कवयित्री रश्मि प्रभा हिन्द-युग्म पर पिछले महीने से दस्तक दे रही हैं। मार्च माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता टॉप 10 में स्थान बना चुकी है। आज हम उसी कविता को प्रकाशित कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- तुम्हारी मर्ज़ी
तुम...कवि की प्रेरणा,
तुम...सृष्टि का गर्भ गृह,
तुम...शक्ति,
तुम...धन,
तुम...ममता,
तुम...अर्धांगिनी,
तुम...धैर्य,
तुम...अन्नपूर्णा,
तुम...प्रारंभिक संस्कार!
फिर भी,
आज तक नहीं कोई आधार !
तुम घर की शोभा,
फिर भी कहलाती टुकड़ों की मोहताज !
इन टुकड़ों से ऊपर
नहीं कोई पहचान!
अपने टुकड़े लेकर भी,
तुम आज भी हो असुरक्षित,
आलोचना की शिकार!
तुम चित्रकार की तुलिका का हो स्तम्भ,
पर इसमें भी है
पुरूष का दंभ!
तुमने क्या दिया,
क्या खोया,
इससे परे-
तुम्हारे ख़्वाबों, ख्यालों की चिन्दियाँ उडाने में
है उसका पुरुषार्थ!
आह!...
तब भी,
तुम कांच की चूड़ियाँ पहनना
नहीं भूलती,
पाजेब की रुनझुन में,
ढूंढ़ती हो राग ,
माथे पर बिंदी सजाती हो!
....मृत्यु शय्या तक जो ले जाता है,
भरे समाज में जो इज्ज़त है उछालता,
उसकी दीर्घायु कामनाओं का व्रत रखती हो!
हे नारी,
इस दुर्भाग्य की अपराधिनी तुम हो!
विनम्रता में
तुमने सर को इतना झुकाया
कि ....
तुम नज़र नहीं आती!
ख़ुद को पहचानना तुम्हारे ऊपर है,
परिवर्तन का सूत्र तुम्हारी मुठ्ठी में है.....
ख़ुद मरती हो,
बेटी को मरता देखती हो,
बहू को ख़ुद मारती हो
तुम अपनी छवि ख़ुद मिटाती हो !
खबरदार!
ईश्वर को दोष न दो,
ईश्वर ने तो तुम्हें तेज दिया-
तुमने ख़ुद अँधेरा किया,
कस्तूरी मृग की तरह ख़ुद से दूर रही !
इस स्व का दायित्व तुम्हारे अन्दर है,
अब जागो या मरो ,
तुम्हारी मर्जी!
प्रथम चरण मिला स्थान- दसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
रश्मि जी,
कविता बहुत अच्छी है, नारी को समग्र रूप में व्यक्त करती है, और उसकी वस्तुस्थिती पर प्रकाश डालती है।
मुझे प्रथमदृष्टया तो यह जाम्बवंत की गुहार सी लगी जो कि हनुमान को खुद अपनी शक्ती का अहसास कराती है।
मुझे सिर्फ आखिरी पंक्तियों में जहाँ नारी को दुविधा के भंवर में फंसा छोड़ देती है किसी आशावादी अंत के लिये बदली जा सकती तो और प्रभावी होता (यह मेरा निजी विचार है, कोई भी रचनाकार किसी की भी राय को किसी भी स्थिती में मानने के लिये कभी बाध्य नही होता) :-
" अब जागो या मरो ,
तुम्हारी मर्जी! "
एक उत्तम रचना, बधाईयाँ, क्षमायाचना सहित
सु श्री रश्मि प्रभा जी की सशक्त अभिव्यक्ति पधकर यही दोहराती हूँ ...
" अब जागो या मरो ,
तुम्हारी मर्जी! "
स्नेह,
- लावण्या
ख़ुद मरती हो,
बेटी को मरता देखती हो,
बहू को ख़ुद मारती हो
तुम अपनी छवि ख़ुद मिटाती हो !
