जेहाद के नाम पर
मासूमों को बरगलाने वालो
उनको अपने नापाक मंसूबों
को पूरा करने में लगाने वालो
जो हाथ कितने चमत्कार कर सकते थे
उनके हाथ में बन्दूक थमाने वालो
कायरो
सामने आओ
एक माँ,
करेगी क्या हश्र तेरा
देखना है तो सामने आ
ये तेरी फितरत नहीं
बुझदिल
तू मासूमों के हाथों
मासूमों का कत्ल करा रहा है
कमीने
तुझे
तो
नहीं मिलेगी
दोजख में भी जगह
ये उस माँ शाप है
जिसने तुम्हारे लिए
पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करनी
शुरू कर दी है
तुम्हारी तबाही के लिए
तुम्हारी बर्बादी के लिए
क्योंकि वो अल्लाह मेरा भी है
--नीलम मिश्रा
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
होश जोश अक्रोश रोष देखो कविता का
सरफरोश बन गया रूप प्यारी ममता का
एक इंसान के अंदर का आक्रोश कैसा रंग ले सकता है,इसका साक्षात उदाहरण नीलम जी की रचना है।
हर धर्म का खुदा सच्चों और अच्छों की हीं सुनता है। इसलिए खुदा को उसके बंदों की सुननी हीं होगी और हाँ आतंकवादी खुद को जेहादी कहें,मुज़ाहिद कहें या फिर इस्लाम के सच्चे अनुयायी, खुदा हीं जानता है कि उनकी सच्चाई क्या है। वे किसी भी धर्म के नहीं है और ना हीं किसी भी धर्म के ठेकेदार। इसलिए मुमकिन है कि जिस खुदा को बदनाम कर रहे हैं वे, उसी खुदा का रोष उन्हें सहना पड़े, बस खुदा के बंदों को नीलम जी जैसी बंदगी शुरू करनी होगी!!!
-तन्हा
ममता के आक्रोश को मेरा भी नमन....
नहीं मिलेगी
दोजख में भी जगह
ये उस माँ का शाप है
जिसने तुम्हारे लिए
पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करनी
शुरू कर दी है
तुम्हारी तबाही के लिए
तुम्हारी बर्बादी के लिए
क्योंकि वो अल्लाह मेरा भी है
आक्रोश की पराकाष्ठा !!!
बहुत खूब नीलाम जी
ये उस माँ शाप है
शायद इस में माँ के बाद "का" छूट गया है मुझे लगता है पर जो लिखता है उस को ज्यादा पता होता है
कविता की सुन्दरता में कोई कमी नही है एक माँ के दिल की भड़ास है और सही भी है
सादर
रचना
या अल्लाह !
इस माँ की बद्दुआ कुबूल कर
यह जानती है कि यह क्या कह रही है
या उन नामुरादों को समझ दे
जो नहीं जानते
कि वे क्या कर रहे हैं !
...........................
क्योंकि तू मेरा भी है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
आप की कविता मैं छाया विद्रोह स्वतः ही नज़र आता है
काश उस माँ की दुआ सुन ली जाए
आप भी क्रांति पर उतर आयीं.जरुरी ही है कि एक मां इस राह को धरे.........
आलोक सिंह "साहिल"
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