कार्टूनिस्टः मनु बेतक्खल्लुस |
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वे खोदते रहे खाइयां,
हम ढूंढते रहे मरहम
वे चूभोते रहे सुईयां,
हमने सत्संग रचे
सांस्कृतिक सरोकार के,
उन्होंने बीज बोये
बन्दूकों हथियार के,
हम समझौता एक्सप्रेस के
डिब्बे चमकाते रहे ,
वे तीरों तलवार पर
धार लगाते रहे ,
हम शोयेब-इमरान
बोबी-अदनान के सेलेब्रिटी
सम्मान मे व्यस्त रहे,
वे दहशतगर्दों संग
खूनी शतरंज चाले
विमर्श करते रहे ,
जब हम अली हसन
कासिद शकील संग
लाफ़्टर के ठहाके
लगा रहे थे ,
तब वे असलमों को
झूठे विडियों और
खूनी तकरीरे
परोस रहे थे ,
.
लेकिन आज
साठ घंटों ने
जला दिये है सारे पर्दे
आंखे हमारी
देखे सकती
हर चालक हरकत,
पढ ली
पेशानी पर लिखी
धोखे की ईबारत,
पर....
कुछ कर नही सकते,
खडी है,
सियासत की अदृश्य
स्वार्थी दीवार,
जिसके पार
सब कुछ दिखता तो है ,
पर कर कुछ नही सकते,
जरा सोचों .......,
जिस दिन ये दीवार
बिखर जायेगी
उस दिन ....
एक अरब से ज्यादा
शान्ति सैनिकों का सैलाब
रौंद डालेगा
जर्रे जर्रे को ।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
जरा सोंचो
जिस दिन यह दीवार
बिखर जाएगी
उस दिन---
शान्ति सैनिकों का सैलाब
रौंद डालेगा
जर्रे-जर्रे को ।
--सही कहा आपने। काश जिसे सोंचना चाहिए वे भी सोचें।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
पता हम भी ये ही बातें कर रहे थे और आप ने लिख दिया धन्यवाद
एक अरब से ज्यादा
शान्ति सैनिकों का सैलाब
रौंद डालेगा
जर्रे जर्रे को ।
सही कहा है काश सभी एसा सोचें कुछ करें
rachana
"humne satsang rache saanskritik sarokaar ke, unhone beej boe bandooko hathyaar ke"
sach kahaa aapne, hum apne sanskaar ke pragtaave ka dhol peet kr achha ban`ne ki koshish mei hi dhoka kha gaye aur udandataa apna kaam kar gayi. Aap ka aahvaan sachcha hai, aaj ki zarurat hai..
"ek arab se zyada shanti sainiko ka sailaab raund daalega hr na.paak zarre ko"
Mun ki gehraaee se likhi gayi iss imaandaar abhivyakti pr badhaaee svikaareiN.
---MUFLIS---
अच्छी कविता....
एक अरज भी साथ में.......
""सीख लेते क्यूँ नहीं हिन्दी में "मुफलिस" गुफ्तगू ,
"बे-तक्ख्ल्लुस" ने भी तो सीखा है बरखुरदार से""
दिली गुजारिश है...............
नहीं तो शैलेश जी सिखा दें..........
मनु जी की बात पर गौर करें मुफलिस जी ,सही कह रहे हैं |
हिन्दी के मंच पर हिन्दी लिखने का प्रयास तो करिए |
विनय जी का शब्द-चित्र(कविता) और मनु जी का रेखा-चित्र दोनों प्रशंसनीय है और दोनों में गूढ बातें कहीं गई हैं।
मेरी तरफ से दोनों फनकारों को बधाईयाँ।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत ही सुन्दर बहुत गहरी रचना
और जैसी रचना वैसा ही अनुकूल चित्र..
दोनो शिल्पियों को बधाई..
रचना में उर्दू के शब्द का प्रयोग कोई नयी और बुरी बात नही है | भाषायों में मेल , मिलाप होता रहा है |
इस सुंदर रचना के लिए बधाई |
-- अवनीश तिवारी
"chaahta hooN maiN bhi HINDI meiN likooN ye tipp`nee , haar jata hooN magar takneek ke iss vaar se"
Neelam aur Manu, aapse, aur sabhi paathko se muaafi chaahta hooN.
---MUFLIS---
इतनी यथार्थ कविता,
बधाई आपकी लेखनी को
लाजवाब,लाजवाब,लाजवाब.और कुछ नहीं
आलोक सिंह "साहिल"
जिस दिन ये दीवार
बिखर जायेगी
उस दिन ....
एक अरब से ज्यादा
शान्ति सैनिकों का सैलाब
रौंद डालेगा
जर्रे जर्रे को ।...........बहुत बढिया
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