हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में शीर्ष १० में आने का कवि अनिल जींगर का यह दूसरा मौका है। इस बार इनकी कविता 'कुरकुरी धूप' नवें पायदान पर है।
पुरस्कृत कविता- कुरकुरी धूप
बड़ी मुश्किल से ढूँढा है, उस सॉल को
ना जाने कितने रंगो से बंधी थी जो..
डोर खोली तो यादें महकती सी,
मेरी पलकों को सहलाती हुई
नमकीन हीरे दे गयी..
जब भी चाहता हूँ वो रंग मीठा-सा लगता है..
जहां की गर्त से दरिया का एक छींटा सा लगता है..
अजीब होती हैं यादें तेरी, अजीब चौकाती हैं ये..
बहुत वक़्त गुजारा है इस सॉल को खोलने में..
जब कभी ओढ़ लेता हूँ तो महसूस होता है..
कुरकुरी धूप को हथेली से मसलकर तुमने,
छुपा दिया हो इस सॉल में कहीं
ना सर्दी आती इसमें ना इससे धूप जाती है,
बस उँगली पकड़ती है छोड़ आती है,
वक़्त के गढ़े निशान पे फिर कदम रखता हूँ
दोहराता हूँ वही सब जो उस सॉल में गुम है.
बड़ी मुश्किल से खोला है इस सॉल को
बड़ी मुश्किल से संभलती हैं यादें तेरी...........
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ७॰३, ६॰९, ६॰७
औसत अंक- ६॰४७५
स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ४॰५, ३, ६॰४७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰३६८७५
स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- डॉ॰ रमा द्विवेदी की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
जब कभी ओढ़ लेता हूँ तो महसूस होता है..
कुरकुरी धूप को हथेली से मसलकर तुमने,
छुपा दिया हो इस सॉल में कहीं
ना सर्दी आती इसमें ना इससे धूप जाती है,
बस उँगली पकड़ती है छोड़ आती है,
वाह अनिल जी बहुत बढ़िया लेखन है
अच्छी कविता है मेरे ख्याल से नवें स्थान से बेहतर
बधाई
वक़्त के गढ़े निशान पे फिर कदम रखता हूँ
दोहराता हूँ वही सब जो उस सॉल में गुम है.
बहुत अच्छे अनिल जी |बधाई
अनिल जी,
बहुत ही दिल को छू जाने वाली रचना। कुछ पंक्तियों नें रचना को उठाया है जैसे:
मेरी पलकों को सहलाती हुई
नमकीन हीरे दे गयी..
जब कभी ओढ़ लेता हूँ तो महसूस होता है..
कुरकुरी धूप को हथेली से मसलकर तुमने,
छुपा दिया हो
बड़ी मुश्किल से संभलती हैं यादें तेरी...........
वाह!!!
***राजीव रंजन प्रसाद
अनिल जी ,
भावनाओं की गठरी खोल कर रख दी है आपने , यादें ऐसी ही होती हैं , कुछ नमकीन, कुछ मीठी और कुछ आपकी शाल की तरह गर्माहट लिए हुए , बेहद सुंदर .बधाई
^^पूजा अनिल
वक़्त के गढ़े निशान पे फिर कदम रखता हूँ
दोहराता हूँ वही सब जो उस सॉल में गुम है.
बड़ी मुश्किल से खोला है इस सॉल को
कविता बहुत अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
डा. रमा द्विवेदीsaid...
अनिल जी,
'कुरकुरी धूप' बहुत खूबसूरत और भी कई प्रतीक बहुत अच्छे लगे...पुरस्कृत रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं....
बड़ी मुश्किल से खोला है इस सॉल को
बड़ी मुश्किल से संभलती हैं यादें तेरी-----
--वाह! --एक अच्छी कविता के लिए बधाई ।
--कुरकुरी धूप-- और ---नमकीन हीरे ---का जवाब नहीं।
---देवेन्द्र पाण्डेय।
बड़ी सुंदर रचना है | बधाई|
अवनीश तिवारी
अनिल जी,
बेहद सुन्दर रचना है...
कुरकुरी धूप को हथेली से मसलकर तुमने,
छुपा दिया हो इस सॉल में कहीं
ना सर्दी आती इसमें ना इससे धूप जाती है,
बस उँगली पकड़ती है छोड़ आती है,
जब कभी ओढ़ लेता हूँ तो महसूस होता है..
कुरकुरी धूप को हथेली से मसलकर तुमने,
छुपा दिया हो इस सॉल में कहीं
ना सर्दी आती इसमें ना इससे धूप जाती है,
बस उँगली पकड़ती है छोड़ आती है,
बहुत सुंदर .बधाई
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