मुम्बई के घटनाक्रम से आम आदमी कितना आहत है-इसका अंदाज़ा आप सीमा सचदेव की यह कविता पढ़कर लगा सकते हैं।
न जाने क्यों......?
मन आहत है
आँखे नम
कितना पिया जाए गम
नहीं देखा जाता
बिछी हुईं लाशों का ढेर
नहीं सहन होती माँ की चीख
नहीं देखी जाता
छन-छनाती चूडियों का टूटना
नहीं देखा जाता
बच्चों के सर से उठता
माँ-बाप का साया
नहीं देखी जाती
माँ की सूनी गोद
नहीं देखी जाती
किसी बहन की कुरलाहट
न जाने कब थमेगा
यह मृत्यु का नर्तन
यह भयंकर विनाशकारी ताण्डव
न जाने कितनी
मासूम जाने लील लेगा
और भर जाएगा
पीछे वालों की जिन्दगी में अन्धेरा
मजबूर कर देगा जिन्दा लाश बनकर
साँस लेने को
न जाने क्यों......
शौकिया तौर पर कार्टून तथा चित्र बनाने वाले मनु 'बे-तक्खल्लुस' अपनी प्रतिक्रिया इस तरह से भेजी है।
अस्पष्ट वक्तव्य को इस तरह से पढ़ें- अगर हम सत्ता में आये तो सभी राज्यों को एक जुट कर एक ही राज्य बना देंगे।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
मन तो आहात हम सभी हुन्दोस्तानियों का हुआ है! उन वीरों को जो शहीद हुए देशसेवा के लिए श्रधान्जली! हमारे देश की सरकार को कोई ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि कोई भी आतंकी घटना दुबारा न हो सके!
आँख नम होने न देंगे...
फोड़ लो बम,
चला लो गन.
किंतु हम
होंगे न उन्मन.
शान्ति से
सब कुछ सहेंगे,
काल से
भी न डरेंगे.
एक्य कम होने न देंगे...
खून अपना
है न पानी.
कसम हमको
है भवानी.
अमन हम
कायम रखेंगे.
मौत को भी
हंस वरेंगे.
शान्ति हम खोने न देंगे...
असुर गण
शत बार आए.
हूण-शक
हमने भगाए.
हमें क्या
आतंक का भय?
हमसे भय
आतंक खाए.
चैन से सोने न देंगे...
अडिग द्रढ़
संकल्प अपना.
सब सुखी हों
मन्त्र जपना.
करेंगे साकार
हम मिल-
शहीदों का
हरेक सपना.
देश को रोने न देंगे...
जग करे
विश्वास हम पर.
रखे कल भी
आस हम पर.
दिवाली के
दिए की सौं-
जयी होंगे
'सलिल' तम पर.
अन्य को बोने न देंगे...
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन
अच्छी अभ्व्यक्ति है.....पर ये वाकई अत्यन्त गंभीर मुद्दा है.समझ नही अत कैसे हल होगा......कब होगा अंत.......!!!
सीमा जी यह भयंकर विनाशकारी ताण्डव
न जाने कितनी
मासूम जाने लील लेगा
और भर जाएगा
पीछे वालों की जिन्दगी में अन्धेरा
मजबूर कर देगा जिन्दा लाश बनकर
साँस लेने को
न जाने क्यों......
सच है घाव अब तो शायद ही भरेंगे .दर्द का एक दरिया अब तो दरमियाँ है
सादर
रचना
मनु जी आप इतना सही कार्टून बनते हैं मालुम नही था .अच्छा व्यंग है
सादर
रचना
naa aatanki, na rajneeti na koi aur hai apraadhi
adhura gyaan, adhura aatm samman aadha jal gagri aadhi
patton per paani dete ho
aur vriksh ki pratiksha mein baithe ho
samjh toh lo kharpatwaar ki prakriti
yeh patton se nahin, hai jad se ukhadti
kharpatwar ki jad ko dhundh sako
itna vivek to le aao
tum samjhe toh sab samjhe sang har ek ko le aao
akshar dhaam, ya maale gaaon, karol baag, oberoi Taz
yeh toh prinaam ka sirf ek jhonka hai
vidhvansh yun hi hota hi rahega
napunsakon ko desh jo saunpa hai
gaandhi se manmohan tak
jinna se parvez tak
sabne kheli baari hai
in dushton ko ab chhod do
inhe napunsakta ki bimaari hai
gaandi ka swadeshi aandolan ne
bharat ko india banaaya
macaulay ki siksha pranaali ko
khush hokar ke apnaya
gaandhi jaisa bahrupiya
africa ke jungle se aaya
jisne bantware pe mohar laagakr
is hinsa ko jaama pahnaaya
