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Wednesday, March 11, 2009

नहीं चाहिये यह एक दिन की होली अब


आज ज़मीन पर बिखरे टेसू देखे तो एहसास हुआ,
कि बसंत कब का आ चुका है और होली मुँह बाए खड़ी है,
पर शायद कुछ उमंगों की कमी है या हालातों की कुछ है साज़िश,
कि ना बसंत ने मन में पग धरे, ना ही होली देती कोई दस्तक.

और मन में ख्यालों की सुगबुगाहट होने लगी कि,
हर बार की तरह अबीर गुलाल तो खूब फैलाएंगे रंग इस बार भी,
और खिलखिलाहट और कहकहे गूँजा जायेंगे हर कोना,
शैफालियाँ भी होंगी आच्छादित चारों ओर,
और बाजेंगे चंग-मृदंग और ढोल भी,
गुझिया और मिठाईयों की भी होगी होड़,
भंग-ठन्डई भी कर जायेंगी सब को सराबोर,
फिर सब नाचेंगे हो मस्त, और छलक जायेंगे जाम भी।

मगर क्या होगा दिलों का भीतर से भी मेल?
या रंगीन परत के नीचे होगा सिर्फ काला रंग,
क्या होगा सिर्फ एक दिन का इन्द्रधनुष और फिर सब स्याह,
या होगा झूठ सर्वव्यापि जिसमें सच का होगा ‘एक दाग’ लगा.

होली और दिवाली साल में आती है बस एक बार,
मगर होते बम धमाके देश में बारम्बार,
माँएँ अभी भी हैं रोती और लज्जित होती हैं अबलाएँ,
बुजुर्गों और बच्चों की होती हैं रोज हत्याएँ,
और कुछ की नौकरी छूटी, कुछ की घटी हैं तनख्वाएँ।
नेता आते और जाते सिर्फ कर जाते अपनी बात,
और बाकि हम सब भूला दिये जाते वोट के बाद ,
स्लम से आस्कर तक पहूंचें जरूर, लेकिन स्लम हैं वहीं के वहीं,
और अब तो ’जै हो’ का नारा भी लिया है छीन इन नेताओं ने।

बस और नहीं! नहीं चाहिये यह एक दिन की होली अब,
अब होली कुछ ऐसी चाहिये, जो लाये उमंग हर दिन हर पल,
प्यार अपार हो और हो सुख सब दिन,
रंग छलकें और हों सब दिल प्रेम-रंगों से सराबोर,
और सौहार्द और प्रेम से गूंजे हर कोना, हर कण,
द्वेष, घृणा और अपराध रूपी होलिका दहन होगी जब,
सुख-शांति और चैन से दमकेगा जीवन सबों का जब,
तभी कहलायेगी आज की होली सच्ची और सुरम्य होली।

--अरविन्द चौहान

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2 कविताप्रेमियों का कहना है :

manu का कहना है कि -

और अब तो ’जै हो’ का नारा भी,,,,,
लिया है छीन इन नेताओं ने।
आपको और सभी को होली मुबारक,,,,,,,,
नेताओं को भी,,,,,,,,,
ha,,,ha,,,ha,,,,ha,,,,

Divya Narmada का कहना है कि -

अपना तो हर दिन होली है.

करो किसी से छेड़-छाड़ नित कलम उठाकर.

मलो अबीर किसी पर उसको गले लगाकर.

जो रूठे ले आओ उसको तुरत मनाकर.

हिन्दयुग्म पर फागें गाओ, चंग बजाकर.

मनु के चित्रों पर झूमो हँस गगन गुंजाकर.

भारतवासी के संग नाचो होरी गाकर.

सीमा नीलम श्याम सत्य अद्भुत टोली है.

शोभा देख सराह 'सलिल' हर दिन होली है.

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