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Thursday, January 10, 2008

नया अंदाज़ तलाशिये!!




बन रही है यह ज़िंदगी एक रास्ता भूलभुलैया सी
वो कहते हैं अब अपनी मंज़िल कहीं और तलाशिये

खत्म होने को है अब सब बातें प्यार की
अब कोई नया दर्द और नया शग़ल तलाशिये

नाकाम है सब हसरतें इस पत्थर दिल संसार में
जाइए अब नया शहर ,कोई नया युग तलाशिये

दिखता नही नज़रों में इजहार अब किसी भी बात का
अब कहाँ हर इंसान में यह रूप आप तलाशिये

जागती आँखो में ना पालिए अब कोई नया ख्वाब
समुंद्र से गहरे दिल का बस किनारा तलाशिये

होते नही अब वो ख़फा भी मेरी किसी बात पर
प्यार पाने का उनसे कोई नया अंदाज़ तलाशिये!!


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25 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

रंजना जी !

नये वर्ष में आपकी पहली गजल, वही पुराना अंदाज और भावनात्मक पक्ष. परन्तु प्रस्तुति में नयापन लिए हुए. जब भी आपकी गजलें पढ़ता हूँ तो ...... शब्द शिल्प का जाल नहीं ..... भाव महत्वपूर्ण होते हैं जो आपकी रचनाओं को संवेदनशीलता और गहराई प्रदान करते हैं. किसी के भी दिल की गहराई को नापने का प्रयास करती हुयी एक और प्रस्तुति बधाई .....

Unknown का कहना है कि -

वाह
वाह
वाह........आप कविता की परिकल्पना बहुत ही आच्छे ढ़ग से करती है।

मैं आपकी कविता को अपने पूरे आँफिस में सुनाता हूँ।

Keep on send such fantastic Poems.

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Vineet Kumar Gupta
(विनीत कुमार गुप्ता)

Anonymous का कहना है कि -

wah ranju ji behtarin,hote nahi khafa ab wo,unse pyar pane ka naya andaz talashiye,sundar.

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अहा !!! वाह वाह

दिखता नही नज़रों में इजहार अब किसी भी बात का
अब कहाँ हर इंसान में यह रूप आप तलाशिये
-- बहुत खूब

अवनीश तिवारी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बधाई हो रंजना जी,

वास्तव में भाव-पक्ष बहुत मजबूत होता है आपका, बहा ले जाता है धारा में.. और इतना गहरा की शिल्प के उतार चढ़ाव का पता ही नही चलता..

बहुत गहरी रचना..

साधूवाद

seema gupta का कहना है कि -

खत्म होने को है अब सब बातें प्यार की
अब कोई नया दर्द और नया शग़ल तलाशिये
"बहुत खूब, एक नया अंदाज , एक सुंदर रचना"
" तेरे दर्द गमो से ना अब मुझे कोई वास्ता , वो कहतें हैं अपने आंसू के लिए कोई और दामन तलाशिये"

regards

dr minoo का कहना है कि -

ranju...achhi ghazal...

anuradha srivastav का कहना है कि -

सुन्दर रचना...........

दिवाकर मणि का कहना है कि -

रंजना जी,
सर्वप्रथम ख्रीष्टाब्द नववर्ष की शुभकामनाएँ स्वीकारें.

नये साल में आपकी ओर से हम पाठकों को दिया गया यह उपहार अच्छा लगा.

"नाकाम है सब हसरतें इस पत्थर दिल संसार में
जाइए अब नया शहर ,कोई नया युग कोई तलाशिये"

--यहाँ "कोई नया युग कोई तलाशिये" में "कोई" की द्विरुक्ति निरर्थक लगी.

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

सुंदर रचना!!
वाकई नए अंदाज़ में!

