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Saturday, May 24, 2008

मंडी रैप


भीड भडक्का
शोर सडक का
बैगन भरता
दाल तडक्का
घंटी शंटी रेलम्पेल
मची है कैसी ठेलमठेल
आओ मिल कर बेंचे तेल

दान धरम
ईमान के धंधे
पापी नीच
बे ईमान
ये गन्दे
खेले मिल कर मौत के खेल
आओ मिल कर बेंचे तेल

अन्नो बन्नो
शबनम शन्नो
राधा रानी
देवी दुखियारी
सबको बना दिया है रेल
आओ मिल कर बेंचे तेल

अरबन शरबन
गरिबा गुरुबन
चले जा रहे
आँखे मीचे
धक्कमपेल लगी है सेल
आओ मिल कर बेंचे तेल


- अवनीश गौतम

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

दाद देनी पड़ेगी........ भाई वाह! फर्स्ट क्लास रैप लिरिक है. क्या बात है................ क्या बात है!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अवनीश जी,

चारों ही पदों में "आओ मिल कर बेंचे तेल" में सन्निहित व्यंग्य स्थापित हुआ है। यद्यपि रवानगी पहले और अंतिम पद में बेहतरीन है, दूसरे और तीसरे पद में प्रवाह टूटता है...

बहुत अच्छी रचना।

***राजीव रंजन प्रसाद

Nikhil का कहना है कि -

रिश्ते-नाते
बोतलबंद...
दाल भात-में
मूसलचंद....
जब भी करे वो काम की बात,
डालो मिलकर नाक नकेल....
आओ मिल कर बेचें तेल...

Avanish Gautam का कहना है कि -

वाह निखिल भाई!क्या बात है! दाद खाज़ खुजली सब लीजिए!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

छुरिया चाकू
दुनियाँ डाकू
खोल जंगला
सबके झाँकू
बिना वजह ही हो गयी जेल
आओ मिलकर बेचें तेल..

Pooja Anil का कहना है कि -

अवनीश गौतम जी,

इसको पढ़के,
थोड़ा हँसके ,
खूब कहा है,
लिखने बैठे,
लगी मनभावन आपकी मेल ,
आओ मिल कर बेचें तेल ......

शुभकामनाएँ,
^^पूजा अनिल

Anonymous का कहना है कि -

क्या बात है सर जी....
बहुत खूब
आलोक संघ "साहिल"

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

गौतमजी-रचना बहुत अख्छी है। इतनी अच्छी की सबने अपनी रेल चला दी।
एक बनारसी अंदाज देखिए-----

काहे हउवा हक्का-बक्का
छाना राजा भांग-मुनक्का
घोड़ा मांगे माल-मलाई
गदहा काहे घांस चबाई
सब हौ राजनीति क खेल
आवा मिलके बेचीं तेल-----
--देवेन्द्र पाण्डेय-वाराणसी।

Anonymous का कहना है कि -

दान धरम
ईमान के धंधे
पापी नीच
बे ईमान
ये गन्दे
खेले मिल कर मौत के खेल
आओ मिल कर बेंचे तेल
वाह क्या बात ,बहुत खूब

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

अवनीश जी के तेल बेचने का सफर टिप्पणियों तक जारी रहा। मुझे तो बहुत मजा आया।

Anonymous का कहना है कि -

यह पूरा पन्नाही सजन लगा है चकल्लस के रंगमें ! आशा है और पाठक भी इस रेल पर कूद पड़ेंगे .
अवनीश जी और सभी 'दाद' कर्ताओं को बधाई हो.

सीमा सचदेव का कहना है कि -

आओ मिल कर बेंचे तेल
बहुत अच्छा लगा ,बधाई

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

मुस्कान ला दी चेहरे पर...सबने मिलके।

Avanish Gautam का कहना है कि -

इतनी जीवंत टिप्पणियों के लिये आप सभी का आभार
देवेनदर पाँडे गुरु तोहार अँदाज त बडा चौचक हौ!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इतनी प्रवाह भरी और इस तरह का कथ्य लिये हुए कविताएँ, कम पढ़ने-देखने को मिलती हैं, कम से कम आज के दौर में। मुझे तो कबीर कई मामलों में सभी कवियों से बेहतर लगते हैं। ४८ मात्राओं में उन्होंने बहुत कुछ कहा है। आपकी यह कविता मुझे बहुत पसंद आई।

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