फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, April 20, 2009

चाहत


अजीब-सी चाहत है…
कि अपना-सा कोई हो
अपने जैसा भी हो
उसकी आंखें...उसकी बातें...
उसकी हंसी...उसका साथ
सिर्फ एहसास...सिर्फ एहसास!

नहीं वो ऐसी नहीं
न ही वो…वैसी है
वो बस है वो...
जिसकी मुझे जरूरत है

हां! मैं जानता हूं उसे
मैंने अक्सर उसे गुनगुनाया है
मैंने महका है उसे
फिर भी ढ़ूंढ़ता हूं!

वो भी है कहीं पास ही
ढ़ूंढ़ती-सी मुझे को ही
उनींदी...अलसाई...अल्हड़-सी
गुनगुनाती-मुस्काती परी-सी
बिल्कुल मेरे ख्वाहिश-सी
मेरे जज़्बातों की कमी-सी!

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

10 कविताप्रेमियों का कहना है :

श्यामल सुमन का कहना है कि -

बहुत खूब।

अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है?
सच्चे अर्थों में अपनापन क्या सपना होता है?

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

manu का कहना है कि -

अच्छी प्रस्तुति अभिषेक जी,,,,
बधाई,,,

Divya Narmada का कहना है कि -

सपने तो
सपने होते हैं.
बोलो,
कब अपने होते हैं?
हम यथार्थ की
मरुस्थली में,
फसलें
यत्नों की बोते हैं.
कभी किनारे पर
डूबे तो,
कभी उबर
खाते गोते हैं.
उम्मीदों को
यत्न 'सलिल' से
सींच-सींच
हर्षित होते हैं.

********************

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

वो भी है कहीं पास ही
ढ़ूंढ़ती-सी मुझे को ही
उनींदी...अलसाई...अल्हड़-सी
गुनगुनाती-मुस्काती परी-सी
बिल्कुल मेरे ख्वाहिश-सी
मेरे जज़्बातों की कमी-सी!
khoobsurat khyaal

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

अभिषेक जी,

अच्छी रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ती, अपनी बात कहती हुई कविता।

वैसे संदेश को लेकर मैं जरा "शहरयार साहब" से इत्तेफाक रखता हूँ :-
(१) कभी किसी को मुक्क्मिल जहाँ नही मिलता.....
(२) जुस्तजू जिसकी थी उसको तो ना पाया हमने....

हो सकता है मेरे खयाल आपसे जुदा हों, पर मैं यह बड़ी ही शिद्दत से महसूस करता हूँ कि जो हमारे पास है, उसमें कुछ कमी सी जरूर लगती है।

मुकेश कुमार तिवारी

Urmi का कहना है कि -

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है !

rachana का कहना है कि -

सुंदर कविता अच्छी अभिव्यक्ति
सादर
रचना

अलीम आज़मी का कहना है कि -

tufaan mere sar se guzar kyon nahi jaata.
dariya meri kashti guzar kyon nahi jaata
sadiyon se bhi siyaah raat ke daldal me fansa hoo,
suraj mere andar ka ubhar kyon nahi jaata,
bahut umda likha hai aapne
badhai ke patr hai aap
shukriya

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' का कहना है कि -

बहुत अच्छा अभिषेक... तुम हमेशा प्यारा सोचते हो...
मैंने महका है उसे की जगह अगर मैं महका हूं उसमें होता तो शायद ज्यादा जंचता... वैसे ही 'बिल्कुल मेरे ख्वाहिश-सी' की जगह अगर होता 'बिल्कुल मेरी ख्वाहिश सी'

खैर ये सिर्फ ये बताने के लिए कि कविता बहुत ध्यान से आत्मसात की गई... बहुत प्यारी रचना

mona का कहना है कि -

A simple sweet poem with deep emotions.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)