Anonymous का कहना है कि -

जागती आँखो में ना पालिए अब कोई नया ख्वाब
समुंद्र से गहरे दिल का बस किनारा तलाशिये

होते नही अब वो ख़फा भी मेरी किसी बात पर
प्यार पाने का उनसे कोई नया अंदाज़ तलाशिये
क्या बात है रंजू जी आपने तो कमाल ही कर दिया. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.
बहुत बहुत शुभकामनाएं
आलोक सिंह "साहिल"

विश्व दीपक का कहना है कि -

रंजना जी,
आपकी रचना पसंद आई। भाव हमेशा की तरह बेहतरीन हैं।

नाकाम है सब हसरतें इस पत्थर दिल संसार में
जाइए अब नया शहर ,कोई नया युग कोई तलाशिये

जागती आँखो में ना पालिए अब कोई नया ख्वाब
समुंद्र से गहरे दिल का बस किनारा तलाशिये

सुभान-अल्लाह!

लेकिन....
पर...
परंतु....
परंतु मैं भी हमेशा की तरह इस बात पर जोड़ दूँगा कि गज़ल केवल भाव से नहीं बनता। भाव नींव होते हैं, लेकिन मकान खड़ा करने के लिए ढाँचे की भी बराबर की जरूरत होती है। आपकी इस रचना में शिल्प की नितांत कमी है। रदीफ, बहर , काफिया सारे हिले हुए हैं।
यह मेरी बिमारी कह लीजिए या और कुछ लेकिन गज़ल के मामले में मैं शिल्प की अवहेलान बर्दाश्त नहीं कर पाता।
आशा करता हूँ कि आप मेरी बातों का बुरा नहीं मानेंगीं।

आपका शुभाकांक्षी..
विश्व दीपक 'तन्हा'

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

रंजना जी,
गुलज़ार ने ज़िन्दगी के मध्यान्ह में प्यार की एक तस्वीर बयां की है --------
"वो दो-एक घंटों से उसी library में किताब तलाश रही है और मैं वहीं एक मेज़ पर बैठा उसे पढ़ रहा हूँ ....हम दोनों जीवनसाथी है ...अब लाब्जों की ज्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती ....संवाद के लिए हमारे बीच..."

आपकी कविता पढ़ कर उनकी ये बात याद आ गयी.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

नमस्ते आप सबने मेरी इस साल की पहली रचना को पसंद किया इसके लिए शुक्रिया ...दिवाकर जी वह टाइप की गलती थी आपने उस तरफ़ ध्यान दिलाया मैंने वह ठीक कर दिया है शुक्रिया ...डॉ राम गिरी जी आपने जो गुलजार की पंक्तियाँ लिखी वह दिल को छू गई ..बहुत अच्छी लगी शुक्रिया ...दीपक जी आपने मेरी लिखी रचना को पसंद किया और उस में गलती भी बताई ..तो मैंने यह कहा ही नही यह मैंने गजल लिखी है..:) यह दिल की बात लिखी है बस ..और कहीं सुना था कि इस तरह लिखने को आज़ाद लेखन कहा जाता है ...ज्यादा मैं इस बारे में नही जानती .फ़िर भी आगे से कोशिश करुँगी कि आपके कहे अनुसार लिख सकूं ..शुक्रिया

Anonymous का कहना है कि -

bahut khub ranjna jii

dil ko chu gayi aapki ye nazm

Is Pathar Ki Duniya Mein Aksar Dil Tut Jaaya Karte Hain
Aankhen Bhi Sambal Kar Band Karna Mere Dost
Palko Ke Bich Bhi Sapne Tut Jaaya Karte Hai ....

मीनाक्षी का कहना है कि -

वाह-वाह कैसे करूँ जब दिल से तेरे आह निकली होगी तो यह गज़ल बनी होगी...
वो कहते है भाव तो गहरे हैं, शिल्प नहीं
उन्हे क्या पता कि काँपते हाथों से रची होगी..
आप जो भी लिखती हैं दिल से लिखती हैं और दिल में ही सीधे उतर जाती है.
तन्हा जी की राय से आपकी गज़ल को चार चाँद लग सकते हैं.

