोचित संशोधन कर रहा हूँ. वैसे मुझे प्रसन्नता है की आपने इस ओर मेरा ध्यान आकृष्ट किया

धन्यवाद

Anonymous का कहना है कि -

श्रीकांत जी, चीज नई पर अंदाज वही. एक बार फ़िर बेहतरीन प्रस्तुति.
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है प्रारम्भ…
'स्वनिर्माण प्रकिया' को
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है बन्द
इसी प्रकिया को
क्या बात है!
बहुत बहुत साधुवाद
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

behad gehrai se likhi kavita,do baar padhi to arth samjhe,balu ke kano se bane pind mein bhi swanirman hota hai.shandar bhav hai.

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है प्रारम्भ…
'स्वनिर्माण प्रकिया' को
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है बन्द
इसी प्रकिया को.....

gr8! utkrist bhaav ,gambhiir rachna
sunita yadav

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है प्रारम्भ…
'स्वनिर्माण प्रकिया' को
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है बन्द
इसी प्रकिया को
--- बहुत सुंदर |

अवनीश

सुनीता शानू का कहना है कि -

श्रीकान्त जी अगर आप ही के शब्दो को दोहराऊँ तो यही कहूँगी...यह प्रक्रिया निरंतर चलती ही रहती है बनना और ढहना तो नियम है प्रकृति के...आपकी कविता में जो भाव है बहुत खूबसूरत लगे...निम्न पंक्तियों में...
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है प्रारम्भ…
'स्वनिर्माण प्रकिया' को
खोज अभी तक जारी है
उस 'द्रव्य' की
जो कर देता है बन्द
इसी प्रकिया को

निःसंदेह ...

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

@श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' जी,
-आपकी कविता बहुत ही सुन्दर और सहज है..बहुत नयापन ले कर.. जीवन की सच्चाई को बता रही है..
- शब्द चयन (कुछ को छोड़ कर) अच्छा है
-मुझे बस एक छोटी सी बात समझनी है आपने कई शब्दों को कौमा ('') के अन्दर रखा है...कोई ख़ास वजह?
- आपका कविता का प्रस्तुतीकरण कविता को और सुन्दर बना देता है
-आपका विराम चिह्न प्रयोग कहीं कहीं लुप्त है जैसे ..
" एक नयी खोज ने
सिद्ध कर दिया है
‘बालू’ के कणों' से निर्मित
'पिण्ड' में भी
'स्व-निर्माण प्रक्रिया' जारी है"
बधाई सुन्दर रचना के लिए....
सादर
शैलेश

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कांत जी,

बहुत ही उत्कृष्ट रचना समुचित गाम्भीर्य के साथ.. आनन्द आ गया पढ़्कर
दूरदर्शी एवं सूक्ष्मदर्शी ही कहूँगा में तो आपको.. भले ही आपकी दृष्टि में साइंस की लैब घूम रही हो इस वक़्त इन शब्दों को पढ़्कर..

Alpana Verma का कहना है कि -

श्रीकांत जी,
*आप ने कविता में वैज्ञानिक सोच और कवि के मनोभावों का अच्छा मेल -जोल दिखाया है.
*कविता में प्रवाह है,शब्दों का चयन ध्यान से किया है और आप की यह शैली अच्छी लगती है.
*आप की कुछ अन्य कवितायों की तरह इस में भी आप का प्रकृति प्रेम सागर किनारे ले जाता है और जीवन के जिन गंभीर पहलूओं से साक्षात्कार करवा रहा है.कविता के रूप में उनकी प्रस्तुति के लिए आप को धन्यवाद.

Mohinder56 का कहना है कि -

श्रीकान्त जी,

अपनों से ही टकरा कर (पत्थर से पत्थर) बालू बनती है.. हां शायद कुछ देर के लिये घरोंदा बन कर उसका मन बहल जाता होगा... और जिस द्रव्य का आपने जिक्र किया है वह निश्चय ही जल है.. जिससे मिले कर बालू घरोंदा बन पाती है और जिसके सूखते ही फ़िर से कण कण बिखर जाता है..

सुन्दर भाव भरी कविता जिसमे वैज्ञानिक सोच भी डाली गई है... के लिये बधाई

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं गहरी रचना है कान्त जी।बालू , जल , घरौंदों का सामंजस्य अच्छा लगा।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

dr minoo का कहना है कि -

nayaa concept..bahut badhiyaa prastuti..shrikaant ji

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इसे मैं आपकी बेहतर प्रस्तुति कहूँगा। वैसे अतुकांथ कविता लिखते समय शब्द-चुनाव ही शिल्प होता है, वहीं गति का निर्माण करते हैं। इस ओर और मेहनत की आवश्यकता है।

Anonymous का कहना है कि -

beautiful poetry.

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