बहुत खूब
बधाई
रचना
very nice and very expressive poem
mukesh ji ki baat ka samarthan karte hue bhi yahi kahoongi ki achchi kavita rashmi ji ,
stri ke vaastvik charitr ki ekdam sateek rooprekha aapki kavita ke maadhyam se
Stree ke har ek pahlu ko bahut bakhubi se sanjoya hai..... har baar ki tarah chand shabdo main bahut kuch kah diya hai....Ilu
Nari shaqti ko jagrit karne ki disha me ek immandar pahal. A nicly written poem.
sahi likha apne
nari jise apna devata mana poojti hai wohi uski barbadi me shamil ho jata hai kai baar...
nari ki manosthiti ko dikhati use jagati rachna chai lagi.
rashmi jee,
abhivandan
ख़ुद को पहचानना तुम्हारे ऊपर है,
परिवर्तन का सूत्र तुम्हारी मुठ्ठी में है.....
poori rachna bahut hi sakaaraatmak aur santulit hai.
- vijay
तिवारी जी के निजी विचार से तो ज्यादा वास्ता नहीं है ,,,,बाकी उन्होंने जो कहा है सही ही है,,,प्रथम दृष्टि में ,,सही,,
इसके अलावा शायद जो चित्रण आपने किया है उसमें पूरी इमानदारी बरती है,,,
सही है शायद,,
अब जागो या मरो,,तुम्हारी मर्जी,,
नियंत्रक महोदय ,
रश्मि जी की ये पोस्ट मुख प्रष्ट पर नहीं देख पा रहा हूँ,,,रिफ्रेश करके भी नहीं,,,,ना कविताओं में ना सभी में,,,,
कोई दूसरी कविता पढ़ते समय ताजा २५ प्रविष्टिया पर नजर गई तब पता लगा...
rashmi ji,
bahut hi shandaar kriti hai....ek aag bharane wali ,,,sochane par majboor karane wali rachna...striyon ko khud ko uthana hoga..aisi chetna jagaane wali rachna...
bahut bahut badhai
naari chetna ko jagrit karne ke liye ek saarthak kavita...........!!
Di.....meri subhkamana tumhare saath hai........!!
Tumhe bahut durr tak pahuchana hai....!!
बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह रचना रश्मि जी ..
रश्मि जी,
आपकी कविता में तो नारी के जीवन के तमाम रूप और गुण-अवगुण जो समय के उतार-चढाव के साथ कई जगह देखे जाते हैं उनका बखान बखूबी हुआ है. करीब-करीब कुछ भी नहीं बचा है कहने को अब.
लाजवाब
रशमि जी,
सादर अभिवन्दन,
आपने नारी विषयक जो उदगार व्यक्त किए है कि ख़ुद मरती हो,
बेटी को मरता देखती हो,
बहू को ख़ुद मारती हो
तुम अपनी छवि ख़ुद मिटाती हो !
खबरदार!
ईश्वर को दोष न दो,
ईश्वर ने तो तुम्हें तेज दिया-
तुमने ख़ुद अँधेरा किया,
कस्तूरी मृग की तरह ख़ुद से दूर रही !
इस स्व का दायित्व तुम्हारे अन्दर है,
अब जागो या मरो ,
तुम्हारी मर्जी!
वर्तमान में महसूस और देखे जा सकते है ।
बहुत सुन्दर ।
रश्मिप्रभा अच्छा लिख रहीं हैं.और भी कवयित्रियाँ हैं कात्यायनी ;वंदना केंगरानी ;जया जादवानी;पुष्पा तिवारी ;विद्या गुप्ता; आदि .अभी तो बहुतों का नेट से परिचय ही नहीं है .वरिष्ठ लेखकों की यहाँ उपस्तिथि होनी चाहिए. नए लिखनेवालों के लिए यह मंच अच्छा है लेकिन इन्हें भाषा और शिल्प और विचारों से संस्कारित कौन करेगा? क्या वरिष्ठ लोगों का यह कर्त्तव्य नहीं है? आप के इस बारे में विचार जानना चाहेंगे.
aapke maargdarshan ka swagat hai ,aap hind yugm ko apna aashirvaad de
yea hai ik aag ka paikar
yehi shabnam ka qatra bhi
yea hai ik habs ka aalam
yehi khushboo ka rasta bhi !
rashmi ji aapka hamari orkut life mai aana hamko dhany kar gya ............. bahut kuch sikhna hai aapse .....ham to is field mai nanhe shishu hai .hamara bhi marg darshan kariye na................
aunty, ur poems are fabulous . i have become a fan of ur writing and ur way of presentation .
It feels so real but putted in such a simplified language.
auntu aap saach mein bahut aacha likhati hai.
Its my honour that i was able to get in touch with u.
ALL THE BEST
कस्तूरी मृग की तरह ख़ुद से दूर रही !
इस स्व का दायित्व तुम्हारे अन्दर है,
bahut khub
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