बाद मुद्दत के उससे जो मिलने गया, देख रजनी सखी मुस्कराने लगी
एक छोटी सी बदली को कर सामने, ओट में चाँद मुखड़ा छुपाने लगी
रूप छुपता है कब ऐसे पर्दों से पर, चाँदनी सारे अंबर पे छायी रही
और गगन-ओढ़नी पे चमकते हुये, उन सितारों को भी नींद आई रही
खुद में सिमटी रही मानिनी मान से, मैं रह-रह के उसको मनाता रहा
झूठा गुस्सा भी आखिर हवा हो गया, चाह की चाँदनी झिलमिलाने लगी
रात रानी की खुशबू लिये गोद में, एक झोंका बदन को यूँ ही छू गया
सारे दिन की थकन और जहाँ भर के ग़म मिट गये करके वो जादू गया
मौन अधरों से गाती रही रागिनी, चुपके सुनता रहा बंद पलकें किये
हाथ थामे हुये निद्रा-पथ से मुझे ले के सपनों की दुनिया में जाने लगी
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
अजय जी,
इस विषय पर आपकी चली कलम से पहले तो मैं चौंका..आपके पास विषय-वैविध्य है और आपकी प्रयोग धर्मिता की भी प्रशंसा करनी होगी।
बडी बडी पंक्तियों के साथ गीत का निर्वाह करना आसान बात नहीं..और आपने इसे बखूबी किया है। साथ ही साथ जो उपमायेंआपने प्रयुक्त की हैं वे दिल छूनें वाली हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
मौन अधरों से गाती रही रागिनी, चुपके सुनता रहा बंद पलकें किये
हाथ थामे हुये निद्रा-पथ से मुझे ले के सपनों की दुनिया में जाने लगी
वाह अजय जी बहुत सुंदर लगी हर पंक्ति आपकी लिखी हुई .सुंदर रचना है लिखी है आपने
अजय यादव जी ,
इत्तेफाक से आज ही हिंद युग्म के संग्रहालय पर मैंने आपकी कविता "बादल का घिरना देखा था" पढी ,इस कविता ने आपको अप्रेल २००७ में यूनिकवि का खिताब भी पहनाया था ,उसके लिए बहुत बहुत बधाई . अभी तक उस कविता का विचार मन में घूम ही रहा था कि आज ही आपकी एक और कविता पढने को मिल गयी . दोनों ही कविताएँ बहुत अच्छी लगी .
बादल.... वाली कविता आपने किसानों के दुःख पर लिख दी थी ,जो कि सचमुच प्रभावित करती है .
और आज की कविता "रजनी सखी मुस्कराने लगी" , विषय वस्तु में बिल्कुल अलग है किंतु श्रेष्ठता में कोई कमी नहीं , बेहद सुंदर उपमाओं से सजाया है सखी से मिलन की रात को .बधाई स्वीकारें .
^^पूजा अनिल
रचना सुंदर है |
गेय भी लगा |
एक पंक्ति मी कुछ खटका -
ओट में चाँद मुखड़ा छुपाने लगी ?
चाँद और लगी नही सही लगा |
--अवनीश तिवारी
oooops ! समझा - चाँद मुखड़ा रचना के पात्र के लिए है |
मैं समझा कि उनकी छीपने को छंद के बदली मे छिपाने से तुलना के रूप मे लिया गया है |
क्षमा करे |
--अवनीश तिवारी
bahut badhiya....
बहुत सुंदर लिखा है ...बधाई स्वीकारें
आपकी कविता ने छायावादी कविता की याद दिला दी |प्रकृति का मानवीकरण इस तरह बहुत देर बाद पढ़ा ,चाँद ,चांदनी ,रजनी ,सितारों मे डूब गए | समकालीन कविता युग मे छायावादी कविता का आभास ....बहुत अच्छा लगा |बधाई स्वीकारें
गजलों से रुख लिया गीत का अब 'अजय'
हमको रचना बहुत यार भाने लगी
तेरी इस लेखनी ने क्या जादू किया
हमको नित रोज अब तो लुभाने लगी
क्या बात है अजय जी...
ऑफिस से छुट्टी पर हो क्या आज कल..
गीत गाकर सुनायें तो बात बने...
बहुत ही प्यारा गीत है...
behad khubsurat rachana bahut badhai.
अजय जी,मैं तो धन्य हो गया आपका यह रूप देखकर,वैसे भी ज़माने बाद दिखे हैं.
इतनी रुमानियत भरी है आपमें पहली बार जन है, हा हा हा..
बेहतरीन गजल,हर तकाजे पर खरी
आलोक सिंह "साहिल"sa
अजय जी,
सुन्दर प्रस्तुति है.. लगता है आपको अपना चांद मिल गया.. हमारा परिचय भी करवा दीजियेगा..अगर आपका हो गया हो तो :)
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