आज दिल में एक हूक सी उठ रही है। आँखों में अंगारे हैं। समझ नहीं आता किसको दोष दूँ? आतंकवादियों को, नेताओं को या देश की भोली जनता को ? या फिर अपनी शासन प्रणाली पर आँसू बहाऊँ ? जहाँ चोर, बेईमान खुले आम जनता को लूटते हैं और जनता कुछ नहीं कर पाती ? आखिर कब तक हम इसी प्रकार देश को जलता देखते रहेंगें ? हमारे हाथ इतने कमजोर क्यों हैं ?
मैं अब एक गीत गाना चाहती हूँ, वतन अपना बचाना चाहती हूँ।
मुझे अपना जरा विश्वास दे दो, मैं अपना घर बचाना चाहती हूँ ।
रूदन और चीख ने हमको डराया, हमारी हर खुशी पर डर का साया
मैं डर सबका मिटाना चाहती हूँ, निडर सबको बनाना चाहती हूँ।
वतन मेरा करें वीरान वो क्यों, शरण घर में ही दुश्मन पाएगा क्यों
कमीं घर की मिटाना चाहती हूँ, मैं ये उपवन बचाना चाहती हूँ।
हमारी एकता खंडित हुई है, हमारी ताकतें सीमित हुई हैं
उन्हें विस्तृत बनाना चाहती हूँ, मैं टूटा घर बनाना चाहती हूँ ।
वतन के दुश्मनों को तुम जला दो, ये है भारत की भूमि ये बता दो
नयन उनके झुकाना चाहती हूँ, नमन तुमको कराना चाहती हूँ।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
आँख नम होने न देंगे...
फोड़ लो बम,
चला लो गन.
किंतु हम
होंगे न उन्मन.
शान्ति से
सब कुछ सहेंगे,
काल से
भी न डरेंगे.
एक्य कम होने न देंगे...
खून अपना
है न पानी.
कसम हमको
है भवानी.
अमन हम
कायम रखेंगे.
मौत को भी
हंस वरेंगे.
शान्ति हम खोने न देंगे...
असुर गण
शत बार आए.
हूण-शक
हमने भगाए.
हमें क्या
आतंक का भय?
हमसे भय
आतंक खाए.
चैन से सोने न देंगे...
अडिग द्रढ़
संकल्प अपना.
सब सुखी हों
मन्त्र जपना.
करेंगे साकार
हम मिल-
शहीदों का
हरेक सपना.
देश को रोने न देंगे...
जग करे
विश्वास हम पर.
रखे कल भी
आस हम पर.
दिवाली के
दिए की सौं-
जयी होंगे
'सलिल' तम पर.
अन्य को बोने न देंगे...
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन
शोभाजी,
यह दर्द एक आम आदमी का दर्द है |
इश्वर उन्हें सदबुद्धि दे जो आतंक की राह पर है |
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जिंदगी हर बार जीती है
जिंदगी हर बार जीतेगी
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एक पुराने गीत के बोल याद आ रहे है |
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रात भर का है मेहमां अँधेरा
किस के रोके रुका है सवेरा
विनय
शोभा जी
आप के सुर में सुर अपना मिलाना चाहती हूँ
दर्द के दरिया का रुख मोड़ना चाहती हूँ
बेसहारा हुई उम्मीद को सहारे का बल देना चाहती हूँ
आप की कविता पढ़ के निराश दिल में कुछ तो आशा का संचार हुआ है
सादर
रचना
ये तमन्ना शायद आज हर किसी देश प्रेमी की सब से बड़ी जरूरत है
रूदन और चीख ने हमको डराया, हमारी हर खुशी पर डर का साया
मैं डर सबका मिटाना चाहती हूँ, निडर सबको बनाना चाहती हूँ।
shobha ji dil se aabhaar aapka ,aise hi preratmak geeton ki
sabhi bhaaratwaasiyon ko jaroorat hai ,sanjiv ji aapke hausle ko bhi naman karti hoon
धन्यवाद शोभा जी...
मैं भी लेबर में शामिल हूँ
आओ घर बनाये
आओ घर बचाये..
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