desh ka naam videshi, shiksha videshi, is kavita ki lipi bhi videshi hai
fir kahaan ka gaandhi kahaan ka baapu, aur kahaan kuch swadeshi hai
aur uska chela javahar laal
kashmir ka kar gayaa yeh haal
apne desh mein 370
kashmirion ki haalat badtar
uski beti indira gaadhi
bhidrawalan ki fauj banaa di
usko kiye ki sazaa mili to
rajeev ne 84 ki aag lagaa di
aaj usiki ardhangini hai
unhin logon ka beta hai
shashan paitrikta hai toh
loktantra kahaan par rahta hai
beshak honge yeh kadwe bol
par sacchai kadvi hi hoti hai
yeh bharat ki jantaa hai
jo isko maathe bitha ke dhhoti hai
is anpadhta ke chalte toh yeh dhamaake hi hone hain
aur tumhare yeh napunsak shashak abroad mein chain se sone hain
aaj nahin govind shivaji
bus tumhe apne dum per hi ladnaa hai
in chakkon ko bus so lene do
aakhir humko hi toh jagna hai
humko hi toh jagna hai
जिहाद के मायने धर्मयुद्व नहीं
तुम्हारे लिए जिहाद के मायने धर्मयुद्व है,
लेकिन धर्म की परिभाषा क्या जानते हो ।
जिसकी खातिर तुमने इंकलाब का नारा बुलंद किया,
तोरा बोरा की पहाडियों में खाक छानते रहे,
09/11 की रात अमेरिका को खून से नहलाया,
आतंक का ऐसा पर्याय बने कि,
यमराज को भी पसीना आया।
लेकिन क्या जिहाद की भाषा समझ सके;
जिस जिहाद की खातिर लाखों परिवारों की खुशियां छीनी।
मासूमों के हाथों में किताब की जगह एके 47 थमा दी।
गली मोहल्लों चैक चैराहों पर तुमने खेली खून की होली।
धरती माता के सीने को किया गोलियों से छलनी।
देश की धड़कन मुंबई को किया लहूलुहान।
लेकिन अंजाम क्या हुआ,
तुमने भोगा सारी दुनिया ने देखा।
जिस पर था तुम्हे नाज उन्होने ही मुंह मोड़ लिया।
कल तक जो तुम्हारे आतंकी इरादों को देते थे हवा।
उन्होने ही एबटाबाद में तुम्हारी मौजूदगी से किनारा कस लिया।
अंतिम समय में फिर धरती मां ही तुम्हारा सहारा बनी।
वही धरती मां जिसकी छाती पर तुमने पल-पल गोलियां बरसाई।
मां और बेटे के रिश्ते को जिंदा रहते कलंकित किया।
लेकिन अमेरिकी आपरेशन में तुम्हारी आंख बंद होने के बाद।
उसी धरती मां ने तुम्हे अपने लहूलुहान आंचल में सहेज लिया।
इसलिए क्यूंकि तुम भी उसके जिगर के टुकडे+ थे।
मां को खून से नहलाने के बाद भी उसे तुमसे न गिला था न शिकवा।
क्योंकि मां तो मां होती है।
जिहाद----2
तुमने बारुद के ढेर पर मासूमों के अरमान सुलगाए।
जिहाद के नाम पर उनमें नफरत की भावना भरी।
अपनी धरती मां के खिलाफ ही उकसाया।
सभ्य नागरिक से उन्हे दानव बनाया।
तब शायद तुम्हे नहीं पता था कि,
पिता के कर्मो का फल पु+त्र को भुगतना पड़ता है।
बेटा पिता के छोटे बड़े सभी कर्मो का जबाब देह बनता है।
लेकिन जब एहसास हुआ तब काफी देर हो चुकी थी।
लेकिन यह एहसास अपने उन सिपहसालारों को करा दो।
जो अब भी तुम्हारे पग चिन्हों पर चलने की हुकांर भर रहे हैं।
धरती मां के आंचल को दागदार कर रहे हैं।
उन्हे स्वप्न में जाकर ही सही, यह संदेश दे दो।
कि जिहाद का अर्थ धर्म-मजहब के लिए लड़ना नहीं है।
जिहाद का अर्थ देश की तरक्की के लिए संघर्ष करना है।
अगर तुम यह संदेश देने में सफल रहे।
तो फिर धरा पर वसुधैव कुटुंबकम की कल्पना साकार होगी।
चारों ओर अमन चैन होगा, मानवता शर्मसार न होगी।
इसलिए एक बार फिर अपने मन को टटोलो।
मन में छिपी आंतंकी भावना की आहुति देकर,
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई की कल्पना को साकार करो।
अतुल चंद्र अवस्थी *अतुल*
email- atulawasthi06@gmail.com
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