उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
घर में आ हमको ललकारा
बूढ़े बच्चे सबको मारा
कब तक ये सब सहन करेंगे
कब तक बैठे बैठ मरेंगे
आखिर कुछ तो करना होगा
ले बन्दूक उतरना होगा
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
मुम्बई बन गयी जलियाँवाला
लोथ लोथ से घर भर डाला
नाम पाक नापाक इरादे
अब तक तोड़े कितने वादे
अनुनय से अब काम ना होगा
बिना उठे आराम ना होगा
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
घुस ना पाये कोई शातिर
स्वाभिमान स्व-राष्ट्र के खातिर
व्यवसाय या रण का खेत हो
सठे साठ्यम समाचरेत हो
चैन अमन फिर लाना होगा
हर आतंक मिटाना होगा
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
पानी नही रगों मे अपनी
बैठ के माला अब नहीं जपनी
मात भारती की औलादो
अपना खून आज खौलादो
आखों में अब आग उतारो
पकड़ पकड़ कर इनकों मारो
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
अगर रहें जो यूँ ही शांत हम
खो देंगें एक एक प्रांत हम
आज हमारी ही जमीन में
सांप घुसे हैं आस्तीन में
और ना आगे इंतजार हो
फन पर इनके तीक्ष्ण वार हो
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
पक्का कर लो आज इरादा
वक्त नहीं अब देना ज्यादा
सपथ उठाओं आओ मिलकर
अपनी रक्षा अपने बल पर
कहीं चोट अब नहीं खायेंगे
ईंट से पत्थर टकारायेंगे
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
04-12-2008
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut sundar ojapoorn rachana . aaj desh ko veer ras se paripoorn abhivyakti ki jarurat hai .
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
बहोत ही सुंदर कविता लिखी है अपने बहोत खूब ... बधाई स्वीकारें बंधुवर...
खूबसूरत लेखन
जागने का वक़्त आ गया
अगर रहें जो यूँ ही शांत हम
खो देंगें एक एक प्रांत हम
आज हमारी ही जमीन में
सांप घुसे हैं आस्तीन में
और ना आगे इंतजार हो
फन पर इनके तीक्ष्ण वार हो
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
राघव जी
आज हर भारतीय के दिल मैं ये ही जज्बात जाग रहे हैं. आज ऐसे ही गीतों का जरुरत है. आभार.
मांद में आ हमको ललकारा
बूढ़े बच्चे सबको मारा
कब तक ये सब सहन करेंगे
कब तक बैठे बैठ मरेंगे
आखिर कुछ तो करना होगा
ले बन्दूक उतारना होगा
उठो... उठो....
उठो देश के वीर जवानो उठो... उठो....
सही वक्त है अब पहिचानो उठो... उठो....
आप ने ठीक कहा क्यों की भय बिन होत न प्रीत
धन्यवाद
रचना
भाव अच्छा है। शिल्प के दृष्टिकोण से छंद की मात्रा खटकती है। जैसे---
'मांद' के स्थान पर 'घर' का प्रयोग---
'उतारना' के स्थान पर 'उतरना' का प्रयोग--
-मेरे विचार से अच्छा रहता।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
सभी प्रिय मित्रों को नमस्कार व आभार
देवेन्द्र जी नमस्कार
गौर देने और गहन पाठन के लिये धन्यवाद..
वास्वतव में उतारना की जगह उतरना ही लिखना था अभी अभी देखा कि टंकण त्रुटि की वजह से उतारना लिखा हुआ है..
और आपकी सलाहानुसार मांद की जगह भी घर कर रहा हूँ
बहुत बहुत धन्यवाद..
राघव जी!
आपने सही मामले में कवि-धर्म निभाया है। तत्कालीन माहौल में ऎसे हीं वीर रस की कविताओं की आवश्यकता है, ताकि अंदर का उबाल दब न जाए बल्कि उफान बनकर अंबर में छा जाए।
बधाई स्वीकारें।
-तन्हा
कविराज/कविता फैक्ट्री को मेरा सलाम.
बेहद खुबसूरत रचना.
आलोक सिंह "साहिल"
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