शोभा का कहना है कि -

रंजू जी
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने-
जागती आँखो में ना पालिए अब कोई नया ख्वाब
समुंद्र से गहरे दिल का बस किनारा तलाशिये

होते नही अब वो ख़फा भी मेरी किसी बात पर
प्यार पाने का उनसे कोई नया अंदाज़ तलाशिये!!
वाह . badhayi

Mohinder56 का कहना है कि -

प्रशन्सा मीठा जहर है और टिप्पणी कडवी दवा... मैं तन्हा जी की बात से सहमत हूं.. सिर्फ़ भाव से रचना में जान नहीं पडती.

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

रंजू जी,
पता नहीं मुझे क्यों ये कविता क्यों अच्छी नहीं लगी...
चलो आप मुझे ये बताइए अपनी कविता के बारे मै,
१) ये शगल क्या होता है? "अब कोई नया दर्द और नया शग़ल तलाशिये"
२)क्या आप इस कविता मै नसीहत दे रही है ?
३) भाव पक्ष की बात बहुत हो रही है.. आपकी ग़ज़ल के बारे मै... पर मुझे लग रहा है आप बहुत निराश है तो आपने ये कविता लिखी है ?

"नाकाम है सब हसरतें इस पत्थर दिल संसार में
जाइए अब नया शहर ,कोई नया युग तलाशिये"

चलो मै इस मै कुछ उम्मीद की रौशनी भरने की कोशिश करता हू..

"उम्मीद की है रौशनी जहाँ,मंजिलो तक पहुचने की
अँधेरी रात की, ये रौशनी, अपने दिल मै तलाशिये "

उम्मीद है आप मेरी टिप्पणिया सकारात्मक रूप मै लेंगी...
सादर
शैलेश

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

बन रही है यह ज़िंदगी एक रास्ता भूलभुलैया सी
वो कहते हैं अब अपनी मंज़िल कहीं और तलाशिये
रंजना जी,मुझे कविता का शोक तो नही लेकिन आप की काविता पढी तो,बार बार पढने को मन किया कया शव्द हे,मुहं से बरबस ही वाह वाह निकलती हे,सच बहुत अच्छी काविता हे.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपने इस कविता के शिल्प पर कोई मेहनत नहीं की है। मुक्त कविता, ग़ज़ल में भी प्रवाह पर ध्यान दिया जाता है।

Mukesh Garg का कहना है कि -

kehne ko sabd nhi hai fir bhi itna kehna chunga ki bahut sunder

Alpana Verma का कहना है कि -

जागती आँखो में ना पालिए अब कोई नया ख्वाब
समुंद्र से गहरे दिल का बस किनारा तलाशिये'
भाव अभिव्यक्ति अच्छी है.

Anonymous का कहना है कि -

प्रिय रंजू,
आपकी कविताओं में सुश्री महादेवी वर्मा की कविताओं का पुट मिलता है . मैंने बीते दिनों उनकी ऋचाओं को काफी गंभीरता से पढा है, और शायद आप जैसी प्रतिभों के लिए ही उन्होने लिखा है :-
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बना, जाग तुझको दूर जाना.
बाँध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले,
पंथ की बाधा बने हैं तितलियों के पर रंगीले,
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे ये फूल के दल ओस गीले,
तु न अपनी छाव को अपनें लिए कारा बनाना
जाग तुझको दूर जाना......
आपकी कविता के; प्रारंभ के चार पदों को पढ़ कर यही कुछ था.... जो मुझे याद आया.
क्योकि आपकी कविता को पढ़ते हुए कहीं और धयान चला जाय ...... असंभव... ऐसी गुंजाइश ही कहाँ ?

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत बहुत शुक्रिया मनोज जी ..आपने इतने प्यार से इसको पढ़ा .और पसन्द किया ...यूं ही आगे भी होंसला देते रहे .तहे दिल से आपका शुक्रिया !!

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