भीड भडक्का
शोर सडक का
बैगन भरता
दाल तडक्का
घंटी शंटी रेलम्पेल
मची है कैसी ठेलमठेल
आओ मिल कर बेंचे तेल
दान धरम
ईमान के धंधे
पापी नीच
बे ईमान
ये गन्दे
खेले मिल कर मौत के खेल
आओ मिल कर बेंचे तेल
अन्नो बन्नो
शबनम शन्नो
राधा रानी
देवी दुखियारी
सबको बना दिया है रेल
आओ मिल कर बेंचे तेल
अरबन शरबन
गरिबा गुरुबन
चले जा रहे
आँखे मीचे
धक्कमपेल लगी है सेल
आओ मिल कर बेंचे तेल
- अवनीश गौतम
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
दाद देनी पड़ेगी........ भाई वाह! फर्स्ट क्लास रैप लिरिक है. क्या बात है................ क्या बात है!
अवनीश जी,
चारों ही पदों में "आओ मिल कर बेंचे तेल" में सन्निहित व्यंग्य स्थापित हुआ है। यद्यपि रवानगी पहले और अंतिम पद में बेहतरीन है, दूसरे और तीसरे पद में प्रवाह टूटता है...
बहुत अच्छी रचना।
***राजीव रंजन प्रसाद
रिश्ते-नाते
बोतलबंद...
दाल भात-में
मूसलचंद....
जब भी करे वो काम की बात,
डालो मिलकर नाक नकेल....
आओ मिल कर बेचें तेल...
वाह निखिल भाई!क्या बात है! दाद खाज़ खुजली सब लीजिए!
छुरिया चाकू
दुनियाँ डाकू
खोल जंगला
सबके झाँकू
बिना वजह ही हो गयी जेल
आओ मिलकर बेचें तेल..
अवनीश गौतम जी,
इसको पढ़के,
थोड़ा हँसके ,
खूब कहा है,
लिखने बैठे,
लगी मनभावन आपकी मेल ,
आओ मिल कर बेचें तेल ......
शुभकामनाएँ,
^^पूजा अनिल
क्या बात है सर जी....
बहुत खूब
आलोक संघ "साहिल"
गौतमजी-रचना बहुत अख्छी है। इतनी अच्छी की सबने अपनी रेल चला दी।
एक बनारसी अंदाज देखिए-----
काहे हउवा हक्का-बक्का
छाना राजा भांग-मुनक्का
घोड़ा मांगे माल-मलाई
गदहा काहे घांस चबाई
सब हौ राजनीति क खेल
आवा मिलके बेचीं तेल-----
--देवेन्द्र पाण्डेय-वाराणसी।
दान धरम
ईमान के धंधे
पापी नीच
बे ईमान
ये गन्दे
खेले मिल कर मौत के खेल
आओ मिल कर बेंचे तेल
वाह क्या बात ,बहुत खूब
अवनीश जी के तेल बेचने का सफर टिप्पणियों तक जारी रहा। मुझे तो बहुत मजा आया।
यह पूरा पन्नाही सजन लगा है चकल्लस के रंगमें ! आशा है और पाठक भी इस रेल पर कूद पड़ेंगे .
अवनीश जी और सभी 'दाद' कर्ताओं को बधाई हो.
आओ मिल कर बेंचे तेल
बहुत अच्छा लगा ,बधाई
मुस्कान ला दी चेहरे पर...सबने मिलके।
इतनी जीवंत टिप्पणियों के लिये आप सभी का आभार
देवेनदर पाँडे गुरु तोहार अँदाज त बडा चौचक हौ!
इतनी प्रवाह भरी और इस तरह का कथ्य लिये हुए कविताएँ, कम पढ़ने-देखने को मिलती हैं, कम से कम आज के दौर में। मुझे तो कबीर कई मामलों में सभी कवियों से बेहतर लगते हैं। ४८ मात्राओं में उन्होंने बहुत कुछ कहा है। आपकी यह कविता मुझे बहुत पसंद आई।
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