मिशन पूरा हुआ
मगर लोग नाराज़ हैं
पूछ रहे हैं एक-दूसरे से
आख़िर क्यों होते हैं ये धमाके!
फिर दहली है मुंबई
अब जगह-जगह जलाईं जाएँगी मोमबत्तियाँ,
एक दूसरे को भेजे जाएँगे एस.एम.एस.
ड्रामेबाजी करेंगे न्यूज़ चैनल,
सब गालियाँ बकेंगे आतंकियों को,
वीर रस के कवि सृजित करेंगे
कुछ नये ओजपूर्ण छन्द!
बैठे-बिठाए ही मिल जाएगा विषय
अगले "काव्य-पल्लवन" के लिए!
चित्रकला प्रतियोगिता के लिए
नयी "थीम" की खोज भी पूरी होगी!
अख़बारों में छपेंगे कुछ ज़ोरदार आलेख
दो अतिरिक्त पन्ने भी आएँगे शायद!
इस सबके बाद..
पसर जाएगा सन्नाटा
अगला धमाका होने तक!
और तब
फिर से पूछेंगे लोग...
आख़िर क्यों होते हैं ये धमाके!
अमेरिका में नहीं दोहरा सके कभी ९/११
यहाँ पटाखों की तरह फूटते हैं बम!
देश को माँ बोलते हैं
हम कपूतों की माँ की अस्मत लूटकर
भाग जाते हैं वो
और जिन्हे पकड़ पाते हैं
उन्हे जेल में रख,मेहमान बनाकर
ससम्मान
रोटियाँ खिलते हैं हम!
इतना भी साहस नही
फाँसी दे सकें उन्हे!
अरे! जानवर भी संवेदनशील होते हैं
अपनी माँ के लिए!
नपुंसक से बड़ा कोई शब्द होता है क्या ?
नहीं हो..तो सृजित करो!
फिर से पूछ रहे हैं लोग
आख़िर क्यों होते हैं ये धमाके!
न्यायालय ने हटा लिया है
सिमी से औपचारिक और महान "प्रतिबंध"
खुलेआम तरफ़दारी करते हैं
हमारे राष्ट्रीय नेता!
वो सोचते हैं कट जाएँगे उनके वोट!
चिढ़ आती है,खीझ और शर्म भी
मगर लोग नहीं मानते..
पूछ रहे हैं
आख़िर क्यों होते हैं ये धमाके!
आतंकियों को पकड़-पकड़ कर
मानवाधिकार देते हैं हम
"पोटा" पर बस बहस ही कर सकते हैं!
"विचार और मनन"
यही जीवन है हमारा|
इसी के लिए पैदा हुए हैं
अफ़सोस..
ईमानदारी से नही करते यह भी!
हम असफल हैं
क्योंकि आतंकियों से लड़ती है
सिर्फ़ पुलिस और इंटेलीजेंस!
हम नहीं..
हम तो ढूँढते रहते हैं वो फिल्मी हीरो
जो घुस जाए होटल में अकेला,
मार डाले सारे आतंकियों को
और सबको छुड़ा लाए!
ढूँढ रहे हैं उसे
अपने पड़ोस में,मोहल्ले में,शहर में,प्रदेश में,
सब जगह!
बस..
आईने में ही नहीं झाँकते कभी!
डरते हैं
और डरते डरते पूछते हैं..
आख़िर क्यों होते हैं ये धमाके!
बिल्कुल छोटी सी बात है
गोलियाँ मारीं हैं उन्होने
हमें,हमारे घर में घुसकर|
शर्म तक नहीं आती!
हाँ..बेहिसाब गर्व ज़रूर होता है
धोनी की टीम की
राष्ट्रीय महत्व वाली "ऐतेहासिक विजयों" पर!
समय आ गया है
कुछ करो..
माना कि देश कुछ नहीं
तुम क्रिकेट के लिए जागो!
देखो..
रद्द कर दिया है
इंग्लैंड ने अपना दौरा!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सही कहा है आपने ...आपकी इस इतनी लम्बी कविता ने आतंकवाद से जुड़े हर पहलू को उजागर किया है ...चाहे वो गलती नेताऒ की हो, चाहे मीडिया की , या फ़िर आम आदमी की. सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी तभी शायद हम अपने देश से आतंकवाद को ख़त्म कर पाएँगे...
जितनी जल्दी हम जागरूक होंगे उतनी ही जल्दी हम अपनी भारत माँ की रक्षा कर सकेंगे ..
धन्यवाद
vipul,
hamare desh, samaj aur deshvasiyon ka sateek chitran kiya hai tumne,
bahut achchha likha hai par khushi tab hogi jab hamare likhne se logon mein chetna aa jaye.
जोरदार और धारदार ...........और क्या कहें ......पढ़ कर लगता है की wednsday जैसी फिल्म सिर्फ देखने की लिए ही नहीं बनायीं गयी..... तुमने प्रश्न खडा किया है..... आम आदमी और सरकार पर....और दोनों के पास ही उत्तर नहीं है ......हाँ अगर दर्शन झाड़ना हो तो कई मिल जायेंगे.....पर वास्तविकता और यथार्थ सरे दर्शन और कविताओं को..जला देता है......उम्दा कोशिश.....तुम्हारे लिए शुभाकांषाएं और आदरांजलि...मुंबईकरों के लिए जो सच में यथार्थ से जूझ रहे है.....
मैं यहाँ डा. सुभाष भदौरिया जी की चंद पंक्तियाँ पेश करना चाहूँगी-
उनको सहने की ये आदत क्यों है?
बुजदिली उनकी शराफत क्यों है?
मुम्बई जल रही है धू-धू
अब कराची ये सलामत क्यों है?
विपुल जी,
कविता हृदयस्पर्शी है, अब देखना है क्या करते है हमारे रीयल अभिनेता(राजनेता) या फिर से खबरिया चैनलो पर मुम्बईकर के होसले के सिवा कुछ सुनने को नही मिलेगा...ये खबरिया चैनल भी हम भारतीयो के जले पर नमक डालने से बाज नही आते
सुमित भारद्वाज
पता नही भारत कब अमेरिका बनेगा
बेहतरीन..
बहुत समय बाद जोरदार आवाज़ सुनाई दी आपकी विपुल जी...
do baar post kar diya.. ek hi poem
हम कर रहें है वोट की राजनीत
अपनी संवेदनाओ को मार के जी रहें है एक दूसरे पे दोष लगा के ख़ुद को दोष मुक्त कर रहें है
इस लिए होते है बम धमाके
आप की कविता ने सब कुछ कह दिया है अब कुछ बाकि नही कहने को
सादर
रचना
ऊंचाई पे बैठे अल्लाह से
एक गुजारिश है मेरी
खुदाई के मालिक अल्लाह से
एक गुजारिश है मेरी
ओ अल्लाह मियां, क्या तुमने देखा
देखा नहीं तो सुना तो होगा ही
तुम्हारे कुछ बिगडे हुए बच्चों ने
तुम्हारे ही कुछ मासूम बच्चों को
मुंबई में बेवजह फिर मारा है
बिगडे हुए बच्चों को
एक एक चनकट लगा जाओ
प्यार से रहना सिखला जाओ
और सहमे हुए बच्चों के सिरों पे
अपना हाथ फिरा जाओ..
shamik faraz ji ,kaash aapki baat allah sun le
bohat sahi kaha tapan bhai, is duniya main har problem ka hal sambhav hai. to phir kyun terrorism ki is problem ka koi pakka hal nahi dhoondha jaata, hamesha problem hone ke baad hi kyun use hal karne ki sochi jaati hai. jinka gunaah prove ho chuka hai unhe to ekdum saza milni chahiye, aur is pareshaani ka koi pakka hal zaroor dhoondhna chahiye.
bahut sahi vipul bhai,
shandar ekdum dil ko chu lene vaali
kavita hai
विपुल भाई ...
क्या लिखा है भाई..
कितना सच और सम्वेदनशील
शब्द नहीं हैं मेरे पास
मेरे इस शुक्रिया पर जितने वर्ग लगाओगे कम पडेगा..
Socio-economic-political structure
hume to yahee lagta hai,ye hai asli fasaad ki jad...america ne jo kiya usse desh ko surakshit kiya to duniya mein aatankvaad aur badhaa hi diyaa...vajah ko maarne ki zaroorat hai
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)